उत्तर प्रदेश

इस महामारी में ओपीडी क्यों हैं बन्द?

उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के चलते सरकारी अस्पतालों की बंद पड़ी ओ0पी0डी0 चिकित्सा सेवाएं और कोविड-19 की जांच रिपोर्ट की अनिवार्यता से आम-जनमानस हलकान है। इलाज के अभाव में बीमार दम तोड़ रहे हैं और तीमारदार यह खौफनाक मंजर अपनी आंखों से देखने को विवश हैं।

OPD
OPD

निश्चित रूप से देश एवं प्रदेश की जनता के लिए यह संकट की घड़ी है। सरकार के प्रयास इस कठिन समय में भले ही नाकाफी हों लेकिन जीवन को बचाने के लिए यही एक मजबूत आधार है। संयम और हिम्मत के साथ कोविड गाइडलाइन का पालन और वैक्सीनेशन के प्रति जागरूकता ही संकट से उबरने का एक मात्र विकल्प है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेमौत मर रहे लोगों के मामले में आदेश, निर्देश के साथ कई बार तल्ख टिप्पणी भी की है। और कहा है कि गांवों और छोटे कस्बों में चिकित्सा सेवाओं की स्थिति बद्तर है। आमजन को चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में रामभरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।

उच्चन्यायालय ने 27 अप्रैल के आदेश के अनुपालन में 12 जिला जजों की नियुक्ति कर सबंधित जिलों की जमीनी रिपोर्ट तलब की है। अदालत के इस फैसले से प्रदेश सरकार को झटका लगा है। वहीं चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए यह एक मौका भी है।

पंचायत चुनावों ने गांव की हालत और खराब कर दी है। कोविड की जांच गांवों में चल रही है और मरीजों को दवाएं वितरित करने का काम भी शुरू हो गया है। लेकिन सर्दी, जुकाम और बुखार से पीड़ित अधिकांश लोग इस जांच से कन्नी काट रहे हैं। वजह अस्पतालों में ऑक्सीजन सहित इलाज की बदइंतजामी बताई जा रही है।

ऐसे में गांवों में एक लंबे अरसे से प्रैक्टिस करने वाले झोलाछाप डॉक्टर ही इन्हें इलाज के लिए सुलभ हो रहे हैं। हालांकि, कई पूर्ववर्ती सरकारों सहित वर्तमान सरकार ने भी इन झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ अभियान चलाकर उनके विरूद्ध कार्रवाही भी की है। लेकिन न तो इनकी अवैध क्लीनिकें बंद हो पाईं और न ही चिकित्सीय परामर्श।

इन कथित डॉक्टरों पर ही ग्रामीण जनता का भरोसा है और 50 से 100 रूपये के खर्च में जहां बहुत सारे बीमार ठीक हो जा रहे हैं। वहीं कोविड जांच और उपयुक्त इलाज के अभाव में लोग दम भी तोड़ने को विवश हो रहे हैं। मार्च 2020 से अब तक कुछ महीनों को छोड़कर सरकारी अस्पतालों में कोविड-19 से संक्रमित रोगियों को छोड़कर सामान्य एवं गंभीर रोगियों के इलाज की समुचित व्यवस्था न होने से असमय मरने वालों की संख्या बढ़ा दी है।

पिछले एक वर्ष से अधिक समय से चिकित्सीय व्यवस्था पटरी पर नहीं आ पा रही है। एम्स, पीजीआई, मेडिकल इंस्टीट्यूट, सरकारी एवं निजी मेडिकल कॉलेज सहित सभी सरकारी अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं कोरोना काल में बाधित हैं। इन संस्थानों में सामान्य दिनों में हजारों की संख्या में मरीज अनेक बीमारियों का इलाज कराने के लिए प्रतिदिन अस्पतालों में आते थे।

अब इन मरीजों का इलाज डॉक्टरों द्वारा देखे गये पुराने पर्चों के आधार पर चल रहा है। मरीज की हालत खराब होने पर उसे चिकित्सीय सलाह समय पर नहीं मिल पा रही है। टेली-मेडिसिन और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा मरीजों को मिलने वाली सलाह का प्रतिशत बहुत कम है। शहरी क्षेत्रों में प्राइवेट अस्पतालों के माध्यम से साधन सम्पन्न लोग बेहतर उपचार की सलाह पा जाते हैं, लेकिन ग्रामीण अंचल के लोगों के लिए यह सुविधा दिवा स्वप्न जैसी है।

गांवों में उपचार करने वाले झोलाछाप डॉक्टर ही मरीजों के भगवान हैं। जो कोविड संक्रमण की परवाह किये बिना मरीजों को परामर्श एवं दवाएं दे रहे हैं। जबकि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर मौजूद होने के बाद भी मरीजों को देखने के लिए तैयार नहीं हैं। सिफारिशी एवं पहुंच रखने वाले मरीजों के तीमारदारों द्वारा कोविड जांच रिपोर्ट दिखाने के बाद ही डॉक्टर मरीज को देखने के लिए बड़ी मुश्किल में तैयार होते हैं।

इस ह्रदयहीन प्रक्रिया में इतना विलंब होता है कि मरीज की हालत और खराब हो जाती है। और वह विलंब से मिले उपचार एवं सलाह के बाद भी ठीक होने के बजाए दम तोड़ देता है। इन झोलाछाप डॉक्टरों के द्वारा सर्दी, जुकाम और बुखार के पीड़ित तमाम मरीजों को बीमारी से निजात भी मिलती है। लेकिन कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में यह झोलाछाप डॉक्टर कारगर नहीं हो पाते, क्योंकि इसका इलाज अभी शहरों में ही नहीं है।

आये दिन डब्लयूएचओ भी एडवाइजरी जारी करके बताता रहता है कि रेमडेसिवीर का इस्तेमाल ना करें, ये कोरोना की कामगर दवाई नहीं है। स्टेरायॅड का इस्तेमाल ना करें, ये भी कोरोना में कोई फायदा नहीं दे रही है। प्लाज्मा थेरेपी को ती अभी हाल में ही उसने सिरे से नकार दिया। जब वर्ल्ड लेवल की संस्था ही आजतक कोविड-19 का कारगर ईलाज नहीं ढ़ूंढ पाया है तो इन झोला छाप डॉक्टरों पर क्यों और काहे का गुस्सा दिखाना?

ये कम से कम मरीज एवं उनके घर वालों को सांत्वना तो दे रहे हैं। उन्हें देख रहे हैं, उनका हाथ तो पकड़ रहे हैं, जबकि शहरों में तो कुछ भी नहीं कर रहे हैं और लाखों का बिल अलग से वसूल रहे हैं और मन मुताबिक हजारों-लाखों रूपया ना मिलने पर ऑक्सीजन पर लगे मरीज से ऑक्सीजन का पाईप हटाकर उसे मौत की नींद सुला दे रहे हैं। इससे तो अच्छे ये झोलाछाप डॉक्टर हैं।

इलाज और कोविड जांच के अभाव में आमआदमी दम तोड़ देता है। यह भी कहा जा सकता है कि गांव और कस्बों की चिकित्सा रामभरोसे है। वजह सरकारी अस्पतालों में समुचित इलाज का न हो पाना है। बड़े शहरों से लेकर जिलास्तर एवं तहसील स्तर पर कई-कई सरकारी अस्पताल हैं।

इन सभी अस्पतालों में से कुछ चुनिंदा अस्पतालों को कोविड-19 के संक्रमण के लिए आरक्षित कर अन्य अस्पतालों को आमजनों के इलाज हेतु यदि खोल दिया जाता तो हालात इतने खराब नहीं होते। यही वजह है कि आज उच्च अदालतें भी इस लापरवाही को इस महामारी में एक बड़ी वजह समझ रही हैं। और अब प्रदेश की जनता भी इस अव्यवस्था को बेमौत मौतों का एक बड़ा कारण मान रही है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महीने के अंदर तीसरी बार कोरोना की दूसरी लहर में संसाधनों की कमी और गांवों में बदहाली को देखते हुए कोर्ट ने सरकार पर तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश के गांवों और कस्बों में चिकित्सा व्यवस्था श्राम भरोसेश् चल रही है। समय रहते इसमें सुधार न होने का मतलब है कि हम कोरोना की तीसरी लहर को दावत दे रहे हैं।

हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार के स्वास्थ्य सचिव से कोरोना की रोकथाम और बेहतर इलाज की डिटेल प्लानिंग मांगी। कोर्ट ने कहा है कि नौकरशाही छोड़कर एक्सपर्ट्स के साथ मिलकर अच्छे से प्लान तैयार करें। कोर्ट ने गांवों और कस्बों में टेस्टिंग बढ़ाने का भी आदेश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि एसजीपीजाई लखनऊ, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज, किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ की तर्ज पर प्रयागराज, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर में भी हाईटेक सुविधाओं वाले मेडिकल कॉलेज बनाए जाएं।

यह प्रक्रिया चार महीने के अंदर पूरी करनी होगी। इसके लिए जमीन और फंड की कोई कमी न रहे। कोर्ट ने कहा कि इन पांच मेडिकल कॉलेजों को ऑटोनॉमी भी दी जाए। विशेषज्ञों की मानें, तो ऐसा लगता है कि सरकार ने कोरोना की इस दूसरी लहर को रोकने में कोई मुस्तैदी नहीं दिखाई। उसके इस रवैए की वजह से यह संक्रमण चारों ओर बड़ी तेज़ी से फैल गया।

कोरोना लहर का दूसरा संक्रमण उन लोगों की वजह से फैला, जो बिल्कुल लापरवाह हो गए। ये लोग शादियों, पारिवारिक और सामाजिक समारोहों में खुल कर जाने लगे। सरकार ने भी ढ़िलाई की और रैलियों और धार्मिक समारोहों को मंज़ूरी दे दी और इसमें बड़ी संख्या में लोग जुटने लगे। पहली लहर के बाद जब संक्रमितों की संख्या घटने लगी, तो लोगों ने टीका लगवाना भी कम कर दिया। बहुत कम लोग उस दौरान टीका लगवा रहे थे।

ज़्यादातर विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना संक्रमण की अभी और लहरें आ सकती हैं, क्योंकि भारत अभी हार्ड इम्यूनिटी हासिल करने से काफ़ी दूर है। और यहाँ टीकाकरण की दर भी बहुत कम है। उन्होंने कहा कि ष्हम ज़िंदगी को जहाँ के तहाँ तो नहीं रोक सकते। लेकिन अगर हम भीड़ भरे शहरों में एक दूसरे से पर्याप्त शारीरिक दूरी न रख पाएँ, तो कम से कम यह तो पक्का कर लें कि हर कोई सही मास्क पहने। साथ ही मास्क को सही ढंग से पहनना भी ज़रूरी है। लोगों से की जाने वाली यह कोई बड़ी अपेक्षा तो नहीं ही है।

Rajendra Singh
Rajendra Singh

 

लेखक- राजेन्द्र सिंह, राज्य स्तरीय स्वतंत्र पत्रकार हैं।

राज्‍यों से जुड़ी हर खबर और देश-दुनिया की ताजा खबरें पढ़ने के लिए नार्थ इंडिया स्टेट्समैन से जुड़े। साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप को डाउनलोड करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button

mahjong slot

spaceman slot

https://www.saymynail.com/

slot bet 200

slot garansi kekalahan 100

rtp slot

Slot bet 100

slot 10 ribu

slot starlight princess

https://moolchandkidneyhospital.com/

situs slot777

slot starlight princes

slot thailand resmi

slot starlight princess

slot starlight princess

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

ceriabet

ceriabet

ceriabet

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

slot starlight princess

ibcbet

sbobet

roulette

baccarat online

sicbo