उत्तर प्रदेश के साथ मध्यप्रदेश को साधने की कवायद, प्रधानमंत्री की रैली से आदिवासी इलाकों की 82 सीटों पर नजर
एक तरफ जहां भाजपा अभी से 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर फोकस कर रही है। वहीं दूसरी तरफ केंद्र की सत्ता का सेमीफाइनल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 के लिए भी पार्टी ने चुनावी बिसात बिछाना शुरू कर दिया है। इसी को देखते हुए पार्टी 15 नवंबर को प्रदेश की राजधानी भोपाल में जोरशोर से जनजातीय गौरव दिवस मनाने जा रही है। जंबूरी मैदान में होने वाले इस आदिवासी सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी शामिल होंगे। इस मैदान में ढाई लाख से ज्यादा आदिवासियों को लाकर भाजपा सीधे 22 फीसदी आबादी को टारगेट करेंगी। इस आयोजन के जरिए मध्यप्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में आदिवासियों को साधने का काम भाजपा करने जा रही है।
सीकर सेल पर एलान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए 15 नवंबर को ही दिल्ली से भोपाल पहुंचेंगे। पीएम इस दौरान आदिवासियों के लिए कई बड़ी योजनाओं का एलान कर सकते हैं। जिसमें सीकर सेल को लेकर भी एलान हो सकता है। सीकर सेल एक अनुवांशिक बीमारी है जो आदिवासी क्षेत्रों में तेजी से फैल रही है। पीएम के इस कार्यक्रम को लेकर भाजपा ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। सम्मेलन के प्रवेश द्वार से लेकर पंडाल के नीचे हर तरह की सजावट आदिवासी थीम पर की जा रही है। मंच पर पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्यपाल मंगू भाई पटेल और प्रदेश के सिर्फ आदिवासी व जनजातीय नेता ही बैठेंगे।
82 विधानसभा और 10 लोकसभा सीटें साधने की तैयारी
मध्यप्रदेश की आदिवासी बहुल सीट जोबट पर कब्जा जमाने के बाद से भाजपा उत्साह में है। इस सीट को हासिल करने के बाद भाजपा के पास आदिवासी वर्ग की 17 विधानसभा सीटें हो गई हैं। जबकि 30 सीटें अभी भी कांग्रेस के पास है। 2013 के विधानसभा चुनाव में 31 सीटें भाजपा के पास थीं। पिछले चुनाव में आदिवासियों का एक बड़ा तबका भाजपा से छिटक कर कांग्रेस के पास चला गया था, जिसे वापस लाने की तैयारी में पार्टी जुट गई है।
इसके पहले भी भाजपा और हिंदूवादी संगठनों ने झाबुआ में 2002 में आदिवासियों को एकजुट करने के लिए हिंदू संगम का आयोजन किया था। इसमें भी करीब दो लाख से ज्यादा आदिवासी जुटे थे। इसके बाद ही 2003 में कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार गिर गई थी। इसके बाद पिछले साल गृह मंत्री अमित शाह और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू मंडला में आदि महोत्सव में शामिल हुए थे। जिसमें 25000 आदिवासी आए थे। वहीं दो महीने पहले भी गृहमंत्री अमित शाह जबलपुर आदिवासियों के नेता शंकर शाह, रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस के कार्यक्रम में शिरकत करने आए थे। जाहिर है कि 2023 के विधानसभा चुनाव की रणनीति के मद्देनजर आदिवासियों को एकजुट करने का प्लान है। इसी के साथ 2024 के लिए आदिवासियों को साधने की कवायद भी शुरू हो जाएगी।
भाजपा के पास बड़े आदिवासी चेहरे की कमी
मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार ऋषि पांडेय ने अमर उजाला से चर्चा करते हुए कहा, आज भाजपा के सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनके पास प्रदेश में कोई बड़ा आदिवासी नेता नहीं है। जिसके कारण आदिवासी वोट बैंक उनसे छिटक रहा है। मध्यप्रदेश में 47 आरक्षित सीटें हैं। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास झाबुआ, धार, खरगोन, बालाघाट और मंडला जैसे आदिवासी क्षेत्रों के 31 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी।
लेकिन 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 25 आदिवासी सीटें गंवा दी थीं। उस दौरान पार्टी को महज 17 सीटें मिली थीं। जिससे भाजपा को बहुत बड़ा नुकसान हुआ था। इससे ये संदेश गया था कि आदिवासी फिर से कांग्रेस के पाले में चले गए। भाजपा ने धार, झाबुआ और अलीराजपुर क्षेत्र की 12 आदिवासी सीटों में से केवल एक सीट जीती थी। जोबट उप चुनाव जीतने के बाद से पार्टी के पास दो सीटें हो गई हैं।
ऋषि पांडेय आगे बताते है कि आज भाजपा के पास मध्यप्रदेश में आदिवासी नेता के रूप में केंद्रीय राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते एकमात्र नेता हैं। लेकिन कुलस्ते की स्वीकार्यता पूरे प्रदेश में नहीं है। जबकि कांग्रेस के पास पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया, प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री बाला बच्चन, पूर्व उपमुख्यमंत्री जमुना देवी के भतीजे और पूर्व मंत्री उमंग सिंघार, कांग्रेस विधायक ओमकार सिंह मरकाम जैसे कई बड़े नेता है। आने वाले विधानसभा चुनावों और लोकसभा की 10 आरक्षित सीट को देखते हुए भाजपा और संघ फिर से आदिवासियों को साधने में जुटे हुए नजर आ रहे हैं।
पीएम का दौरा बता रहा है प्रदेश में सब ठीक हैं
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राशिद किदवई बताते है कि लोकसभा का चुनाव मई 2024 में और मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव सितंबर 2023 में होना है। भोपाल में होने वाले इस सम्मेलन के बहाने पार्टी यह सिग्नल देना चाहती है कि दलित, आदिवासी और पिछड़ा जैसा प्रभावशाली और महत्वपूर्ण वर्ग आज भी उसके साथ जुड़ा हुआ है। इसलिए पार्टी देशभर में इस तरह के कार्यक्रम कर ये संकेत देना चाह रही है कि भाजपा सभी वर्गों को साथ में लेकर चलने वाली पार्टी है। भाजपा को लगता है एन वक्त पर कहीं न कहीं यह वोट बैंक दूसरे दलों की तरफ खिसक सकता है। इसलिए पार्टी इस वर्ग को साधने की कोशिश रही है और दूसरी तरफ अपना भी मनोबल और आत्मविश्वास बनाए रखने की कोशिश भी कर रही है।
किदवई आगे बताते है कि उपचुनाव के परिणाम जिस तरह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पक्ष में गए उससे ये साफ हो गया कि हाल फिलहाल उन्हें हटाना आसान नहीं है। जब भी पीएम का किसी राज्य में दौरा होता है तो उसके मायने यही निकलते हैं कि उस राज्य में सब ठीकठाक है। पीएम किसी राज्य में एक सम्मेलन को संबोधित करते हैं, तो इसका मतलब यही निकलता है कि वे उस राज्य को महत्व दे रहे हैं। अगर राजनीतिक अस्थिरता जैसी कोई दिक्कत होती तो वे यहां आते ही नहीं।
पहले भाजपा हिसाब दे इतने सालों में क्या काम किया – भूरिया
पूर्व केंद्रीय मंत्री, आदिवासी नेता और झाबुआ से कांग्रेस विधायक कांतिलाल भूरिया ने अमर उजाला से चर्चा करते हुए कहा कि इतने वर्षों तक आदिवासियों की उपेक्षा क्यों होती रही। अब जब आदिवासी दूर हो गया है तो उनकी याद आ रही है। पिछले सात सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 17 सालों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों के लिए क्या काम किए हैं पहले उन्हें वे गिनाने चाहिए।
भूरिया ने कहा आज मध्यप्रदेश में आदिवासियों को कोई रोजगार नहीं मिल रहा है। जिससे पलायन बढ़ रहा है। 15 नवंबर को राजनीति चमकाने के लिए स्थानीय कलक्टर के जरिए सभी आदिवासियों को जबहरन बसों से भोपाल पहुंचाया जा रहा है। रैली को सफल बनाने के लिए भगवान बिरसा मुंडा की जयंती मनाने के नाम पर सभी आदिवासियों को एकत्र किया जा रहा है। भाजपा को पहले कभी वीर बिरसा मुंडा की जयंती याद नहीं आए। लेकिन अब राजनीति चमकाने के लिए जनजाति गौरव दिवस मनाने का दिखावा कर रहे हैं।



