
वरुथिनी एकादशी पर बन रहा दुर्लभ संयोग, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार 16 अप्रैल को वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। हिंदू धर्म में वरुथिनी एकादशी तिथि के व्रत का बेहद महत्व है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन जल दान करने से कई जन्मों का फल एक साथ प्राप्त होता है। इस बार वरुथिनी एकादशी पर कई दुर्लभ संयोग भी बन रहे है। आइए जानते हैं वरुथिनी एकादशी के व्रत का शुभ मुहूर्त पूजा विधि और महत्व।
वरुथिनी एकादशी पर शुभ मुहूर्त
वरुथिनी एकादशी की शुरुआत 15 अप्रैल को रात 8:45 से शुरू होकर 16 अप्रैल शाम 6:14 तक रहेगा। इसलिए 16 अप्रैल यानी रविवार को ही व्रत रखा जाएगा. बता दें कि रविवार को सुबह 7:32 से सुबह 10:45 तक पूजा करने का शुभ मुहूर्त है। वरुथिनी एकादशी का पारण का समय17 अप्रैल को सुबह 5:54 से सुबह 8:29 तक है।
बन रहे दुर्लभ संयोग
वरुथिनी एकादशी के मौके पर त्रिपुष्कर योग बनने जा रहा है। यह योग 17 अप्रैल सुबह 4 बजकर 7 मिनट से लेकर 17 अप्रैल सुबह 5 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। इस एकादशी पर त्रिपुष्कर योग का बनना बेहद शुभ माना जाता है।
जानिए पूजन विधि
मान्यता है कि जो इंसान वरुथिनी एकादशी का व्रत रखता है। उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्य उगने से पहले सुबह जल्दी उठें और स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद मंदिर में जाकर व्रत का संकल्प लें। फिर भगवान विष्णु की चंदन, अक्षत, फूल और फल के साथ विधिवत पूजा करें। वरुथिनी एकादशी पर पीपल के पेड़ की पूजा भी की जाती है।
भगवान विष्णु को पंचामृत अर्पित करके मधुराष्टक का पाठ करें। इस दिन भगवान विष्णु के सहस्त्र नाम के पाठ का भी जप करना चाहिए। व्रत करने वाले मनुष्यों को इस दिन राहगीरों को जल दान करना चाहिए। व्रत करने वाले लोगों को इस दिन फलाहार ही करना चाहिए।
एकादशी व्रत का महत्व
वरुथिनी एकादशी करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। वरुथिनी एकादशी करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। जाने-अनजाने में हुए पाप, जिसके बारे में जानकारी नहीं होती है, वो सब दूर हो जाते है।