दीक्षांत समारोह में 29 को स्वर्ण पदक एवं 17244 को उपाधियां
वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में 38वां दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की कुलाधिपति राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने की। इस दौरान बतौर मुख्य अतिथि मालदीव के पूर्व राजदूत एवं विदेश मंत्रालय के अपर सचिव अखिलेश मिश्र रहे।
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में 38वां दीक्षांत समारोह के बतौर मुख्य अतिथि मालदीव के पूर्व राजदूत अखिलेश मिश्रा ने मेधावियों का उत्साहवर्धन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि संस्कृत भारतीय संस्कृति का प्रेरक है। यह विश्वकल्याण की भाषा है। संस्कृत के ही वजह से भारत विविधताओं वाला देश है। संस्कृत के दिव्य संदेश के कारण भारत लोकतांत्रिक देश है। संस्कृत के कारण ही बंधुत्व, समरसता, भाईचारे का चिंतन होता है।
उन्होंने कहा कि इसमें देवता पुलिंग में नहीं है। अथार्त यहां पर समानता का भाव है। संस्कृत गूढ़ इसलिए है, क्योंकि तपस्वी ऋषि-मुनियों ने इसका अध्ययन किया और इसकी जटिलता को सुलझाया है। उन्होंने कहा कि विरोधी तत्वों में समरसता स्थापित करने की जो कला संस्कृत में है।
अखिलेश मिश्रा ने बताया कि दीक्षांत का तात्पर्य शिक्षा का अंत नहीं बल्कि सत्य कि वह खोज है, जिसका आज से नया अध्याय शुरू हो रहा है। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार देश की सीमा पर जवान दुश्मनों से देश की रक्षा करते हैं। ठीक उसी प्रकार से सभी विद्यार्थियों को देश की सीमा में रहकर अपनी संस्कृति की रक्षा करें।
आयोजित समारोह में कुल 29 विद्यार्थियों को 57 स्वर्ण पदक मिला. इसके साथ ही 17,244 विद्यार्थियों को उपाधियां प्रदान की गई। आचार्य परीक्षा में सर्वाधिक 10 पदक पाकर मीना कुमारी टॉपर रहीं. इसके बाद आचार्य परीक्षा में सुमित्रानंदन चतुर्वेदी, आशुतोष मिश्र को 5-5 पदक मिले। इसके साथ ही विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली बार स्पेन की नागरिक और विश्वविद्यालय की आचार्य की छात्रा मारिया को पूर्व मीमांसा में स्वर्ण पदक हासिल किया. इस दौरान राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने पंडित राम लखन शुक्ला को महोपाध्याय की उपाधि भी प्रदान की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने कहा कि संस्कृत भाषा और सनातन संस्कृति की वजह से ही भारत एकता के सूत्र में बंधा हुआ है। हालांकि एक खेद का विषय है कि लंबे समय से संस्कृत भाषा उपेक्षित है, लेकिन नई शिक्षा नीति में इसे बढ़ावा दिया जा रहा है और अब इसके प्रचार-प्रसार के लिए विद्वानों को भी आगे आना होगा। क्योंकि संस्कृत केवल भाषा नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं।
अपने अभिभाषण में राज्यपाल ने कहा कि सभी विश्वविद्यालय और महाविद्यालय को वन कॉलेज वन विलेज के थीम पर काम करना चाहिए। सभी विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय को एक गांव गोद लेना चाहिए। इससे उस गांव का भी उत्थान हो सके । इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बहुत सारे महाविद्यालय में विद्यार्थियों की डिग्रियां कई वर्षों से पड़ी हुई हैं । ऐसे में मेरी अपील है कि विगत 3 वर्षों से विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय में जिन भी विद्यार्थियों की डिग्रियां बची हुई हैं । उनको उनके घर तक पहुंचाया जाए।