
पारिवारिक कलह से उत्पन्न सामूहिक दुष्कर्म के आरोपों को किया खारिज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सामूहिक दुष्कर्म के एक मामले को रद्द करते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 376 (डी) के तहत सामूहिक दुष्कर्म एक गंभीर और गैर- समझौता योग्य अपराध है, लेकिन वर्तमान मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों से यह स्पष्ट होता है कि मौजूदा विवाद की उत्पत्ति समाज और सार्वजनिक नैतिकता को प्रभावित करने वाले आपराधिक कृत्य के बजाय एक अंतर- पारिवारिक कलह से हुई है।
कोर्ट ने माना कि मामले से जुड़ी विशिष्ट परिस्थितियां अत्यंत असामान्य थीं, जिन पर न्यायिक विचार की आवश्यकता है। कोर्ट ने आरोप की गंभीरता पर विचार करते हुए निष्कर्ष निकाला कि विवाद की व्यक्तिगत प्रकृति और पक्षकारों के बीच पारिवारिक संबंधों को ध्यान में रखते हुए अभियोजन के मामले को आगे बढ़ाने से कोई सार्थक न्यायिक उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी,
बल्कि यह न्यायिक प्रक्रियाओं का दुरुपयोग होगा। अतः कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए कोर्ट ने अपनी अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पुलिस स्टेशन डिडौली, अमरोहा में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज मामले की संपूर्ण आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकलपीठ ने राकेश उर्फ राकेश कुमार की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। कोर्ट ने माना कि जब पक्षकारों के बीच सौहार्दपूर्ण समझौता हो चुका है, तो मामले की कार्यवाही को आगे बढ़ाना न्यायोचित नहीं है। मौजूदा मामला शिकायतकर्ता और उसके देवर के बीच पारिवारिक विवाद से उत्पन्न हुआ था, ना कि किसी अशमनीय अपराध के परिणामस्वरूप।