धार्मिक

जन्माष्टमी पर इस तरह करें कान्हा का पूजन, पढ़िये व्रत कथा और पूजा से जुड़ी खास बातें

भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का संहार करने के लिए मथुरा के कारागार में मध्यरात्रि को जन्म लिया था। देश विदेश में बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाए जाने वाले इस पर्व की छटा मथुरा-वृंदावन में विशेष रूप से देखने को मिलती है। इस दिन देश भर के मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है। और श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी घटनाओं की झांकियां सजाई जाती हैं। भविष्यपुराण में कहा गया है। कि जहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर व्रतोत्सव किया जाता है। वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते है। तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। श्रीकृष्णजन्माष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं।

जन्माष्टमी पूजन की तैयारी से जुड़ी खास बातें
पौराणिक ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है। कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय वृष के चंद्रमा में हुआ था। इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारण से व्रत की पूर्ति होती है। इस व्रत को करने वालों को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व अर्थात सप्तमी को हल्का तथा सात्विक भोजन करें। सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें। उपवास वाले दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर मुख बैठें। हाथ में जल, फल, कुश, फूल और गंध लेकर संकल्प करके मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकी जी के लिए सूतिका गृह नियत करें। उसे स्वच्छ और सुशोभित करके उसमें सूतिका के उपयोगी सब सामग्री यथाक्रम रखें। तत्पश्चात चित्र या मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति में प्रसूत श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किये हों, ऐसा भाव प्रकट हो। घर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम का दूध, दही, शहद, यमुनाजल आदि से अभिषेक कर उसे अच्छे से सजाएं। इसके बाद श्रीविग्रह का षोडशोपचार विधि से पूजन करें।

जन्माष्टमी पूजन विधि
जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले व्रती को किसी नदी में तिल के साथ स्नान करके यह संकल्प करना चाहिए। ‘मैं कृष्ण की पूजा उनके सहगामियों के साथ करूँगा। व्रती को किसी धातु की कृष्ण प्रतिमा बनवानी चाहिए। प्रतिमा के गालों का स्पर्श करना चाहिए और मंत्रों के साथ उसकी प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए। मंत्र के साथ देवकी व उनके शिशु श्री कृष्ण का ध्यान करना चाहिए तथा वासुदेव, देवकी, नन्द, यशोदा, बलदेव एवं चण्डिका की पूजा स्नान, धूप, गंध, नैवेद्य आदि के साथ एवं मंत्रों के साथ करनी चाहिए। इसके बाद प्रतीकात्मक ढंक से जातकर्म, नाभि छेदन, षष्ठीपूजा एवं नामकरण संस्कार आदि करने चाहिए। तब चन्द्रोदय (या अर्धरात्रि के थोड़ी देर उपरान्त) के समय किसी वेदिका पर अर्घ्य देना चाहिए।

यह अर्घ्य रोहिणी युक्त चन्द्र को भी दिया जा सकता है। अर्घ्य में शंख से जल अर्पण होता है। जिसमें पुष्प, कुश, चन्दन लेप डाले हुए रहते हैं। इसके उपरान्त व्रती को चन्द्र का नमन करना चाहिए। और वासुदेव के विभिन्न नामों वाले श्लोकों का पाठ करना चाहिए। व्रती को रात्रि भर कृष्ण की प्रशंसा के स्रोतों, पौराणिक कथाओं, गानों में संलग्न रहना चाहिए। दूसरे दिन प्रात: काल के कृत्यों के सम्पादन के उपरान्त, कृष्ण प्रतिमा का पूजन करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन देना चाहिए। सोना, गौ, वस्त्रों का दान, ‘मुझ पर कृष्ण प्रसन्न हों’ शब्दों के साथ करना चाहिए। कृष्ण प्रतिमा किसी ब्राह्मण को दे देनी चाहिए और पारण करने के उपरान्त व्रत को समाप्त करना चाहिए।

जन्माष्टमी व्रत में ध्यान रखने योग्य बात
जन्माष्टमी के व्रत को करना अनिवार्य माना जाता है। और विभिन्न धर्मग्रंथों में कहा गया है। कि जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें। व्रत के दौरान फलाहार लेने में कोई मनाही नहीं है। रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की खबरों से जब चारों दिशाएं गूंज उठें तो भगवान श्रीकृष्ण की आरती उतार कर प्रसाद ग्रहण करें। इस प्रसाद को ग्रहण करके ही व्रत खोला जाता है।

जन्माष्टमी पर्व की देश-दुनिया में रहती है धूम
जन्माष्टमी पर्व के दौरान देश भर के मंदिरों की साज सज्जा की जाती है। और जगह-जगह रासलीला का आयोजन किया जाता है। वैसे इस पर्व की छटा कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा में देखते ही बनती है।जहां ब्रजभूमि महोत्सव अनूठा व आश्चर्यजनक होता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है। इस पावन अवसर पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु मथुरा पहुंचते हैं।

जन्माष्टमी व्रत कथा
द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसों के अत्याचार बढ़ने लगे। पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी कथा सुनाने के लिए तथा अपने उद्धार के लिए ब्रह्माजी के पास गई। ब्रह्माजी सब देवताओं को साथ लेकर पृथ्वी को भगवान विष्णु के पास क्षीरसागर ले गये। उस समय भगवान श्रीकृष्ण अनन्त शैया पर शयन कर रहे थे। स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हो गई। भगवान ने ब्रह्माजी एवं सब देवताओं को देखकर आने का कारण पूछा। तो पृथ्वी बोली− ‘भगवान! मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हूं। मेरा उद्धार कीजिए।

यह सुनकर भगावान विष्णु बोले− मैं ब्रज मंडल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा। तुम सब देवतागण ब्रज भूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण करो। इतना कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए। इसके पश्चात देवता ब्रज मंडल में आकर यदुकुल में नन्द−यशोदा तथा गोप−गोपियों के रूप में पैदा हुए। द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन नाम के एक राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया।

कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया था। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था। तो आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध में भरकर देवकी को मारने को तैयार हो गया। उसने सोचा – न देवकी होगी। न उसका कोई पुत्र होगा। वासुदेवजी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान से तुम्हें भय है। इसलिए मैं इसकी आठवीं संतान को तुम्हें सौंप दूंगा। तुम्हारी समझ में जो आये, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना। कंस ने वासुदेवजी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव−देवकी को कारागार में बंद कर लिया। तभी नारदजी वहां आ पहुंचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवां गर्भ कौन सा होगा। गिनती प्रथम से या अंतिम गर्भ से शुरू होगी।

इस तरह कंस ने नारदजी से परामर्श कर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को मारने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार एक−एक करके कंस ने देवकी की सातों संतानों को निर्दयतापूर्वक मार डाला। भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पद्मधारी चतुर्भुज से अपना रूप प्रकट कर कहा− अब मैं बालक का रूप धारण करता हूं। तुम मुझे तत्काल गोकुल के नंद के यहां पहुंचा दो और उनकी अभी−अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो। तत्काल वासुदेवजी की हथकड़ियां खुल गईं। दरवाजे अपने आप खुल गये।

पहरेदार सो गये। वासुदेव श्रीकृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिये। रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणों को स्पर्श करने के लिए आगे बढ़ने लगीं। भगवान ने अपने पैर लटका दिये। चरण छूने के बाद यमुना घट गईं। वासुदेव यमुना पार कर गोकुल में नंद के यहां गए। बालक कृष्ण को यशोदाजी की बगल में सुलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गये। जेल के दरवाजे पूर्ववत बंद हो गये। वासुदेवजी के हाथों में हथकड़ियां पड़ गईं। पहरेदार भी जाग गये।

कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई। कंस ने कारागार में आकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटककर मारना चाहा। परंतु वह कंस के हाथों से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली कि हे कंस मुझे मारने से क्या लाभ है। तेरा शत्रु तो गोकुल में पहुंच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्रीकृष्ण ने अपनी अलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया। श्रीकृष्ण की जन्मतिथि को तभी से सारे देश में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

राज्‍यों से जुड़ी हर खबर और देश-दुनिया की ताजा खबरें पढ़ने के लिए नार्थ इंडिया स्टेट्समैन से जुड़े। साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप को डाउनलोड करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button

mahjong slot

spaceman slot

https://www.saymynail.com/

slot bet 200

slot garansi kekalahan 100

rtp slot

Slot bet 100

slot 10 ribu

slot starlight princess

https://moolchandkidneyhospital.com/

situs slot777

slot starlight princes

slot thailand resmi

slot starlight princess

slot starlight princess

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

ceriabet

ceriabet

ceriabet

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

slot starlight princess

ibcbet

sbobet

roulette

baccarat online

sicbo