फ्लैश न्यूजसाइबर संवाद
मजदूरों की बिवाइयों से झाँकता राष्ट्रवाद !——
यह बात समाज को सीधे अमीर और गरीब में बांट रही है। सरकार के दोहरे मापदंडों पर सवाल उठा रही है? हालही में उत्तर प्रदेश सरकार का मजूदरों की सुरक्षा के लिए बने श्रम कानून को निलंबित करना एक दुखद एवं हास्यास्पद पहलू है, लेकिन सब चुप हैं।
ये फैसला एक बड़ा अभिशाप बनके मजदूरों के सामने आया है। अब उद्योगपति मजदूरों का खून चूसने के लिए स्वतंत्र कर दिये गए हैं। राष्ट्रवाद, मजदूरों के खून और उनकी मौतों के साथ निर्थक हो गया है। जिस देश में सबसे कमजोर वर्गों मजदूर,किसान की अनदेखी हो, वह देश सदैव आन्तरिक रूप से कमजोर रहेगा।
दुर्भाग्य की बात यह है कि अब भी भारतीय मीडिया के पास इतना समय है की वह पाकिस्तान से कैसे भारत श्रेष्ठ है, यह दिखाने में व्यस्त है। कैसे भारत पीओके पर कब्जा कर सकता है। कैस हम उसे अपने नक्शे में मिला सकते हैं। अब चश्मा बदलने की जरूरत है क्योंकि इतिहास हमको कभी माफ नही करेगा।
दुःख की बात यह है कि सरकार के लिए सिर्फ कानूनों का पालन कराने भर से मजदूरों का भला हो जाता। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (2005), अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम (1979) और स्ट्रीट वेंडर अधिनियम (2014), के अलावा संविधान का आर्टिकल-21 हैं जो यह सुरक्षा देता है कि श्रमिक पूर्ण और समय पर मजदूरी के भुगतान के हकदार हैं। विस्थापन भत्ता, यात्रा के दौरान मजदूरी के भुगतान सहित भत्ता भी दिलाया जाना चाहिए था। इन कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है।
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