धार्मिक

संतान सप्तमी व्रत होता है अत्यंत फलदायी

आज संतान सप्तमी है, इस व्रत को माताएं अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और उन्नति हेतु करती हैं, तो आइए हम आपको संतान सप्तमी की व्रत विधि तथा महत्व के बारे में बताते हैं।

जाने संतान सप्तमी व्रत के बारे में
प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को संतान सप्तमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन महिलाए शिव-पार्वती की पूजा कर उनसे संतान सुख और उसकी उन्नति की कामना करती है। इस व्रत में कथा का बहुत महत्व है संतान सप्तमी की पूजा के बाद इसकी कथा का जरूर श्रवण करें। संतान प्राप्ति की चाह रखने वालों के लिए संतान सप्तमी का व्रत पुण्य फलदायी माना जाता है। इस साल संतान सप्तमी 22 सितंबर 2023 को है। इसे ललिता सप्तमी, मुक्ताभरण सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। पंडितों का मानना है कि जो स्त्रियां संतान सुख से वंचित है उन्हें ये व्रत करना चाहिए, इसके प्रभाव से जल्द सूनी कोध भर जाती है। यह व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति, संतान रक्षा और संतान की उन्नति के लिये किया जाता है।

संतान सप्तमी व्रत का महत्व
पंडितों का मानना है कि इस व्रत को करने से महिलाओं की सूनी गोद भर जाती है, जो भी महिला संतान प्राप्ति की कामना से इस व्रत को करता है जल्द ही उसे संतान की प्राप्ति होती है। साथ ही माताएं अपनी संतान की सलामती और सफलता की कामना से इस व्रत को करती हैं।

संतान की लंबी आयु के लिए होता है संतान सप्तमी का व्रत

संतान की लंबी आयु के लिए संतान सप्तमी के दिन सूर्य देव को अर्घ्य दें। इसके बाद शिव जी और माता पार्वती को 21 बेलपत्र अर्पित करें, इससे संतान के जीवन में आने वाली सभी परेशानियां दूर होती हैं और उसकी आयु लंबी होती है।

संतान सप्तमी 2023 का शुभ मुहूर्त

ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04 बजकर 35 मिनट से सुबह 05 बजकर 22 मिनट तक

अभिजित मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 49 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक

गोधूलि मुहूर्त- शाम 06 बजकर 18 मिनट से 06 बजकर 42 मिनट तक

अमृत काल- सुबह 06 बजकर 47 मिनट से सुबह 08 बजकर 23 मिनट तक

संतान सप्तमी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि मथुरा में मेरे माता-पिता ने लोमश ऋषि की बहुत सेवा की। माता देवकी और वसुदेव की भक्ति देखकर ऋषि बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने उनसे संतान सप्तमी का व्रत करने को कहा था। ऋषि ने संतान सप्तमी की कथा बताई। कथा के अनुसार नहुष अयोध्यापुरी के राजा की पत्नी चंद्रमुखी और उसी राज्य में रह रहे विष्णुदत्त नाम के ब्राह्मण की पत्नी रूपवती अच्छी सहेली थी। एक दिन दोनों सरयू में स्नान करने गईं। वहां अन्य स्त्रियां पार्वती-शिव की प्रतिमा बनाकर पूजन कर रही थी। दोनों ने महिलाओं से इस पूजन का महत्व समझा और संतान प्राप्ति के लिए संतान सप्तमी व्रत को करने का संकल्म लेकर डोरा बांध लिया, लेकिन घर लौटने पर वो इस व्रत को करना भूल गईं। मृत्यु के पश्चात रानी वानरी और ब्राह्मणी ने मुर्गी की योनि में जन्म लिया. कालांतर में दोनों पशु योनि छोड़कर पुन: मानव योनि में आईं।

इस जन्म में चंद्रमुखी मथुरा के राजा की रानी बनी जिसका नाम था ईश्वरी, वहीं ब्राह्मणी का नाम भूषणा था। इस जन्म में भी दोनों में बड़ा प्रेम था। भूषणा को पुर्नजन्म का व्रत याद था, इसलिए उसकी इस जन्म में आठ संतान हुई। लेकिन रानी व्रत भूलने के कारण इस जन्म में भी संतान सुख नहीं भोग पाई। एक दिन भूषणा पुत्रशोक में डूबी रानी ईश्वरी को सांत्वना देने पहुंची लेकिन उसे देखते ही रानी के मन में ईर्ष्या पैदा हो गई। उसने उसके बच्चों को मारने का प्रयास किया लेकिन शिव-पार्वती और व्रत के प्रभाव से भूषणा के बच्चों को कोई नुकसान नहीं हुआ। उसने भूषणा को बुलाकर सारी बात बताईं और फिर क्षमा याचना करके उससे पूछा- आखिर तुम्हारे बच्चे मरे क्यों नहीं। भूषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात याद दिलाई और कहा कि संतान सप्तमी व्रत के प्रभाव से मेरे पुत्रों का बाल भी बांका नहीं हुआ। इसके बाद रानी ईश्वरी ने भी संतान सुख पाने वाले ये व्रत रखा और 9 माह बाद एक सुंदर बालक को जन्म दिया। तब से ही संतान प्राप्ति और उसकी रक्षा के लिए ये व्रत किया जाता है।

संतान सप्तमी व्रत की पूजन सामग्री
पंडितों के अनुसार संतान सप्तमी की पूजा में शिव जी की परिवार प्रतिमा अवश्य होना चाहिए। इसके अलावा लकड़ी की चौकी, कलश, अक्षत, रोली, मौली, केले का पत्ता, श्वेत वस्त्र, फल, फूल ,आम का पल्लव, भोग लगाने के लिए सात-सात पूआ या मीठी पूड़ी, कपूर, लौंग, सुपारी, सुहाग का सामान, चांदी का कड़ा या रेशम का धागा आवश्यक रूप से इसमें शामिल होना चाहिए।

इसलिए होता है संतान सप्तमी का व्रत
शास्त्रों के अनुसार यह व्रत स्त्रियां पुत्र प्राप्ति की इच्छा हेतु करती हैं। यह व्रत संतान के समस्त दुःख, परेशानी के निवारण के उद्देश्य से किया जाता हैं। संतान की सुरक्षा का भाव लिये स्त्रियां इस व्रत को पुरे विधि विधान के साथ करती हैं। यह व्रत पुरुष अर्थात माता पिता दोनों मिलकर संतान के सुख के लिए रखते हैं।

संतान सप्तमी पर ऐसे करें पूजा मिलेगा लाभ
ब्रहृम मुहूर्त में उठकर स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें। इसके बाद शिव जी व विष्णु जी की पूजा करें। तत्पश्चात संतान सप्तमी व्रत तथा पूजन का संकल्प लें। निराहार रहते हुए शुद्धता से पूजन का सामान तैयार करें। इस पूजन में गुड़ से बने सात पुआ, खीर। फिर गंगाजल से छिड़ककर पूजन स्थल को शुद्ध करें। इसके बाद लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। जिस पर शिव परिवार की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। इसके सामने कलश की स्थापना करें। कलश में जल, सुपारी, अक्षत,1 रुपए का सिक्का, डालकर उस पर आम का पल्लव लगाएं।

जिसके ऊपर एक प्लेट में चावल रखकर एक दीपक उसके ऊपर जला दें। फिर भगवान को चढ़ाने वाले आटे और गुड़ के 7-7 पुए जिसे महाप्रसाद कहते हैं, इन्हें केले के पत्ते में बांधकर वहां पर रख दें। इसके बाद फल-फूल, धूप दीप से विधिवत पूजन करते हुए पूजा की शुरूआत करें। यदि चांदी की नया कड़ा बनवाया है तो ठीक है, यदि पुराना उपयोग कर रहे हैं तो पहले चांदी के कड़े को शिव परिवार के सामने रखकर दूध व जल से शुद्ध करके टीका लगाकर भगवान का आशीर्वाद ले लें। इसके बाद चांदी के कड़े को अपने दाहिने हाथ में पहने। इसके बाद संतान सप्तमी व्रत कथा सुने।

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