राष्ट्रीय

किसान आंदोलन तो खत्म हो गया अब कैसे नेतागिरी करेंगे राकेश टिकैत

नए कृषि कानून के खिलाफ किसान आंदोलन खत्म हो गया है। इस आंदोलन के माध्यम से राकेश टिकैत ने यह साबित कर दिया है कि वह भी अपने पिता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की तरह बड़ा आंदोलन चलाने की काबिलियत रखते हैं। पिता महेंद्र सिंह टिकैत अपनी जिद्द के बल पर किसी भी सरकार को बैकफुट पर खड़ा कर दिया करते थे।

नया कृषि कानून वापस हो गया है। इससे किसे फायदा होगा। किसको नुकसान, यह तो समय ही बताएगा।लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि साल भर से अधिक समय तक चले आंदोलन में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले। आंदोलनकारियों में जहां सत्ता पक्ष के प्रति तल्खी दिखाई दी तो विपक्ष ने भी खूब सियासी रोटियां सेंकी।

मोदी सरकार ने भी आंदोलन खत्म करने के लिए कई हथकंडे अपनाए। कई महीने तक तो किसान नेताओं और सरकार के बीच किसी तरह का कोई संवाद ही नहीं हुआ। आंदोलनकारियों पर आरोप लगा कि उन्हें विदेश से फंडिंग की जा रही है। खालिस्तान की मांग करते लोग भी यहां दिखाई दिए। 26 जनवरी को लाल किले पर जो हुआ उसे भी कोई याद रखना नहीं चाहेगा।

वह घटना किसान आंदोलन पर एक बदनुमा दाग था। आंदोलन के विस्तार की बात की जाए तो यह आंदोलन कभी पूरे देश के किसानों का आंदोलन नहीं बन पाया।

पंजाब, हरियाणा में आंदोलन का जबरदस्त प्रभाव देखने को मिला तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिले ही आंदोलन से प्रभावित हुए। किसान नेता राकेश टिकैत की लखनऊ में डेरा डालने की हसरतें पूरी नहीं हो पाईं। आंदोलन खत्म जरूर हो गया है। मगर किसानों क़ी कुछ मांगें बाकी हैं। जिसमें एमएसपी की मांग प्रमुख है। जिस पर सरकार और किसान नेताओं के बीच बातचीत जारी रहेगी।

ख़ैर अंत भला तो सब भला। आंदोलन के दौरान भले ही सरकार और आंदोलनकारियों के बीच के कई विवाद देखने को मिले हों लेकिन आंदोलन का समापन बहुत खूबसूरत तरीके से हुआ। किसान नेता, मोदी सरकार के खिलाफ किसी तरह की कोई रार लेकर नहीं गए हैं। बात राकेश टिकैत की की जाए तो वह अब मोदी सरकार का गुणगान कर रहे हैं।

वह आंदोलन खत्म होने क़ो ना अपनी जीत मान रहे हैं।ना भारत सरकार की हार। टिकैत ने कह दिया है कि उनका चुनाव से कोई वास्ता नहीं है। वह पश्चिमी यूपी में सौहार्द का वातावरण बनाने की भी कोशिश कर रहे हैं। टिकैत, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिलकर किसानों की समस्या पर चर्चा करना चाहते हैं। जिसे लोकतंत्र में किसी तरह से गलत नहीं कहा जा सकता है। किसान देश की रीढ़ की हैं।

हाँ, टिकैत को इस बात का दुख जरूर है कि यूपी के किसान पंजाब और हरियाणा के किसानों की तरह आंदोलन चलाने की कुव्वत नहीं रखते हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने अपना आगे का प्लान भी सेट कर दिया है। उनका पूरा जोर किसानों की समस्याएं सुलझाने पर रहेगा।

साल भर से अधिक समय तक चले आंदोलन के खत्म होने के बाद कैराना में हुई किसान महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि 13 महीने के आंदोलन के बाद किसानों की बड़ी जीत हुई है। हमने भारत सरकार को नहीं हराया है। हमने अपने पंचों के समझौते को स्वीकार किया है। इस आंदोलन में ना कोई हारा और ना ही कोई जीता। उन्होंने कहा कि सरकार समझौते को लागू करने के लिए काम करे।

हमें पंजाब के किसानों से व्यवस्थित आंदोलन करने की सीख लेनी चाहिए। कैराना में पानीपत बाईपास पर हुई भाकियू की महापंचायत में जब सभा स्थल कैराना को बनाने क़ो लेकर लोगों ने सवाल खड़े किए तो टिकैत ने कहा कि इसका जवाब है कि कैराना की सीमा हरियाणा से लगी हुई है। बड़ी संख्या में किसानों से सस्ती दर पर धान-अनाज आदि खरीदकर गलत तरीके से यहीं से हरियाणा ले जाया जाता है।

हम 50 कुंतल धान नहीं बेच सकते, लेकिन व्यापारी 25 से 30 हजार कुंतल बेचता है। एमएसपी की लड़ाई जारी रहेगी। इस आंदोलन ने किसानों की एकता मजबूत की। अलग-अलग भाषा और क्षेत्र के किसान साथ रहे। एक-दूसरे के विचार भी साझा किए गए। यहां भी उद्योग लगें ताकि विकास हो और रोजगार मिले। हरियाणा के किसान 35 रुपये प्रति हार्सपावर से बिल अदा करते हैं और उत्तर प्रदेश में 175 रुपये देना पड़ता है।

बिजली के दाम हरियाणा के बराबर किए जाएं। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ हरियाणा के मुख्यमंत्री से कमजोर नहीं हैं। हम दोनों में प्रतिस्पर्धा कराएंगे और लखनऊ जाकर बात करेंगे। दोनों प्रदेशों में भाजपा की सरकार है। चार हजार करोड़ रुपये गन्ना भुगतान बकाया है। यहां पर गन्ने का दाम भी कम है। किसानों पर दर्ज मुकदमों के संबंध में भी बात की जाएगी। एनजीटी के नाम पर दस साल पुराने ट्रैक्टर बंद कराने के मुद्दों पर भी बात करेंगे।

उन्होंने कहा कि कैराना में पलायन की कोई बात नहीं है। अगर है तो यह सिर्फ सरकारी प्लान है। उन्होंने लोगों से अपील की कि किसी के बहकावे में नहीं आएं और मेल-जोल के साथ रहें। हमें चुनाव से कुछ लेना देना नहीं है। सरकार के काम के हिसाब से जनता अपने आप सोचेगी। आचार संहिता लगने में अभी कुछ समय है। सरकार किसानों समेत सभी के हित में योजना बनाए।

बहरहाल, किसान आंदोलन का खत्म होना जहां बीजेपी और मोदी-योगी के लिए राहत लेकर आया, वहीं विपक्ष को इससे करारा झटका लगा है जो किसानों को लुभाने के लिए इसे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाना चाह रहा था। यदि यूपी के विधानसभा चुनाव में राकेश टिकैत ने किसी के पक्ष या खिलाफ वोट देने की अपील किसान वोटरों से नहीं की तो इसका नुकसान रालोद-सपा गठबंधन को हो सकता है। टिकैत की बातों से लग रहा है कि वह सियासी बयान देने से परहेज करेंगे।

 

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