
जानिए खीरे के बिना क्यों अधूरी रहती है श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा
इस साल 6 सितंबर को कृष्ण जन्माष्टमी है। कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने धरती पर मौजूद लोगों को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए कृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था। हर साल कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात्रि में हुआ था, इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा रात में की जाती है। इस दिन श्रृंगार, भोग के साथ बहुत सी चीजें पूजा में इस्तेमाल की जाती हैं। इसके अलावा कृष्ण जन्माष्टमी पूजा में खीरे का उपयोग जरूर होता है। कहा जाता है कि खीरे के बिना भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव अधूरा माना जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि जन्माष्टमी की पूजा में खीरे का इस्तेमाल क्यों होता है और क्या है इसका महत्व…
जन्माष्टमी पूजा में खीरे का महत्व
कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा में लोग खीरा जरूर चढ़ाते हैं। इस दिन ऐसा खीरा लाया जाता है, जिसमें थोड़ा डंठल और पत्तियां लगी हों। मान्यता है कि खीरे से श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों के सारे दुख दर्द हर लेते हैं।
खीरे के बिना जन्माष्टमी की पूजा होती है अधूरी
जन्माष्ठमी की पूजा में खीरे के उपयोग के पीछे की मान्यता है कि जब बच्चा पैदा होता है तब उसको मां से अलग करने के लिए गर्भनाल को काटा जाता है। ठीक उसी प्रकार जन्माष्टमी के दिन खीरे को उसके डंठल से काटकर अलग किया जाता है। ये भगवान श्री कृष्ण को मां देवकी से अलग करने का प्रतीक माना जाता है। ऐसा करने के बाद ही विधि-विधान से पूजा शुरू की जाती है।
ऐसे करें नाल छेदन
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन खीरे को काटने की प्रक्रिया को नाल छेदन कहा जाता है। इस दिन पूजा के दौरान खीरे को भगवान कृष्ण के पास रख दें। रात में जैसे ही 12 बजे यानी भगवान कृष्ण का जन्म हो, उसके तुरंत बाद एक सिक्के की मदद से खीरा और डंठल को बीच से काट दें।
पूजा के बाद क्या करें इस खीरे का?
ज्यादातर लोग कान्हा के जन्म में इस्तेमाल होने वाले खीरे को प्रसाद के रूप में बांट देते हैं। वहीं कुछ जगहों पर इसे नवविवाहित महिला या गर्भवती महिला को खिलाया जाता है। मान्यता है कि नवविवाहिता या गर्भवती महिला को ये खीरा खिलाने से भगवान श्रीकृष्ण की तरह पुत्र की प्राप्ति होती है।