पंचतंत्र

PanchTantra की कहानी भाग—एक

PanchTantra के इससे पहले के अध्याय में आप पढ़ चुके हैं कि—बूढ़े आदमी की सारी इंद्रिया उसकी आंखों में और जुबान में सिमट आई हैं। हाथों में जुंबिश भले न हो, लेकिन आंखों में दम बना हुआ है। जवानी में जो कुछ देखा, किया और सुना था, सब का सब आंखों के आगे है। ​अब उसके आगे पढ़िए—…………..
तबीयत हरी की हरी है। कहानी में भी कोई औरत दिखाई पड़ गई तो हाथ धोकर उसके पीछे पड़ जाते हैं और उसकी ले—दे करके कहानी से बाहर निकलते हैं कि उनकी उखड़ी हुई सांस पाठकों को देर तक सुनाई देती रहती है। लोक कथाओं में बुढा़पे को अनुभव और ज्ञान का पुंज माना जाता रहा है। यह सोचने की किसी को फुर्सत नहीं थी कि अपने चरम पर पहुंच कर बुढ़ापा एक बीमारी भी बन जाता है।
जिसमें याद और समझ दोनों साथ छोडऩे लगती हैं। लोक कथाओं में आता है कि किसी विशेष निमंत्रण में यह शर्त रख दी जाती है कि सभी आगंतुक जवान ही होंगे। बूढ़ा कोई न होगा। बूढ़ा इसके पीछे की चाल को समझ लेता है। और अपने को एक पिटारी में बंद करके ले जाने की सलाह देता है। फिर वहां एक से एक पेचीदा समस्याएं खड़ी की जाती हैं। जिनका हल बेचारे नौजवानों के वश में नहीं।
वे बार-बार भाग कर उस पिटारी के पास जाते हैं और समस्या बता कर समाधान पा लेते हैं। लगता है विष्णुशर्मा की उम्र के पीछे भी वही लोक-दृष्टि काम कर रही थी। PanchTantra कई दृष्टियों से विश्व की अनन्य कृति है। यदि संसार की पांच सबसे अधिक लोकप्रिय कलाकृतियों का नाम लेना हो तो इनमें से एक नाम PanchTantra का होगा। इन पांचों में भी इसका स्थान सबसे ऊपर हो तो आश्चर्य नहीं।
खुशरू ने भारत को दुनिया के दूसरे देशों से अधिक श्रेष्ठ और धरती पर उतरा हुआ स्वर्ग सिद्ध करते हुए दस कारणों का उल्लेख किया था। जिनमें से एक यह है कि इसमें ज्ञान की वह नायाब किताब लिखी गई जिसे पंजतंतर कहते हैं। खुशरू की जानकारी के अनुसार उस समय से बहुत पहले ही पंचतंत्र का तरजुमा अरबी (ताजी), फारसी, तुर्की, दरी आदि भाषाओं में हो चुका था।
वह भारत की श्रेष्ठता का एक कारण शतरंज के खेल को भी मानते हैं और दुबारा याद दिलाते हैं कि पंजतंतर और शतरंज के खेल का दुनिया के बहुत से दूसरे देशों में भी प्रचार हो चुका था। इसकी होड़ में जाने कितने लेखकों ने कहानियों का वैसा ही जाल तैयार किया। अपनी हाजिर जवाबी के बल पर जाने किन-किन को छकाने वाले पात्र गढ़े, जिन्नों और जानवरों को पात्र बना कर कहानियां लिखीं।
उन कहानियों में जीवन के मर्म पिरोने की कोशिशें कीं। पर वे सभी PanchTantra के किसी एक पहलू को समेट कर ही रह गए। घटनाएं और पात्र बदल कर इन कहानियों का अनुलेखन करने के इतने प्रयत्न किए गए हैं कि एक ही कहानी के कई रूप सुनने और पढऩे को मिल जाते हैं। विश्व की कोई अन्य रचना नहीं जिसका प्रभाव लोक जीवन पर इतना गहरा पड़ा हो। और जो देश—देशांतर और युग—युगांतर तक फैला हो।
दूसरी किसी रचना को प्रबुद्ध वर्ग से ले कर अनपढ़ जनों तक का समान स्नेह नहीं मिला होगा। और साथ ही किसी अन्य ने इन सभी स्तरों पर अपने पाठकों की सृ्जन शक्ति को इस तरह नहीं उकसाया होगा। कि अपनी स्थिति और परिस्थिति के अनुसार वे भी अपनी ओर से कुछ गठजोड़ कर सुनाने को हाजिर हो जाएं। किसी अन्य कथाकार के इतने पात्र इस लोकप्रियता के कारण लोकोक्तियों और मुहावरों तक में शायद ही उतर पाए हों।
हिंदी में ही प्रयोग में आने वाले घनचक्कर, रंगा सियार, बेकार पचड़े में पडऩा, मगरमच्छ के आसूं,  नकली शेर, बाघ की खाल, ढ़ोल की पोल, बगुला भगत, बंदर को उपदेश, टिटहरी का संकल्प, गधे का अलाप, गंगदत्त फिर कुएं में नहीं आएगा, मरे सिंह को जिलाना, सोये शेर को जगाना, पढ़े लिखे मूर्ख, नादान दोस्त से ज्ञानी दुश्मन भला, नंगी क्या नहाये क्या निचोड़े, नकल के लिए भी अकल चाहिए, सोमशर्मा (शेखचिल्ली) की उड़ान, सोने की मुहर देने वाला सांप (अंडे देने वाला मुर्गा) आदि उक्तियों से इसे कुछ दूर तक समझा जा सकता है।………….आगे भाग—दो

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