धार्मिक

तीनों लोकों के पहले पत्रकार थे देवर्षि नारद, 6 मई को मनाई जा रही नारद जयंती

हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि पर नारद जयंती मनाई जाती है। इस साल नारद जयंती 6 मई को मनाई जा रही है। शास्त्रों के मुताबिक कठोर तपस्या के बाद नारद जी ने देवलोक में ब्रम्हऋषि का पद प्राप्त किया था। बता दें कि नारद जी एकमात्र ऐसे देवता थे, जिन्हें तीनों लोकों में भ्रमण करने की वरदान प्राप्त था। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र नारद जी ब्रह्माण्ड के संदेशवाहक कहे जाते हैं। नारद जी सदैव भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते हैं। वह तीनों लोकों के पत्रकार भी कहे जाते हैं।

नारद जयंती तिथि
मान्यता के अनुसार, नारद जयंती पर नारद जी की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति होती है। वैशाख शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के अगले दिन यानी की जेष्ठ माह के पहले दिन नारद जयंती मनाई जाती है। इस दिन गंगा में स्नान करने का भी विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस दिन गंगा स्नान करने से मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। ज्येष्ठ माह की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 5 मई को रात 11:03 मिनट पर हो रही है। वहीं 6 मई को रात 09:52 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगा। वहीं उदयातिथि के हिसाब से 6 मई को नारद जयंती का पर्व मनाया जा रहा है।

जन्म कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबकि अपने पूर्व जन्म में नारद ‘उपबर्हण’ नामक गंधर्व थे। उपबर्हण को अपने रूप का बहुत घमंड था। एक बार जब स्वर्ग में अप्सराएं और गंधर्व गीत व नृत्य से सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे। उसी दौरान उपबर्हण ने स्त्रियों के साथ स्वर्ग में प्रवेश किया और वह रामलीला में लीन हो गए। यह देख ब्रह्मा जी ने क्रोधित होकर उनको श्राप देते हुए कहा कि उनका अगला जन्म शूद्र योनि में होगा।

ब्रह्मा जी के श्राप के कारण ‘उपबर्हण’ का अगला जन्म शूद्र दासी के घर हुआ। इसके बाद वह भगवान की भक्ति में दिन रात लीन रहने लगे। कहा जाता है कि जब उपबर्हण एक दिन वृक्ष के नीचे बैठे ध्यान कर रहे थे। तभी उनको अचानक से भगवान की एक झलक दिखी। जो फौरन ही अदृश्य भी हो गई। इसके बाद उनकी भगवान के प्रति आस्था और दृढ़ व गहरी हो गई।

फिर एक दिन आकाशवाणी हुई कि उपबर्हण इस जन्म में कभी भगवान के दर्शन नहीं कर पाएंगे। लेकिन अगले जन्म में वह उनके पुत्र होगें। इस आकाशवाणी के बाज उपबहर्ण ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की। उसी तपस्या के प्रभाव से उनका ब्रम्हा जी के मानस पुत्र नारद जी के रूप में अवतार हुआ।

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