
विनायक चतुर्थी कल, जानिए पूजनविधि, महत्व और चंद्रदर्शन के लाभ
पुरुषोत्तम मास (मलमास) की अवधि के मध्य प्रथम अधिक श्रावण शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी का महापर्व 21 जुलाई, शुक्रवार को मनाया जाएगा। भगवान गणेश और चंद्रमा के संयोग से निर्मित होने वाली सभी चतुर्थियों की महत्वता का वर्णन सभी पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से मिलता है। गणेशजी ज्ञान और बुद्धि के ऐसे देवता हैं, जिनकी उपासना जीवन को शुभ-लाभ की दिशा देती है। चतुर्थी तिथि के देवता भगवान गणेश, अधिकमास के श्रीविष्णु एवं श्रावण मास के स्वामी भगवान शिव हैं।
वास्तु नियमों से करें पूजा
सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान गणेश को जल,पंचामृत रोली,अक्षत,सुपारी,जनेऊ,सिन्दूर, पुष्प,दूर्वा आदि से पूजा करें। फिर लड्डुओं का प्रसाद लगाकर दीप-धूप से उनकी आरती उतारें। सुख-समृद्धि की कामना से गणेशजी के मंत्र ‘ॐ गं गणपतये नमः’ या ‘वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
गणेशजी को विराजमान करने के लिए पूर्व, उत्तर-पूर्व या ब्रह्म स्थान को शुभ माना गया है। पूजा करते समय आराधक का मुख पूर्व या उत्तर में होना चाहिए। नीले और काले रंग के कपड़े पूजा में नहीं पहनने चाहिए। इनकी पूजा में लाल, पीले, गुलाबी, हरे या केसरिया रंग के कपड़े पहनना अच्छा माना गया है।
चंद्र दर्शन का पौराणिक महत्व
शास्त्रों में उल्लेख है कि सौभाग्य,संतान,धन-धान्य,पति की रक्षा और संकट टालने के लिए चंद्रदेव की पूजा की जाती है। मान्यता है कि सूर्योदय से शुरू होने वाला यह व्रत चंद्र दर्शन के बाद पूर्ण होता है। इस दिन चंद्रोदय होने पर लोटे में जल भरकर उसमें लाल चन्दन,कुश ,पुष्प,अक्षत,शक्कर आदि डालकर चन्द्रमा को यह बोलते हुए अर्घ्य दें-‘गगन रुपी समुद्र के माणिक्य चन्द्रमा ! दक्ष कन्या रोहिणी के प्रियतम ! गणेश के प्रतिविम्ब !आप मेरा दिया हुआ यह अर्घ्य स्वीकार कीजिए’।



