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Mayawati की धमकी राजनीति से प्रेरित
Mayawati की इस धमकी से बीजेपी और हिन्दुओं पर कोई असर होने वाला नहीं है क्योंकि हिन्दू तो बुद्ध को विष्णु का अवतार और बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म का एक पंथ ही मानते हैं। वैसे भी यह बात उल्लेखनीय है कि मायावती ऐसी घोषणा तब करती हैं, जब वह सत्ता के बाहर होती हैं।
इसी के साथ यह कोई ऐसी शर्मनाक बात नहीं है कि उनको इससे रोकने के लिए कोई उनका मान-मनौव्वल करेगा! बौद्ध धर्म कोई ऐसा धर्म तो नहीं कि उससे किसी का कोई दुराव अथवा मनमुटाव हो। कोई हेय दृष्टि से देखा जाने वाला धर्म तो है नहीं। सम्मानित धर्म है, फिर उसे अपनाने में ऐसा क्या है कि उसे धमकी के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
बौद्ध धर्म
प्रेस को जारी एक बयान में एस. आर. दारापुरी, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं संयोजक जनमंच, उत्तर प्रदेश ने कहाकि, Mayawati की धर्म परिवर्तन की धमकी के पीछे दो उद्देश्य हैं-एक तो भाजपा जो हिंदुत्व की राजनीति कर रही है पर दबाव बनाना। और दूसरे हिन्दू धर्म त्यागने की बात कह कर दलितों को प्रभावित करना। मायावती सत्ता में होने पर धर्म परिवर्तन की बात करके सर्वजन को नाराज करने से डरती हैं और अब उसके खिसक जाने से धमकी दे रही हैं एवं साथ ही दलितों को प्रभावित करना चाहती हैं।
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Mayawati ने इसी प्रकार की घोषणा 2006 में भी की थी। उस समय उन्होंने कहा था कि वह धर्म परिवर्तन की स्वर्ण जयंती के अवसर पर नागपुर जा कर धर्म परिवर्तन करेंगी। वह उस दिनांक को नागपुर गयी भी थीं, परन्तु उन्होंने वहां धर्म परिवर्तन नहीं किया था। बल्कि वह अपने अनुयायियों से यह कह कर चली आई थीं कि वह धर्म परिवर्तन तभी करेंगी जब केन्द्र में बसपा की बहुमत की सरकार बनेगी।
इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मायावती का धर्म परिवर्तन, व्यक्तिगत आस्था से नहीं बल्कि राजनीति से जुड़ा हुआ मुददा है। मायावती अगर वास्तव में धर्म परिवर्तन करना चाहती हैं तो उन्हें कौन रोक रहा है। यह बात गौरतलब है कि भाजपा ने धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए सभी भाजपा शासित राज्यों में सख्त कानून बनाये हैं। अगर मायावती सचमुच में धर्म परिवर्तन की पक्षधर हैं तो उन्हें इन कानूनों का राजनीतिक स्तर पर विरोध करना चाहिए। परन्तु उन्होंने आज तक ऐसा नहीं किया है।
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यह भी देखना समीचीन होगा कि सत्ता में रहकर मायावती ने बौद्ध धर्म के लिए क्या किया है? हाँ, उन्होंने बुद्ध की कुछ मुर्तियां तो जरूर लगवायीं परन्तु बुद्ध की विचारधारा को फैलाने के लिए कभी कुछ भी नहीं किया।
यह बात विशेष तौर पर विचारणीय है कि 2001 से 2010 के दशक में जब मायावती तीन बार मुख्यमंत्री रहीं। उसी दशक में उत्तर प्रदेश में बौद्धों की जनसख्या एक लाख कम हो गयी। जैसा कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों से स्पष्ट है। क्या यह बौद्ध धर्म आन्दोलन पर सर्वजन की राजनीति के कुप्रभाव का परिणाम नहीं है?
बताते चलें कि सपा सुप्रीमो मायावती ने बीते मंगलवार को एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी ने दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के प्रति अपनी सोच नहीं बदली तो वह अपने समर्थकों के साथ हिन्दू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपना लेंगी। बता दें कि मंगलवार को बसपा सुप्रीमो आजमगढ़ में रैली को संबोधित करने पहुंची थी। इसी दौरान उन्होंने यह बयान दिया था।
NIS Lucknow Bureau
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