वन्दे मातरम

Shrimanta Shankardev-महान विभूति भाग-2

तंत्र-मंत्र का युग था। अंधविश्वासों का बोलबाला था। ऐसे समय में महापुरुष Shrimanta Shankardev का आर्विभाव हुआ। उस समय अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी। मूर्ति पूजा हो रही थी। ऐसे समय में Shrimanta Shankardev ने एक देव एक सेव का नारा दिया।
शंकरदेव की बढ़ती लोकप्रियता अवैष्णव लोगों की आंख की किरकिरी हो गई। उन्हें घोर-विरोध का सामना करना पड़ा। जो लोग मांस-मदिरा व भोग-विलास में डूब हुए थे और अंधविश्वास की आड़ में लोगों को भ्रमित किए हुए थे। उनका मार्ग महापुरुष के वैष्णव मत से अवरुद्घ हो गया।

अत: उनका विरोध होना स्वाभाविक था। पत्नी सूर्यवती के मरने के बाद 1481 में Shrimanta Shankardev अपने सत्रह अनुयायियों के साथ प्रथम तीर्थाटन के लिए निकल पड़े। इस यात्रीदल ने वाराणसी, प्रयाग, गोकुल, वृंदावन, गोवर्धन, कालाहांडी, मथुरा, कुरुक्षेत्र, रामह्द, बारहकुंड, सीताकुड़, अयोध्या, द्वारका, बद्रीकाश्रम, जगन्नाथपुरी व रामेश्वरम आदि प्रमुख तीर्थों की यात्रा की।

भक्ति के आचार्यों एवं कबीर आदि संतों से मिलने से उनके भक्त और कवि को नई दिशा प्राप्त हुई। तीर्थाटन से लौटकर उन्होंने नव वैष्णव धर्म का प्रचार किया। उन्होंने बरदोवा में प्रथम वैष्णव मठ की स्थापना की। जिसको असम में सत्र कहा जाता है।

इसके आगे पढ़िए, भाग-3…………

 

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