धार्मिक

करवा चौथ से भी कठिन है हरितालिका तीज का व्रत, इस तरह पूजन कर पाएं अखण्ड सौभाग्य

हिन्दू धर्म में हरितालिका तीज के व्रत का अपना खास महत्व है क्योंकि सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए इस तीज का व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। हरितालिका व्रत भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र को होता है। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है। देश के उत्तरी राज्यों में इस व्रत का चलन ज्यादा है। जिस तरह देश भर में करवा चौथ का व्रत पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है उसी प्रकार हरितालिका तीज भी मनाई जाती है। यह व्रत करवा चौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवा चौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती के समान सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।

हरितालिका तीज तिथि और पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय
इस वर्ष हरितालिका तीज का पर्व 9 सितम्बर, गुरुवार को पड़ रहा है। इस दिन सूर्योदय से पहले कुछ भोज्य पदार्थ और जल ग्रहण कर लेना चाहिए क्योंकि उसके बाद पूरे दिन निर्जल रह कर ही व्रत करना होता है। इस दिन प्रातःकाल पूजा का मुहूर्त 6 बज कर 3 मिनट से लेकर सुबह 8 बज कर 33 मिनट तक है। इसी प्रकार प्रदोषकाल हरितालिका तीज पूजा मुहूर्त शाम 6 बज कर 33 मिनट से लेकर रात्रि 8 बज कर 51 मिनट तक है।

हरितालिका तीज पूजन विधि

इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ ही भगवान गणेश की स्थापना कर चंदन, अक्षत, धूप दीप, फल फूल आदि से षोडशोपचार पूजन किया जाता है और पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है। इस दिन जहां विवाहित महिलाएं भगवान शिव से प्रार्थना करती हैं कि मेरे पति दीर्घायु हों और मेरा सुगाह अटल हो वहीं कुंवारी कन्याएं भगवान शिव से विनम्र प्रार्थनी करती हुई वर मांगती हैं कि उनका होने वाला पति सुंदर और सुयोग्य हो। आरती के बाद भगवान को मेवा तथा मिष्ठान्न का भोग लगाया जाता है। इसके बाद अगले दिन सुहाग के सामान में से कुछ चीजें ब्राम्हण की पत्नी को दान दे दी जाती हैं और बाकी वस्तुएं व्रती स्त्रियां खुद रखती हैं। इस प्रकार चतुर्थी को स्नान के बाद पूजा कर सूर्योदय के बाद वे पारण कर व्रत तोड़ती हैं। स्त्रियों को व्रत के दिन सायं को शिव−पार्वती की कथा अवश्य सुननी चाहिए।

हरितालिका तीज व्रत कथा
एक बार भगवान शंकर माता पार्वती से बोले कि तुमने पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक घोर तपस्या की थी। तुम्हारी इस तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता दु:खी थे कि एक दिन नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने नारदजी का सत्कार करने के बाद उनसे आने का प्रयोजन पूछा तो उन्होंने बताया कि वह भगवान विष्णु के आदेश पर यहां आए हैं। उन्होंने कहा कि आपकी कन्या ने कठोर तप किया है और उससे प्रसन्न होकर वह आपकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानने आया हूं। नारदजी की बात सुनकर गिरिराज खुश हो गये और उनको लगा कि सारी चिंताएं दूर हो गईं। वह बोले कि इसमें मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। हर पिता की यही इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख−संपदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने।

नारदजी यह बात सुनकर भगवान विष्णु के पास गये और उन्हें सारी बात बताई। लेकिन जब इस विवाह की बात तुम्हें पता चली तो तुम्हें दुरूख हुआ और तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारी मनोदशा को जब भांप लिया तो तुमने उसे बताया कि मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिव शंकर का वरण किया है लेकिन मेरे पिता ने मेरा विवाह भगवान विष्णु के साथ तय कर दिया है इसी से मैं दुविधा में हूं। मेरे पास प्राण त्यागने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। यह सुनने के बाद तुम्हारी सहेली ने तुम्हें समझाया और जीवन की सार्थकता से अवगत कराया। वह तुम्हें घनघोर जंगल में ले गई जहां तुम्हारे पिता तुमको खोज नहीं पाते। वहां तुम साधना में लीन हो गई और तुम्हें विश्वास था कि ईश्वर तुम्हारे कष्ट दूर करेंगे। तुम्हारे पिता तुम्हें ढूंढ−ढूंढ कर परेशान हो गये और यह सोचने लगे कि कहीं भगवान विष्णु बारात लेकर घर आ गये और तुम नहीं मिली तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। दूसरी ओर तुम नदी के तट पर एक गुफा में साधना में लीन थी। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया और रात भर मेरी स्तुति की।
भगवान शंकर ने माता पार्वती से कहा, तुम्हारी इस कठिन तपस्या से मेरा आसन डोलने लगा और मेरी समाधि टूट गई। मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुम्हारे पास पहुंचा और तुमसे वर मांगने के लिए कहा तो तुमने मुझे अपने समक्ष पाकर कहा कि मैं आपका वरण कर चुकी हूं यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें। तब मैंने तथास्तु कहा और कैलाश पर्वत पर लौट आया। अगले दिन तुम्हारे पूजा समाप्त करने के समय ही तुम्हारे पिता तुम्हें ढूंढते−ढूंढते वहां आ पहुंचे। तुम्हारी दशा देखकर वह दुखी हुए। तुमने उन्हें बताया कि क्यों तुमने यह तपस्या की। इसके बाद वह तुम्हारी बातें मानकर तुम्हें घर ले गये और कुछ समय बाद हम दोनों का विवाह संपन्न कराया।

भगवान बोले, हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना की इसी कारण हमारा विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुमारियों को मन मुताबिक फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा रखने वाली हर युवती को यह व्रत करना चाहिए।

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