मोदी ने यंगून में कालीबाड़ी मंदिर में पूजा की, जफर की मजार पर भी गये
यंगून। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज म्यांमा स्थित 2,500 वर्ष पुराने श्वेदागोन पगोडा के दर्शन किये और कालीबाड़ी मंदिर (Kalibari Temple) में पूजा की। इस पगोडा को बौद्ध बहुलता वाले म्यांमा की सांस्कृतिक विरासत की धुरी माना जाता है। बौद्ध बहुलता वाले देश के तीन दिवसीय द्विपक्षीय दौरे के अंतिम दिन मोदी ने आज पगोडा के दर्शन किये।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री ने पगोडा परिसर में एक बोधी वृक्ष का पौधा लगाया जो साझी विरासत के महत्व को दर्शाता है। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया है, ‘‘म्यांमा के सांस्कृतिक प्रतीक, श्वेदागोन पगोडा के दर्शन करके बहुत प्रसन्न हूं।’’ 2,500 साल पुराने पगोडा में भगवान बुद्ध के केश और अन्य पवित्र अवशेष रखे हुए हैं। पहले रवीश कुमार ने टि्वटर पर लिखा था, ‘‘शश्वतता के साथ एक क्षण। प्रधानमंत्री @नरेन्द्रमोदी 2,500 वर्ष पुराने श्वेदागोन पगोडा दर्शन के लिए गये, जिसे म्यांमा की सांस्कृतिक विरासत की धुरी माना जाता है।’’ यंगून में रॉयल लेक (शाही झील) के पश्चिम में स्थित पगोडा को म्यांमा के लोग सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल मानते हैं। शुरूआत में 8.2 मीटर जगह में बना यह पगोडा अब 110 मीटर के परिसर में फैला हुआ है। पगोडा सोने की सैंकड़ों चादरों से ढका हुआ है, जबकि स्तूप के शीर्ष पर 4,531 हीरे जड़े हुए हैं। सबसे बड़ा हीरा 72 कैरेट का है।
मोदी ने बाद में शहीदों की कब्र (स्मारक) पर श्रद्धांजलि अर्पित की और कालीबाड़ी मंदिर में पूजा भी की। पूजा के बाद मंदिर में अपनी फोटो को ट्वीट करते हुये उन्होंने कहा, ‘‘यंगून के कालीबाड़ी मंदिर में पूजा की। बेहद अभिभूत महसूस कर रहा हूं।’’ वह म्यांमा की स्टेट काउंसिलर आंग सान सू की के साथ बोग्योक आंग सान संग्रहालय भी गये। मोदी ने कहा, ‘‘बोग्योक आंग सान संग्रहालय दिखाने के लिए मैं मोहतरमा आंग सान सू की को धन्यवाद देता हूं। जनरल आंग सान को श्रद्धांजलि दी।प्रधानमंत्री आज अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर भी गये और श्रद्धांजलि अर्पित की। मोदी अंतिम मुगल बादशाह की ‘मजार’ पर गये और वहां पुष्पांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने अंतिम मुगल शासक की कब्र के पास ली गयी अपनी तस्वीर ट्वीट की है। उर्दू शायर बहादुर शाह जफर की मौत 87 वर्ष की उम्र में रंगून में हुई। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश शासन ने उन्हें देश निकाला देकर रंगून भेज दिया था।