
तेल का खेल: बांग्लादेश को भारत नहीं होने देगा फेल, चीन की प्लानिंग होगी ‘डिरेल’
बांग्लादेश की इकोनॉमिक हालत भी श्रीलंका और पाकिस्तान जैसी हो चली है। भारत की सीमा से सटे इस पड़ोसी देश के भी दिवालिया होने की स्थिति आ गई है। विदेशी करेंसी उतनी ही बची है, जिससे सिर्फ 3 से 4 महीनों का जरूरी सामान विदेशों से मंगाया जा सके।
बांग्लादेश पर क्रूड ऑयल सप्लायर्स का बकाया चुकाने का दबाव है। वहीं दबाव चीन का भी है। जिससे बांग्लादेश ने अरबों रुपयों का कर्ज लिया है। उसी कर्ज के दबाव में पहले श्रीलंका टूटा और पाकिस्तान भी कहीं का नहीं रहा। उसके बाद भी बांग्लादेश में वैसी बेचैनी और अफरा-तफरी क्यों नहीं दिख रही जो श्रीलंका में दिखाई दी और बाद में पाकिस्तान में।
वास्तव में बांग्लादेश की नजरें भारत की ओर गड़ी हुई हैं और उसने भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई है. ताकि उसे तेल भी मिलता रहे और चीन से जान भी बची रहे। मतलब साफ है भारत चीन की हर उस प्लानिंग को फेल करने में जुटा है।
जिसमें चीन हिंद महासागर पर कब्जा चाहता है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर चीन बांग्लादेश को अपने जाल में कैसे फंसाने की कोशिश करने में लगा है और भारत कैसे बांग्लादेश की मदद कर सकता है?
बांग्लादेश में शुरू हुआ ऑयल क्राइसिस
बांग्लादेश भी मौजूदा समय में क्रूड ऑयल क्राइसिस के दौर से गुजर रहा है। इसका कारण है डॉलर की कमी. इंपोर्टिड फ्यूल का पेमेंट करने के लिए बांग्लादेश के पास विदेशी मुद्रा नहीं है। जबकि बांग्लादेश को बकाए के तौर पर 300 मिलियन डॉलर यानी 3200 करोड़ बांग्लादेशी टका से ज्यादा, जो भारतीय रुपये में करीब 2500 करोड़ रुपये है चुकाना है।
जिसे चुकाने का दबाव बांग्लादेश पर लगातार बना हुआ है। क्योंकि समय पर पेमेंट नहीं किया तो ऑयल सप्लायर्स की ओर से ऑयल मिलना बंद हो जाएगा और बांग्लादेश की इकोनॉमी और ज्यादा बर्बाद हो जाएगी।
बांग्लादेश को भारत से आस
17 करोड़ की आबादी वाले बांग्लादेश को अब भारत से आस बची हुई है। बांग्लादेश में फ्यूल को इंपोर्ट और बेचने का कंट्रोल बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉर्प के हाथ में है। बांग्लादेशी फ्यूल कंपनी ने सरकार से कहा है कि वो सभी कर्मशियल बैंकों को रुपये में रुपये में भारत के साथ ड्यूज क्लीयर करने की परमीशन दे।
इसके लिए दोनों सरकारों के बीच बातचीत भी चल रही है। मौजूदा समय में बांग्लादेश भारत पर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के अलावा बिजली पर भी काफी डिपेंड है। जिसके लिए सरकार अडानी के माध्यम से एक पॉवर प्लांट लगा रही है, जिससे बांग्लादेश को बिजली पहुंचाई जाएगी।
क्यों हो गई बांग्लादेश की हालत पतली
बांग्लादेश की हालत पतली होने का प्रमुख कारण रूस यूक्रेन वॉर है। जिसकी वजह से बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार एक तिहाई से भी कम हो गया है। 17 मई तक बांग्लादेश के पास लगभग 30.2 बिलियन डॉलर पर आ गया है जो सात साल के निचले स्तर पर है। इसकार मतलब है कि इस विदेशी मुद्रा भंडार से बांग्लादेश 3 से 4 महीने तक ही अपनी जरूरत का सामान इंपोर्ट कर सकता है।
पॉवर इंपोर्ट पर भारी निर्भर बांग्लादेश बिजली कटौती से जूझ रहा है फ्यूल की कमी ने इसके कपड़ा उद्योग को काफी नुकसान पहुंचाया है। इस कपड़े के लिए जो रॉ मटीरियल बांग्लादेश खरीदता है वो 90 फीसदी भारत से ही जाता है।
चीन के कर्ज का भी दबाव
वहीं दूसरी ओर चीन बिल्कुल नहीं चाहता कि बांग्लादेश की मदद कोई दूसरा देश या दूसरी संस्थाएं करें। क्योंकि हिंद महासागर के करीब आने के लिए चीन बांग्लादेश को अपना जरिया बनाना चाहता है और अपने कर्ज के बोझ के तले दबाना चाहता है। इस बारे में बांग्लादेश की सरकार पूरी तरह से वाकिफ भी है. पिछले बांग्लादेश के मंत्रियों ने भी इस ओर इशारा किया था और कहा था कि वो चीनी डेट ट्रैप में नहीं फंसना चाहते है।
अगर बांग्लादेश पर चीनी कर्ज की बात करें तो 4 अरब डॉलर से ज्यादा का है। जोकि बांग्लादेश के कुल कर्ज का करीब 6 फीसदी है। साल 2021 में बांग्लादेश पर कुल कर्ज 62 अरब डॉलर था. जिसमें कुल कर्ज का 59 फीसदी वर्ल्ड बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक का है।



