खेल-खिलाड़ी

जूते खरीदने के लिए नहीं थे पैसे, दिहाड़ी मजदूरी कर नानी ने पाला

किसी ने ठीक ही कहा है जहां चाह वहां राह। जिंदगी में आपके सामने भले ही कितनी भी मुश्किलें आएं। लेकिन अगर आप हार नहीं मानेंगे तो मुश्किलों को दम तोड़ना ही पड़ेगा और सफलता को आपके पास आना ही होगा। टोक्यो ओलंपिक 2020 का आगाज हो चुका है और सभी भारतीय खिलाड़ी भारत को मेडल दिलाने के लिए पहुंचे हैं। भारतीय भारत्तोलक मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल के साथ ओलंपिक 2020 में पदक की रेस में भारत का खाता खोल दिया है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी एथलीट की कहानी सुनाएंगे जिनके संघर्ष की दास्तां आपको किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं लगेगी।

पांच साल की उम्र में ही रेवती अनाथ हो गईं थीं। इनकी नानी ने इनको पाला और एक समय तो रेवती के रिश्तेदारों ने इनकी नानी को यहां तक कह दिया कि आप आराम कीजिए और रेवती को काम पर लगाइए। लेकिन इनकी नानी नहीं मानी और अब रेवती ओलंपिक में गईं हैं और भारत को मेडल दिलाने के लिए पूरी कोशिश करेंगी।

पांच साल की उम्र में अनाथ हुई रेवती वीरामनी को उनकी दिहाड़ी मजदूर नानी ने पाला। रेवती को शुरुआत में नंगे पैर दौड़ना पड़ा क्योंकि उनके पास जूते खरीदने के पैसे नहीं थे। 23 साल की रेवती टोक्यो ओलंपिक 2020 में हिस्सा ले रही हैं। रेवती भारत की 4×400 मीटर मिक्सड रिले टीम का हिस्सा हैं। रेवती ने जिन मुश्किल हालात का सामना किया उन्हें याद करते हुए वो कहती हैं।

मुझे बताया गया था कि मेरे पिता के पेट में कुछ तकलीफ थी जिसके कारण उनका निधन हो गया, इसके छह महीने बाद दिमागी बुखार से मेरी मां भी चल बसी। जब उनकी मौत हुई तो मैं छह बरस की भी नहीं थी। मुझे और मेरी बहन को मेरी नानी के अराम्मल ने पाला। हमें पालने के लिए वह बहुत कम पैसों में भी दूसरों के खेतों और ईंट भट्ठों पर काम करती थी।

रेवती ने अपने पुराने दिनों के बारे में जिक्र करते हुए मीडिया को बताया कि हमारे रिश्तेदारों ने नानी को कहा कि वह हमें भी काम पर भेजें लेकिन उन्होंने इनकार करते हुए कहा कि हमें स्कूल जाना चाहिए । और पढ़ाई करनी चाहिए। रेवती और उनकी बहन 76 साल की अपनी नानी के जज्बे के कारण स्कूल जा पाई। दौड़ने में प्रतिभा के कारण रेवती को रेलवे के मदुरै खंड में टीटीई की नौकरी मिल गई जबकि उनकी छोटी बहन अब चेन्नई में पुलिस अधिकारी है।

तमिलनाडु के खेल विकास प्राधिकरण के कोच के कन्नन ने स्कूल में रेवती की प्रतिभा को पहचाना। रेवती की नानी शुरुआत में उन्हें दौड़ने की स्वीकृति देने से हिचक रही थी। लेकिन कन्नन ने उन्हें मनाया और रेवती को मदुरै के लेडी डोक कॉलेज और छात्रावास में जगह दिलाई। बस वहीं से शुरू हुआ रेवती का असली सफर। रेवती वीरामणि ने साल 2016 से 2019 तक कन्न के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग की और फिर उन्हें पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) में राष्ट्रीय शिविर में चुना गया है।

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