Jaya Parvati Vrat 2023: कब और क्यों रखा जाता है जया पार्वती व्रत
सनातन परंपरा में जया पार्वती व्रत को काफी शुभ माना गया है। ये व्रत अषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष से शुरू होता है। जोकि, कृष्ण पक्ष की तृतीया के दिन खत्म होता है। जबकि,प्रारंभ के दिन आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि पड़ रही है। इसके अलावा समाप्त के दिन श्रावण मास की कृष्ण पक्ष तृतीया/चतुर्थी तिथि पड़ रही है। दरअसल, इस बार यह व्रत 1 जुलाई शनिवार को शुरू होगा और 6 जुलाई, दिन गुरुवार को समाप्त होगा।
धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत में माता पार्वती व शिव की पूजा की जाती है। इसके अनुसार, व्रत करने से स्त्रियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति का वरदान प्राप्त होता है। इसके साथ ही माता पार्वती के आशीर्वाद से अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद भी मिलता है। आइए जानें क्या है जया पार्वती व्रत की कथा।
जया पार्वती व्रत का क्या है धार्मिक महत्व?
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, ये व्रत खासतौर पर गुजरात में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अविवाहित युवतियां योग्य वर की कामना से यह व्रत रखती हैं, जबकि सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए जया पार्वती व्रत रखती हैं।
कहा जाता है कि ये व्रत काफी कठिन होता है। जोकि पांच दिनों तक चलता है। यह आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी से प्रारंभ होकर सावन माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि तक चलता है। माना जाता है कि इस व्रत को महिलाएं तकरीबन 5,7,9, 11 या फिर 20 साल तक करना चाहिए।
जया पार्वती व्रत के क्या हैं नियम?
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जया पार्वती व्रत में सुहागिन महिलाओं को मिट्टी के पात्र में गेंहू के बीज लगाए जाते है। जिसके बाद उस बर्तन की अगले 5 दिनों तक उपासना की जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जया पार्वती व्रत कर रही सुहागिन महिलाओं को व्रत के दौरान अगले 5 दिनों तक गेंहू से बनी कोई चीज नहीं खानी चाहिए।
व्रत के दौरान सुहागिन महिलाओं को नमक और खट्टी चीजों से परहेज करना चाहिए। जबकि, फलों का सेवन कर सकती है।
व्रत के आखिरी दिन पूजा कर रही महिलाओं को गेंहू से भरे पूजा के बर्तन को किसी नदी या तालाब में प्रवाहित कर देना चाहिए।



