फ्लैश न्यूजसाइबर संवाद

एक दिन मिट जायेगा माटी के मोल……

अंतिम संस्कार:-

मृत्यु के बाद निर्जीव शव के अंतिम संस्कार के अलग-अलग धर्मों में अलग अलग विधि विधान हैं।
सनातन, बौद्ध और सिख धर्म जहाँ अपने परिजनों के शवों को अपने सामने ही अपने हाथों से जला देते हैं, और बचे अवशेषों को अपने धार्मिक विश्वास वाली जगहों पर प्रवाहित कर देते हैं, जिनमें गंगा में प्रवाहित करना सबसे अधिक होता है।

इसमें 9 मन सूखी लकड़ी और आग लगाने के लिए घी इत्यादि लगता हैए अन्य जलनशील पदार्थों को घी में मिलाकर शरीर के मजबूत और देर में जलने वाले हिस्सों पर लगाया जाता है। जो व्यक्ति जीते जी अपने सगे संबन्धियों के उसी शरीर पर एक खरोंच तक आना बर्दाश्त नहीं करता, वही व्यक्ति अपने हाथों से मृत शरीर को जला देता है।

मजबूरी भी है, क्युँकि शरीर अधिकतम 24 घंटे के बाद खराब होने लगता है, उसमें से दुर्गंध आने लगती है। कुल मिलाकर 4 घंटे में कोई 7 से 10 हजार खर्च करके अपने धार्मिक तरीके से वह शव का अंतिम संस्कार कर देता है। पारंपरिक और धार्मिक विधि विधान से करने से उसे एक संतुष्टि मिलती है कि मृत्यु के पश्चात उनकी आत्मा को शांति मिलेगी।

पारसी धर्म के लोग, अपने परिजनों के मृत शवों को, न ही जलाते हैं और न ही दफनाते हैं। बल्कि उन शवों को चील, कौओं और अन्य पशु-पक्षियों के लिए आहार स्वरूप छोड़ देते हैं। किसी ऊंचे स्थान पर अपने प्रियजन के शव रख आते हैं।

भारत में सबसे अधिक पारसी आबादी वाले मुंबई के मालाबार हिल्स पर एक टावर ऑफ साइलेंस स्थित है। मालाबार हिल्स मुंबई का सबसे पॉश इलाका है। यह चारों ओर से घने जंगल से घिरा हुआ है। वहाँ एक स्थान पर पारसी लोग अपने परिजन के शव चील, कौओं और अन्य पशु-पक्षियों के लिए आहार के लिए रख आते हैं। जो एक लोग बाकी जगहों पर दो ईधर-उधर रहते हैं वह अपने परिजनों के शव को दफना देते हैं।

ईसाई लोग कब्र में अपने परिजनों को दफन करते हैं, मगर ताबूत में जो “सेन्ट्रल विस्टा” की आकृति का होता है। उस ताबूत में उस शव के साथ उस मृतक व्यक्ति का सबसे पसंदीदा सामान रख देते हैं और ताबूत को चारों तरफ से लगभग सील करके कब्र में नीचे उतार देते हैं। फिर उसके ऊपर मट्टी डालकर कब्र पाट देते हैं। कब्र में शव दफन करने में मुश्किल से 3 से 4 हज़ार का खर्च आता है।

वैसे तो हर धर्म में मृत्यु के बाद स्वर्ग-नरक और पाप-पुण्य के आधार पर दंड और इर्नाम का प्रावधान है।
पर मुसलमानों के धर्म में मृत्यु के बाद जो जीवन चलता है वह कब्र से शुरू होता है। इसीलिए कब्र उसी तरह बनाई जाती है कि वह पाटने के बाद भी आराम का 4×10 का कमरा बन जाए।

क्युँकि, यह मुसलमानों का इर्मान है – कि कब्र में जनाज़े को उतारकर जब लोग 40 कदम दूर जाएंगे तो 2 -फरिश्ते “मुनकर और नकीर”  आएंगे और उस जनाजे से 3 सवाल पूछेंगे। ईमान वाला मृतक होगा तो सही जवाब देगा, नहीं तो घबरा कर उल्टे-सीधे जवाब देगा। उन्हीं सवालों के जवाब पर उसकी कब्र की ज़िन्दगी आसान या मुश्किल होगी।

अब आईए इस्लामिक माईथोलॉजी क्या कहती है, वह देखते हैं।

मौत के बाद इन्सान 5 हिस्सों में बट जाता है।

1. रूह मल्कुल मौत ले जायेगी, दूसरे धर्म में यह काम करने वाले को यमराज कहते हैं।
2. माल जो वह छोड़ जाता है उसे उसके वारिस ले जायेंगे।
3. उसके शव के गोश्त कीड़े-मकोड़े खा जायेंगे
4 नेकियाँ जो उसने अपने जीवन में कमाई होंगी वह उसके कर्ज़दार ले जायेंगे, जिनका पैसा लेकर उसने चुकाया ना होगा।
5. और हड्डियाँ गल कर मिट्टी में मिल जायेंगी।

यह तो हुई धार्मिक बातें, पर कब्र में शव के साथ क्या होता है घ् वह समझिए। मुसलमान अपने परिजनों के शव को अपने सामने खराब या नष्ट ना करके उसे सुरक्षित एक कब्र में रख आते हैं। मिट्टी पाटने के बाद भी शव का कफन तक गंदा नहीं होता।

शव को दफ़नाने के एक दिन बाद यानी ठीक 24 घंटे बाद इन्सान के शव की आंतों में बचे ष्मलष् के कारण उसमें ऐसे कीड़े पैदा हो जाते हैं जो मुर्दे के मलद्वार के रास्ते से निकलना शुरू हो जाते हैं।
साथ ही ना क़ाबिले बर्दाश्त बदबू फैलाना शुरू हो जाती है। जो दरअसल अपने वैसे ही कीड़ों को दावत देती है। इसी बदबू के कारण तमाम बिच्छू और तमाम कीड़े-मकोड़े इन्सान के जिस्म की तरफ़ हरकत करना शुरू कर देते हैं और इन्सान के मृत शरीर का मांस खाना शुरू कर देते हैं।

शव को दफनाने के 3 दिन बाद सबसे पहले नाक की हालत बदलना शुरू हो जाती है और वह सड़ने-गलने लगती है। 6 दिन बाद शव के नाख़ून गिरना शुरू हो जाते हैं। 9 दिन के बाद बाल गिरना शुरू हो जाते हैं। इन्सान के शव पर कोई बाल नहीं रहता और पेट फूलना शुरू हो जाता है। 17 दिन बाद पेट फट जाता है और सारी आंतें और अन्य अंदरूनी चीज़ें बाहर आना शुरू हो जाती हैं। 60 दिन बाद शव के जिस्म से सारा माँस कीड़े मकोड़े खा कर ख़त्म कर देते हैं। शव पर मांस का एक भी टुकड़ा नहीं बचता।
90 दिन बाद तमाम हड्डियां एक दुसरे से जुदा हो जाती हैं, और एक साल बाद तमाम हड्डियां मिट्टी में विलीन हो जाती हैं। और जिस इन्सान को दफ़नाया गया था उसका वजूद ख़त्म हो जाता है।

तो यार, जब सबका यही अंजाम होना है, तो कुछ दिन तो मिल कर रह लो कि लोग आपको हमको एक अच्छे इंसान के तौर पर याद करें।

लालच, घमंड, दुश्मनी, चिढ़, जलन, इज़्ज़त, नाम, ओहदा, बादशाही, तानाशाही, सल्तनत, पद, ये सब कहाँ जाता है?? सब कुछ ख़ाक़ में मिल जाता है।

 

इन्सान की हैसियत ही क्या है? मिट्टी से बना है, मिट्टी में दफ़न हो कर, मिट्टी हो जाता है।

Mohd Zahid
Mohd Zahid

 

Mohd Zahid
(मो0 ज़ाहिद, जन विचार संवाद ग्रुप की वॉल से साभार)

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