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Rail Minister ji, Train में बिक रहे प्लास्टिक के चावल
जहॉंतक पेन्ट्रीकार से परेासे जाने वाले नाश्ते और भोजन का प्रश्न है, सही में ये बिलो-स्टैण्डर्ड ही होते हैं। पता नहीं किस आधार पर और क्या ले-देकर ठेका दिया जाता है। कोई भी ठेकेदार सही भोजन सप्लाई ही नहीं करता, पैसे हपक के लेता है।
बात रेलवे बोर्ड तक पहुंचने के बाद भी यदि व्यवस्था में सुधार ना हो तो समझा जा सकता है कि हालात किस हद तक सड़ चुके हैं। पता नहीं रेलवे मिनिस्टर, गोयल जी को इसकी जानकारी है या नहीं लेकिन ये सत्य है कि ले-दे के यात्रीयों को ही झूठा साबित कर दिया जायेगा और ये धन्धा जोरों पर चलता रहेगा।
कर्मचारी/अधिकारी सुधरने को ही तैयार नहीं है। बात करेगा नोटबन्दी और जीएसटी की। लोगों को परेशानी किस बात की है? टैक्स तो जनता पहले भी दे रही थी, आज भी दे रही है, बल्कि पहले से अधिक दे रही है। फिर इन व्यापारियों/ठेकेदारों/सप्लाई-कर्ताओं आदि को तकलीफ क्यों? क्या वे अपनी जेब से टैक्स दे रहे हैं?
दरअसल चोरी और भ्रष्टाचार करते-करते यहॉं का आदमी इतना हरामखोर हो गया है कि कोई भी ईमानदार पहल को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। रेलवे बोर्ड के नये चेयरमैन लोहानी जी को सख्त कार्रवाई करने के साथ सभी ट्रेनों में चलने वाली पेन्ट्रीकार पर अकस्मात छापेमारी करानी चाहिए।
ऐसा नहीं है कि छापेमारी करने वालों को इसका पता नहीं होता। ऐसे धन्धे एकदम आरगेनाइज्ड तरीके से किये जाते हैं। इसमें इन्सपेक्टर से लेकर आगे तक के अधिकारियों को इस गोरखधन्धे की रकम माहवारी के रूप में पहुंचाई जाती है।
रेलवे पुलिस की भी बहुत बड़ी भूमिका इसमें होती है, जिसकी जांच आवश्यक है।
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