नई दिल्ली। विश्व कप नॉकआउट में दक्षिण अफ्रीका का दिल बार बार टूटता आया है । उसकी दास्तां शेक्सपियर की किसी ‘ट्रेजेडी’ की तरह ही रही जिसमें सुखांत का बस इंतजार ही रहता था। आलम यह था कि दक्षिण अफ्रीका को दबाव के आगे घुटने टेकने वाले ‘चोकर्स’ कहा जाने लगा लेकिन एक मैच ने दास्तां बदल दी, वक्त बदल दिया और जज्बात बदल दिए।
अफगानिस्तान को तारोबा में टी20 विश्व कप सेमीफाइनल में नौ विकेट से हराकर पहली बार दक्षिण अफ्रीका टीम फाइनल में पहुंची तो न जाने कितने सालों के जख्मों पर मरहम लग गया। दक्षिण अफ्रीका के आईसीसी टूर्नामेंटों में निराशाजनक अतीत की बानगी इस प्रकार है।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1992 वनडे विश्व कप सेमीफाइनल : दबाव के आगे घुटने नहीं टेके लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। रंगभेद के कारण बाईस साल का निष्कासन झेलने के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लौटी दक्षिण अफ्रीका के पास बेहतरीन तेज गेंदबाज और चुस्त फील्डर थे। लेकिन सेमीफाइनल में बारिश आई और उसे सात गेंद से 22 रन की बजाय अब एक गेंद में 22 रन बनाने का संशोधित लक्ष्य मिला।
वेस्टइंडीज के खिलाफ 1996 विश्व कप क्वार्टर फाइनल : सभी ग्रुप मैच जीतने के बाद हैंसी क्रोन्ये की टीम का पलड़ा भारी माना जा रहा था लेकिन ब्रायन लारा की जबर्दस्त बल्लेबाजी के बाद रोजर हार्पर और जिम्मी एडम्स की फिरकी के जाल में दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज फंसते चले गए और 19 रन से हार गए।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1999 विश्व कप सेमीफाइनल : दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट इतिहास का सबसे निराशाजनक मैच। टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे लांस क्लूसनर को जिसने ‘ट्रेजेडी किंग’ बना दिया। जीत के लिये 214 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए दक्षिण अफ्रीका को आखिरी ओवर में नौ रन बनाने थे।
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