ट्रिगर न्यूज

मदद करने वाले आम लोगों का Media Trial

पिछले शनिवार मैं अपने बच्चों को स्कूल छोड़कर घर लौट रही थी।

सड़क पर फिसलन थी। एकदम से ई-रिक्शा मुड़ा और पता नहीं कैसे ब्रेक लगाते लगाते स्कूटी स्लिप हुई और मैं गिरी तो स्कूटी के साथ, बल्कि काफी दूर तक घिसट भी गयी। उसमें जो टॉप पहने थी, वह भी फट गया।

सामने ही इंडेन गैस के लिए लोगों की लाइन लगी थी, जो गैस की गाडी का इंतजार कर रहे थे। मैं जब घिसट रही थी, तभी उनमें से दो तीन लोग एकदम से भागते हुए आए, दो लड़के नुमा आदमी थे। उन लोगों ने मेरी ज्यूपिटर को उठाया। और दो आदमियों ने मुझे सहारा दिया।
उन्हीं में से एक ने मेरा टॉप सही किया और मेरा प्लाजो भी ठीक किया। और मुझे सहारा देकर एक जगह बैठाया।
उस समय कई लोग इकट्ठे हो गए थे। उस भीड़ में केवल एक ही महिला थी। जो बार बार माफी मांग रही थी, कि उसके कारण रिक्शा मुड़ा और मैं गिरी। खैर, मुझे गिरना था, गिरी, और खूब चोट भी लगी। और मैं उन सभी की शुक्रगुजार जिन्होनें मुझे उठाया, मुझे सहारा दिया। जब भी कोई दुर्घटना होती है, तो उस समय पीड़ित की जान बचाने की ही कोशिश होती है, दूसरे लोगों की।
ऐसे ही कल एक खबर उड़ती उड़ती सुनी थी। मुम्बई में हुई भगदड़ में मरती हुई स्त्री का उत्पीडन करने की कोशिश हुई। समय नहीं था पूरा पढने का, तो पढ़ा नहीं।
अभी मित्र विशाल अग्रवाल की वाल पर पढ़ा उसे, और फिर यह भी पढ़ा कि दरअसल वह वीडियो अधूरा था। और जिस लड़के पर लड़की के साथ छेड़छाड़ का आरोप है, वह दरअसल उसे बचाने की कोशिश कर रहा था।

मैं यह नहीं कहती कि इस तरह की भीड़भाड़ की घटनाओं में छेड़छाड़ नहीं होती। मैं कई बार भीड़भाड़ में छेड़ खानी का शिकार हुई हूूं। जैसे दिल्ली की ब्लू लाइन बसें! कई बार पीटा भी है!

मगर न जाने क्यों, एकदम से आजकल जो सिलेक्टिव वीडियो दिखाकर आधी अधूरी जानकारी के आधार पर अपराधी बनाने की प्रवृत्ति बढ़ी है, वह घातक है। अगर उस दिन मेरी ही घटना का कोई वीडियो बनाता, जिसमें मुझे उठाते समय मेरी कमर पर किसी व्यक्ति के हाथ का गलत अर्थ पेश किया जाता, तो…. ?

हम स्त्री विमर्श को पुरुष विरोधी क्यों बना रहे हैं?

जरा सोचिये, जिस लड़के पर यह आरोप लगा है, क्या वह कभी भी अब किसी भी लड़की की मदद खुले मन से कर पाएगा?

गलत को सजा जरूर मिले, मगर आम लोगों का Media Trial और वह भी इतने संवेदनशील मुद्दे पर मीडिया में और खास तौर पर Social Media में त्वरित निर्णय लेना, कहाँ तक जायज है?

Media के दिखाए गए सिलेक्टिव वीडियो के आधार पर चुनावों के समय ही शोर मचे, तो बेहतर! उस समय सौ खून माफ! मगर सामाजिक मुद्दों पर, और वह भी आपदा के विषय पर स्त्री और पुरुष के बीच इस तरह का विषाद उत्पन्न करना समाज के लिए बहुत ही घातक है! इस प्रवृत्ति से हमें बचना चाहिए!

औरों का तो पता नहीं, मेरे साथ तो अनजान फरिश्ते बहुत आते। एक किताब मैं और मेरी दुर्घटनाएं नाम से निकालूंगी। तब पता चलेगा कि कितनी बार इन अनजान फरिश्तों ने मेरी जान बचाई है।
बाबा रे, मुझे तो पागल कुत्ते से भी अनजान लोगों ने बचाया था। कोई फरिश्ता बेचारा अपनी गाड़ी में बैठाकर धर्मशिला अस्पताल तक ले गया था। वह भी एक किस्सा है।
ताजी खबर यह है कि, द हिन्दू ने भी उस वीडियो के लिए माफी मांग ली है। और उस वीडियो को डिलीट कर दिया है।

लेखिका सोनाली मिश्रा की फेसबुक वाॅल से..

 

विशेष नोट:

द​ हिन्दू एवं उन जैसे और सोशल मीडिया प्लेटफार्म का तेजी से इस्तेमाल करने वाले ऐसी न्यूज अथवा वीडियो के प्रेषण करने वाले मीडियाकर्मी अथवा उस व्यक्ति को सेवा से पृथक कर देना चाहिए, जिसने आधी—अधूरी खबर/वीडियो पोस्ट किया। सोनाली मिश्रा ने बिल्कुल सही लिखा है कि दुर्घटना के समय यदि पीड़ित की मदद करने वालों को सोशल मीडिया/चैनल पर ईव टीजिंग/मोलेसटेशन का आरोप लगाया जायेगा, तब तो कोई मदद को ही आगे नहीं आयेगा?
ऐसा करने वालों के साथ यदि सख्ती से नहीं निपटा जायेगा तो बहुत ही विषम स्थिति पैदा हो जायेगी।

भविष्य का मीडिया सोशल मीडिया ही है, लेकिन यह एकदम गन की तरह ही है। यदि गोली चल गई और किसी के लग गई। तो या तो वह मर जायेगा और यदि जिन्दा रहा तो क्रिटिकल स्थिति में होगा। इसके बाद गोली चलाने वाला कितना ही प्रयास/एपोलाइज कर ले, जिसे गोली लगी उसे बाद में उस स्थिति में नहीं ला पायेगा, जिसमें वह पहले था।

इसलिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों को यह समझना होगा कि सेकण्ड के भी सौवें हिस्से के अन्दर वायरल होनी वाली ऐसी खबरें गोली से भी ज्यादा तेज गति से दौड़ती हैं। इसलिए इसका इस्तेमाल करने में गन से भी कई गुना अधिक धैर्य और गंभीरता रखें।

Cyber Team

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