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Rotomac ग्रुप के मालिक विक्रम कोठारी सीबीआई हिरासत में
लोन बैंकों ने दिये तो कागजात भी लिए होंगे। जब मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा हुआ है तो इसमें
फ्राड कहॉं हो गया। कोई जरूरी तो नहीं कि बैंक लोन की किस्तें आपको एकदम समय से ही मिल जायें।
व्यापार में उतार-चढ़ाव आते ही हैं, इसलिए ये समझ कर चलना कि किसी भी व्यापार में समय
से ही सबकुछ सम्भव हो जाता है। ऐसा नहीं है। व्यापार के लिए नोटबन्दी और जीएसटी एक कठिन घड़ी रही है।
ऐसे माहौल में जो उद्योगपति बैंक, एनसीएलटी के सम्पर्क में था और बैंक आफ बड़ौदा द्वारा विलफुल डिफाल्टर घोषित किये जाने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा था और जहॉं से बैंक आफ बड़ौदा को कोर्ट उसका नाम विलफुल डिफाल्टर लिस्ट से हटाने का आदेश दिया था, आखिरकार वो भगोड़ा कैसे बना दिया गया?
इसमें निश्चित रूप से बैंक आफ बड़ौदा के रीजनल मैनेजर ने चीटिंग की है। एक उद्योगपति को फ्राड में फंसाने की कोशिश है, जिसके लिए इस रीजनल मैनेजर के खिलाफ भी एफआईआर होनी चाहिए।
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