
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के विरुद्ध राज्य सरकार को जांच का अधिकार, हाईकोर्ट ने बदला एकल पीठ का फैसला, जानें मामला
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने लखनऊ विश्वविद्यालय (लविवि) के प्रोफेसर बिमल जायसवाल की नियुक्ति की जांच के मामले में एकल पीठ के फैसले को पलटते हुए कहा है कि राज्य सरकार को उक्त जांच का आदेश देने का पूरा अधिकार है। इसी के साथ कोर्ट ने सरकार को यह छूट भी दी है कि वह नई कमेटी का गठन कर जांच करवा सकती है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी व न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील को मंजूर करते हुए पारित किया। एकल पीठ के 27 जनवरी के फैसले को चुनौती देते हुए, सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता कुलदीप पति त्रिपाठी ने दलील दी कि स्टेट यूनिवर्सिटी एक्ट की धारा 8 सरकार को वर्तमान मामले में जांच कराने की शक्ति देती है।
याचिका का प्रो. बिमल जायसवाल के अधिवक्ता ने विरोध करते हुए कहा गया कि एकल पीठ का फैसला विधि सम्मत है तथा उक्त जांच प्रतिवादी के नियुक्ति के 12 साल बाद शुरू की गई है। हालांकि कोर्ट ने पाया कि राज्य सरकार को ऐसी जांच कराने का पूर्ण अधिकार है। लेकिन जांच कमेटी में विश्वविद्यालय का कार्यभार देखने वाला व्यक्ति नहीं होना चाहिए जबकि प्रो. बिमल के विरुद्ध बनी जांच कमेटी के अध्यक्ष कुलपति थे। कोर्ट ने कहा कि सरकार चाहे तो नई कमेटी बनाकर जांच करा सकती है। लेकिन इसमें विश्वविद्यालय के कार्यभार को देखने वाला कोई व्यक्ति नहीं होना चाहिए।
प्रो. बिमल जायसवाल पर आरोप है कि उनके पिता प्रो. सियाराम जायसवाल लविवि में प्रोफेसर थे। लिहाजा वह ओबीसी आरक्षण का लाभ पाने के लिए अर्ह नहीं थे। लेकिन उन्होंने यह बात छिपाते हुए, वर्ष 2005 में उक्त पद आरक्षण का लाभ प्राप्त किया। उन पर अन्य अनियमितताओं के भी आरोप हैं।