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मुख्यमंत्री ने विज्ञान भारती के 5वें राष्ट्रीय अधिवेशन के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित किया

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारतीय संस्कृति व मनीषा ने कभी भी ज्ञान एवं इसके विस्तार को अंगीकार करने में कोई अवरोध सामने नहीं आने दिया है। ‘आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः’ मंत्र के माध्यम से भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि ज्ञान जहां से भी आए उसके लिए अपनी दृष्टि को खुला रखें। यह प्रदर्शित करता है कि भारतीय दृष्टि अपने आप में वैज्ञानिक दृष्टि है।

मुख्यमंत्री आज यहां डॉ0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय लखनऊ में आयोजित विज्ञान भारती के 5वें राष्ट्रीय अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। मुख्यमंत्री जी ने इस अवसर पर एक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। उन्होंने ‘स्वतंत्रता आन्दोलन और विज्ञान’ पुस्तक के हिन्दी व मराठी संस्करण तथा विज्ञान भारती के 5वें राष्ट्रीय अधिवेशन की स्मारिका का विमोचन भी किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति और परम्परा के हृदय स्थल कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश में स्वदेशी ज्ञान व विज्ञान की परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए लगभग तीन दशकों से निरन्तर क्रियाशील विज्ञान भारती के 5वें अधिवेशन का आयोजित होना सुखद अनुभूति है। उन्होंने उत्तर प्रदेश में इस आयोजन के लिए विज्ञान भारती का आभार व्यक्त किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय दृष्टि किसी भी नए ज्ञान को विज्ञान मान लेती है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का संरक्षण विज्ञान भारती को प्राप्त है। संघ की सोच व दृष्टि वैज्ञानिक है और वह इसी दृष्टि से राष्ट्रहित के लिए कार्य करती है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डॉ0 हेडगेवार जी स्वयं एक चिकित्सक व वैज्ञानिक थे। सरसंघ चालक श्रद्धेय गुरुजी भी एक वैज्ञानिक थे। संघ के अन्य सभी सरसंघ चालक भी वैज्ञानिक दृष्टि से ओत-प्रोत रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय दृष्टि कहती है कि कोई वस्तु नष्ट नहीं होती है, अपितु उसका स्वरूप बदल जाता है। उसकी पूर्णता सदैव बनी रहती है। यही वैज्ञानिक दृष्टि है। विज्ञान भारती की प्रार्थना के माध्यम से इसे ही प्रस्तुत किया गया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के माध्यम से प्रतिवर्ष वर्ष प्रतिपदा का आयोजन नवसंवत्सर के रूप में मनाने की एक नई परम्परा का शुभारम्भ किया गया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि अपने सामान्य रीति-रिवाजों में हम विक्रम संवत् पर आधारित पंचांग पद्धति के अनुसार मांगलिक कार्यों एवं शुभ कार्यों को तय करते हैं। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी तिथि व विक्रम संवत की पंचांग तिथि में अन्तर है। अंग्रेजी तिथि में वैज्ञानिक दृष्टि नहीं है, जबकि विक्रम संवत में वैज्ञानिक दृष्टि है। अंग्रेजी तिथि में कोई भी मुहूर्त नहीं है।

अंग्रेजी तिथि के कैलेण्डर में सूर्य ग्रहण व चन्द्र ग्रहण की तिथियां प्रतिवर्ष बदलती रहती हैं, लेकिन भारतीय पंचांग के अनुसार चन्द्र ग्रहण सदैव पूर्णिमा की तिथि पर तथा सूर्य ग्रहण सदैव अमावस्या को ही होता है। हमारे ऋषियों ने इस बात को बहुत पहले ही बता दिया था।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रत्येक जन्तु व पेड़-पौधों में संवेदना है। यह दृष्टि भारतीय वैज्ञानिक तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री जगदीश चन्द्र बसु ने दुनिया को दी। अणु के बारे में महर्षि कणाद ने अपने वैशेषिक दर्शन के माध्यम से बताया था। आज गॉड पार्टिकल की बात की जाती है। भारतीय ऋषि इस सम्बन्ध में आत्मा की नश्वरता की बात बताते हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि महाभारत में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता के उपदेश के अन्तर्गत आत्मा के विषय में बताते हैं कि यह प्रत्येक काल, देश व परिस्थिति में रहेगी। इसे आग नहीं जला सकती, इसे कोई मार नहीं सकता, कोई इसे काट नहीं सकता। केवल उसका रूपान्तरण होता है।

फिर मरने से क्यों डरते हो। आज दुनिया इसी की खोज कर रही है। हमारे दर्शन, शास्त्र इसकी वृहद व्याख्या बहुत पहले ही कर चुके हैं। श्रीमद्भगवद्गीता का संदेश लगभग 05 हजार वर्ष पूर्व जितना प्रासंगिक था, आज भी वह उतना ही महत्वपूर्ण है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हम ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ गए क्योंकि हमने धार्मिक दृष्टिकोण से तो अपने ज्ञान को अंगीकार किया, लेकिन उसके व्यवहारिक स्वरूप को अंगीकार करने का प्रयास नहीं किया। हमें अपने आस-पास घटित हो रही घटनाओं को देखने के साथ-साथ उसके सम्बन्ध में लिखने व नोट करने की आदत डालनी चाहिए।

संस्थानों को डाटा कलेक्शन को प्रोत्साहित करना चाहिए। सभी संस्थानों को प्रत्येक कार्य को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परखने के लिए उसके मूल में जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रकृति में घटने वाली प्रत्येक घटना वैज्ञानिक सोच के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और उसके आस-पास के जनपदों सहित प्रदेश के 38 जनपदों में प्रतिवर्ष जुलाई से अक्टूबर के बीच 1500 से 2000 बच्चों की मृत्यु बीमारी से होती थी। यह मौतें चार दशक तक होती रहीं। इन्हें रोकने के लिए कोई बेहतर प्रयास नहीं किया गया, लेकिन पिछले 04 वर्षो में हमारी सरकार ने अन्तर्विभागीय समन्वय के माध्यम से बेहतर प्रबन्धन करते हुए बीमारी से होने वाली मृत्यु को नियंत्रित कर 95 प्रतिशत तक कम कर दिया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि एक चिकित्सक के लिए प्रत्येक मरीज एक नया अनुभव लेकर आता है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक मरीज एक ही प्रकृति का हो। सभी की अलग-अलग प्रकृति होती है। मनुष्य सात्विक, राजसिक तथा तामसिक प्रकृति के होते हैं। तीनों के लिए उपचार की अलग-अलग पद्धतियां होनी चाहिए। इसी तरह दवा का प्रयोग भी अलग-अलग होगा, लेकिन सभी को एक ढर्रे में चलाने का प्रयास किया जाता है। आयुर्वेद ने इस प्रकृति को समझा था इसीलिए एक समय आयुर्वेद बहुत आगे था, लेकिन आयुर्वेद में भी शोध की परम्परा रोक दी गयी। कोरोना कालखण्ड में लोग पुनः आयुष की शरण में गए।

मुख्यमंत्री ने अधिवेशन में उपस्थित सभी वैज्ञानिकों से आग्रह करते हुए कहा कि वे जिस क्षेत्र में हैं, उसमें लिखने की आदत डालें। सही जानकारी के आधार पर पेपर लिखकर, चर्चा करके तथा अपने नवोदित वैज्ञानिकों के लिए उसे आगे बढ़ायें। अपने शोध को प्रकाशन के लिए राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय जर्नल में भेजें तथा अपनी खोज और आविष्कार को पेटेंट भी कराएं।

तभी वे देश को एक सही दृष्टि दे कर समाज के लिए नई उपलब्धियों के साथ आगे बढ़ पाएंगे। विज्ञान भारती इस दिशा में नेतृत्व दे रहा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी की मंशा के अनुरूप राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। कार्य करने के लिए जगह व संसाधन की कमी नहीं है। हमें दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ अपने प्रयास को आगे बढ़ाना है।

इससे पूर्व, मुख्यमंत्री ने अधिवेशन का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया।
अधिवेशन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख और विज्ञान भारती के पालक अधिकारी श्री सुनील अम्बेकर, विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव श्री जयन्त सहस्त्रबुद्धे, विज्ञान भारती के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ0 शेखर मंडे एवं निवर्तमान अध्यक्ष डॉ0 विजय भटकर, राष्ट्रीय महासचिव प्रो0 सुधीर भदौरिया, डॉ0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 प्रदीप कुमार मिश्रा सहित देश के विभिन्न प्रदेशों से आए वैज्ञानिक उपस्थित थेे।

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