फ्लैश न्यूजसाइबर संवाद

कोई धारणा बनाने से पहले इस महानायक को जान भी लीजिए

Rajesh Badal  की रिपोर्ट:

इन दिनों विनोद दुआ के ख़िलाफ़ भारतीय जनता पार्टी के एक प्रवक्ता की ओर से दर्ज़ कराई गई प्राथमिकी की चर्चा है। आरोप है कि अपनी तल्ख़ और बेबाक टिप्पणियों से उन्होंने इस पार्टी के नियंताओं को जानबूझ कर परेशान किया है।

किसी भी सभ्य लोकतंत्र में असहमति के सुरों को दण्डित करने की इस साज़िश की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए। इस मामले के बाद उनके बारे में मनगढंत कथाओं की बाढ़ सी आ गई है। इस कारण मुझे यह टिप्पणी लिखने पर मजबूर होना पड़ा है। मैं मामले का पोस्ट मार्टम नहीं करना चाहता। अलबत्ता यह कह सकता हूँ कि इस तरह के षड़यंत्र केवल परेशान करने के लिए ही रचे जाते हैं।
उनका कोई सिर-पैर नहीं होता। समय के साथ वे कपूर की तरह उड़ जाते हैं।

मानसिक उत्पीड़न का यह सिलसिला यक़ीनन परेशान करता है। छोटे परदे पर उपलब्धियों का कीर्तिमान रचने वाले विनोद दुआ को अपने ही मुल्क़ में सम्मान की जगह संत्रास दिया जा रहा है-इसके लिए आने वाली नस्लें हमें माफ़ नहीं करेंगीं। वैसे भी हम भारतीय किसी बेजोड़ शख़्सियत के योगदान का उसके जीते जी मूल्यांकन नहीं करने के लिए कुख्यात हैं। जब वह नहीं रहता है, तब हमें उसके काम याद आते हैं।

दो दिन से उनके बारे में क्या क्या नहीं कहा गया। वे कांग्रेसी हैं,वामपंथी हैं। अव्वल तो वे न कांग्रेसी हैं और न वामपंथी हैं। वैसे अगर होते भी तो बहुदलीय लोकतंत्र में यह कोई अपराध नहीं है। कहा गया कि उन्होंने अनाप-शनाप दौलत अनुचित तरीक़ों से कमाई है। भारत की ज़िम्मेदार जाँच एजेंसियों के लिए यह खुली चुनौती हो सकती है।

हमने तो फटेहाल नेताओं को पार्टी के सत्ता में आते ही घर भरते देखा है। इन पार्टियों के राज नेताओं की अनेक अंतर कथाएँ मय सुबूतों के पिछले तैंतालीस बरस की पत्रकारिता में मेरे सामने आती रही हैं।उन पर आज तक ऊँगली नहीं उठाई गई। चालीस बरस तक देश की राजधानी में प्रथम श्रेणी के प्रसारक, प्रस्तोता और पत्रकार रहे ईमानदार भारतीय की जेब टटोलने वालों को अपने गिरेबान में भी झाँकना चाहिए।

पहले उनके विरुद्ध मी टू अभियान चलाकर चरित्र हनन करके उनकी ज़बान पर ताला डालने की कोशिश की गई। वह भी फुस्स हो गया। अब इस तरह के मामलों से उन्हें परेशान करने का कुचक्र चलाया जा रहा है। लेकिन यहाँ आरोप-प्रत्यारोप की अदालत लगाकर मैं नहीं बैठा हूँ। मैं सिर्फ़ यह बताना चाहता हूँ कि विनोद दुआ क्या हैं ?

इस देश में टेलीविज़न ने 1959 में दस्तक दी। लेकिन सही मायनों में उसे अस्सी के दशक में पंख लगे। ज़ाहिर है अकेला सरकारी दूरदर्शन था तो उसने उस ज़माने में पक्ष और प्रतिपक्ष, दोनों की सशक्त भूमिका निभाई। आज तो यह सत्ता का प्रवक्ता बनकर रह गया है। इसीलिए संसार का सबसे बड़ा नेटवर्क होते हुए भी स्वतंत्र पहचान के लिए छटपटा रहा है।

मगर उस दौर का डीडी ऐसा नहीं था। एक बेहद लोकप्रिय शो जनवाणी आया करता था। उसके कर्त्ता -धर्ता विनोद दुआ ही थे। सरकार कांग्रेस की थी। उस कार्यक्रम में सरकार के मंत्रियों की ऐसी ख़बर ली जाती थी कि उनकी बोलती बंद हो जाती। अनेक दिग्गज मंत्रियों ने प्रधानमंत्री से शिक़ायत की कि विनोद दुआ तो संघी हैं। विपक्ष की तरह व्यवहार करते हैं। सरकार के दूरदर्शन पर यह नहीं दिखाया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने उन्हें ठंडा पानी पिलाकर चलता किया। उनसे कहा कि पहले अपना घर ठीक करो। फिर शिक़ायत लेकर आना। एक उदाहरण ही काफी होगा। इन दिनों राजस्थान के मुख्यमंत्री किसी ज़माने में देश के नागरिक उड्डयन मंत्री होते थे। एक बार वे जनवाणी में आए। उनका इस साक्षात्कार में इतना दयनीय प्रदर्शन था कि उन्हें पद से हटा दिया गया। आज भी निजी मुलाक़ात में अगर परख का ज़िकर आ जाए तो वे यह घटना सुनाना नहीं भूलते ।

उन दिनों चुनाव परिणाम हाथ से मतपत्रों की गिनती के बाद घोषित किए जाते थे। इस प्रक्रिया में दो -तीन दिन लग जाते थे। रात दिन दूरदर्शन पर ख़ास प्रसारण चलता था। विनोद दुआ और डॉक्टर प्रणव रॉय की जोड़ी इन चुनाव परिणामों और रुझानों का चुटीले अंदाज़ में विश्लेषण करती थी। यह जोड़ी सार्थक और सकारात्मक पत्रकारिता करती थी।

कांग्रेसी नेताओं की जमकर बखिया उधेड़ती तो बीजेपी के नेता भी पानी माँगते थे। कम्युनिस्ट दलों के प्रति भी उतनी ही निर्मम रहती थी। इसके बावजूद राजीव गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, सिकंदर बख़्त, कुशाभाऊ ठाकरे, इंद्रजीत गुप्त, बसंत साठे, अर्जुनसिंह, शरद पंवार, मधु दंडवते, बाल ठाकरे, जॉर्ज फर्नांडिस और ज्योति बसु जैसे धुरंधर इन दोनों के मुरीद थे।

लोगों को याद है कि 1989 और 1991 के चुनाव में राजीव गांधी, वीपी सिंह और चंद्रशेखर की आलोचना तिलमिलाने वाली होती थी। कभी उन पर किसी दल विशेष का पक्ष लेने या विरोध करने का आरोप नहीं लगा। नरसिंह राव सरकार बनी तो विनोद दुआ को साप्ताहिक समाचार पत्रिका परख की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।

मैं स्वयं पहले एपिसोड से आख़िरी एपिसोड तक परख की टीम में था। परख में उन दिनों संवाद उप शीर्षक से एक खंड होता था। इसमें भी देश के शिखर नेताओं और अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साक्षात्कार होते थे। कई बार इस कार्यक्रम में मंत्रियों के लगभग रोने की स्थिति बन जाती। उनके पास अपने मंत्रालयों की ही पुख़्ता जानकारी नहीं होती थी। उन्होंने भी प्रधानमंत्री से विनोद दुआ की शिकायत की। कहा कि विनोद दुआ भाजपाई हैं, हिंदूवादी हैं।

नरसिंह राव ने भी उन्हें वही उत्तर दिया,जो राजीव गांधी ने दिया था। उन्होंने कहा कि अपना काम और मंत्रालय का काम सुधारिए। परख की एक रिपोर्ट मैंने गुजरात जाकर सरदार सरोवर की ऊंचाई के मुद्दे पर की थी। उन दिनों विद्याचरण शुक्ल जैसे तेज़ तर्रार मंत्री प्रधानमंत्री के ख़ास थे। उनके पास जल संसाधन विभाग था। उन तक पहले ही ख़बर पहुँच गई कि परख में ऐसी रिपोर्ट दिखाई जा रही है ,जिससे विभाग की उलझन बढ़ जाएगी।

उन्होंने एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया, लेकिन मेरी वह रिपोर्ट नहीं रोक पाए। बाद में उस रिपोर्ट से संसद में बड़ा हंगामा हुआ। ख़ुद विद्याचरण शुक्ल ने मुझे बरसों बाद यह बात बताई। इसी तरह उनदिनों मध्यप्रदेश में डायन बताकर महिलाओं की हत्या करने के अनेक मामले आए। कांग्रेस सरकार थी। दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। इस रिपोर्ट को रुकवाने के ख़ूब प्रयास हुए। पर नाकाम रहे। जब रिपोर्ट प्रसारित हुई तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार को फटकार लगाई।

विनोद दुआ के कार्यक्रम पर कोई असर नहीं पड़ा। मैंने एक रिपोर्ट महाराष्ट्र के जलगाँव से की थी। एक सेक्स स्केंडल हुआ था। उसमें राजनेता भी शामिल थे। उस रिपोर्ट का प्रसारण रुकवाने के जमकर प्रयास हुए लेकिन किसी की नहीं चली। परख की कामयाबी के बाद सरकार ने विनोद दुआ को न्यूज़ वेब नामक दैनिक बुलेटिन सौंपा। भारत का यह पहला निजी बुलेटिन था। इसके भी पहले से लेकर अंतिम बुलेटिन तक विनोद दुआ के साथ मैंने काम किया।

क्या धारदार बुलेटिन था। सरकारें काँपती थीं। विनोद दुआ ने पत्रकारिता की निर्भीकता और निष्पक्षता से कभी समझौता नहीं किया। न्यूज़वेब के साथ बाद में ब्यूरोक्रेसी ने कुछ कारोबारी शर्तें रखीं। विनोद नहीं झुके और बुलेटिन की चंद महीनों में ही हत्या हो गई।

इसके बाद भी विनोद दुआ की पारी स्वाभिमान और सरोकारों वाली पत्रकारिता की रही है। दशकों से एनडीटीवी के डॉक्टर प्रणव रॉय के वे ख़ास दोस्त थे। एनडीटीवी पर अपना ख़ास बुलेटिन करते थे। इसके अलावा ज़ायक़े का सफ़र भी उनकी बड़ी चर्चित श्रृंखला थी। उसमें भी उन्होंने अपने पत्रकारिता धर्म से कोई समझौता नहीं किया।

एक रात कुछ बात हुई और एक झटके में विनोद ने एनडीटीवी को सलाम बोल दिया। न्यूज़ट्रैक, ऑब्ज़र्वर न्यूज़ चैनल और सहारा चैनल से भी उन्होंने कुछ ऐसे ही अंदाज़ में विदाई ली। पत्रकारिता के मूल्यों को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा, लाखों की नौकरियां पल भर में छोड़ते रहे।

कम लोग यह जानते हैं कि इण्डिया टीवी के सर्वेसर्वा रजत शर्मा ने विनोद दुआ के नेतृत्व में ही टीवी की पारी शुरू की थी। टीवी का ककहरा रजत शर्मा ने परख में ही सीखा था। वे पंजाब और हरियाणा से रिपोर्टिंग करते थे और मैं मध्यप्रदेश (उन दिनों छत्तीसगढ़ नहीं बना था) महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तरप्रदेश से रिपोर्टिंग करता था।

आज जो लोग विरोध कर रहे हैं, वे रजत शर्मा से विनोद दुआ की पत्रकारिता के बारे में पूछ सकते हैं। जाने माने पत्रकार और संपादक रहे दिलीप पडगांवकर आज इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उन्होंने भी विनोद दुआ के दफ़्तर में बैठकर टीवी की बुनियादी बातें जानी थीं। बाद में उन्होंने अपनी टीवी कंपनी बनाई, जिसने दूरदर्शन पर लोकप्रिय सुबह-सवेरे कार्यक्रम प्रारंभ किया था।

यह भी लोग नहीं जानते कि परख की टीम में संघ और बीजेपी की नब्ज़ समझने वाले विजय त्रिवेदी शामिल थे तो वामपंथ की ओर झुके मुकेश कुमार भी थे। लेकिन पत्रकारिता के दरम्यान कभी वैचारिक प्रतिबद्धताएँ आड़े नहीं आईं।

अंत में बता दूँ कि खाने-पीने के शौक़ीन विनोद दुआ बहुत अच्छे गायक भी हैं। पुरानी फ़िल्मों के गीत जब वे और उनकी दक्षिण भारतीय डॉक्टर पत्नी डूबकर गाते हैं तो सुनने वाले दंग रह जाते हैं। यह पीड़ादायक है कि अपने ही देश में पत्रकारिता के इस महानायक के साथ यह बरताव हो रहा है। विनोद दुआ यूरोप या पश्चिम के किसी देश में होते तो देवता की तरह पूजे जाते।

जैसे कि कार्टूनिस्ट आर0के0 लक्ष्मण को संसार भर के कार्टूनिस्ट एक देवता जैसा मानते हैं और अपने देश में ही लक्ष्मण ग़ुमनामी में खोये रहे और इस संसार से विदा हो गए। लेकिन हम भारतीय इतने कृतघ्न हैं कि अपने इन हस्ताक्षरों का उपकार मानना तो दूर, उन्हें व्यर्थ के विवादों में उलझाते हैं। किसी को उत्तर देना है तो विनोद दुआ के आँकड़ों और जानकारी को झूठा साबित करके बताए। इससे अधिक मैं क्या कहूँ।

राज्‍यों से जुड़ी हर खबर और देश-दुनिया की ताजा खबरें पढ़ने के लिए नार्थ इंडिया स्टेट्समैन से जुड़े। साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप को डाउनलोड करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button

mahjong slot

spaceman slot

https://www.saymynail.com/

slot bet 200

slot garansi kekalahan 100

rtp slot

Slot bet 100

slot 10 ribu

slot starlight princess

https://moolchandkidneyhospital.com/

situs slot777

slot starlight princes

slot thailand resmi

slot starlight princess

slot starlight princess

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

slot thailand

slot kamboja

slot bet 200

slot777

slot88

ceriabet

ceriabet

ceriabet

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

klikwin88

slot starlight princess

ibcbet

sbobet

roulette

baccarat online

sicbo