एनालिसिस

रेप पीड़ित निर्भया को इन्साफ मिलेगा या नहीं

अक्सर देखा जाता है कि जब पीड़ित पक्ष मुसलमान अथवा दलित हो तो मीडिया खबर को प्रमुखता से दिखाता है। वहीं सामान्य वर्ग के पीड़ित की खबर एक कॉलम और 15 सेंकण्ड की एबीवी में सिमट जाती है। मीडिया इतना दोगला क्यों गया है? कौन दिलवाएगा उसको इंसाफ कहां चले गए तमाम हिंदू संगठन? इनका होना न होना एक बराबर है। मुझे नहीं लगता कि मिल पाएगा Agra की इस निर्भया (Nirbhaya) को इंसाफ।

Agra में एक लड़की (Nirbhaya) का रेप होता है। पॉंच दरिंदे वहशियाना तरीके से उसका रेप करते हैं। यह खबर अखबार में एक कॉलम में और इलैक्ट्रॅानिक मीडिया में 15 सेंकण्ड की एंकर वीजुअल बाइट बन कर दब जाती है। न इसमें नजीब के खो जाने की तरह हाहाकार मचता है.और ना ही….

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू से नजीब नाम का एक 40 वर्षीय छात्र लापता हो गया। जेएनयू की वामपंथी लॉबी, मुस्लिम संगठन जबसे वो लापता हुआ है तबसे उसको खोजने के लिए कभी पुलिस थाने तो कभी दिल्ली पुलिस मुख्यालय पर जमकर प्रदर्शन करते आ रहे हैं।
उसको लापता हुए बहुत समय बीत चुका है। इसके बावजूद उसको खोजने के लिए वामपंथी संगठनों और मुस्लिम संगठनों ने लगातार पुलिस पर दबाव बनाया हुआ है। इस दबाव का असर देखिए कि पुलिस ने उसकी सूचना देने वाले को 10 लाख रूपए का नकद इनाम देने की घोषणा की हुई है। सरकार पर दबाव है कि उसकी खोज सीबीआई से करवाई जाए। हो सकता है कि सरकार दबाव में आए और केस सीबीआई के सुपुर्द हो जाए। मैं नहीं जानता क्या पता केस सीबीआई हैंडल कर भी रही हो। वैसे यदि ऐसा हो रहा है तो होना भी चाहिए।
अब इस मामले में मीडिया की भूमिका पर भी बात हो जाए। इस मामले में चाहे नजीब के खोने का मामला हो, चाहे उसके खोने को राजनीतिक रंग देकर उसके खोने मे एबीवीपी का हाथ होने का आरोप साबित करने की बात हो। मीडिया हर खबर को बढ़ा चढ़ाकर दिखाती रही है। यहां तक कि इसमें उसने नजीब की मां की सहानुभूति वाला एंगल भी जबर्दस्त तरीके से डाला है।
अब बात मुद्दे की करता हूं। आगरा में एक लड़की का 5 दरिंदे वहशियाना तरीके से रेप करते हैं। यह खबर अखबार में और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में दबकर दम घोट देती है। क्योंकि न इसमें नजीब के खो जाने की तरह हाहाकार मचता है। न ही कोई संगठन उस मासूम को इंसाफ दिलाने के लिए धरना पर्दशन करता है। न ही मीडिया उस तरह की कोई सहानुभूति लहर चलाता है। न ही अखबार में उस बेबस लड़की के पक्ष में किसी तरह का कोई लेख ही लिखा जाता है।
मीडिया इतना दोगला क्यों है कि एक 40 वर्षीय मुसलमान लड़के के अपनी मर्जी कहीं चले जाने को पहले पेज की मुख्य खबर बनाता है। टीवी पर उसके खोने पर डिबेट होती है। घटना को राजनीतिक रंग दिया जाता है। वहीं एक लड़की के साथ बेरहमी से हुए रेप को एक मामूली घटना की तरह कवर करता है। कहीं इसके पीछे वजह आरोपियों का मुसलमान होना तो नहीं?

क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि जब पीड़ित पक्ष मुसलमान अथवा दलित हो तो मीडिया खबर को प्रमुखता से दिखाता है।

मनोज कुमार तिवारी की फेसबुक वाल से साभार….

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