धार्मिक

आमलकी एकादशी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा से मिलेगा मोक्ष

होली से कुछ दिन पहले आमलकी या रंगभरी एकादशी आती है। इस एकादशी को भक्त विशेष रूप से मनाते हैं। हिन्दू धर्म में अत्यन्त शुभ माने जाने वाली आमलकी एकादशी के महत्व तथा पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

हिन्दू धर्म में आमलकी एकादशी का विशेष महत्व है। यह एकादशी फाल्गुन मास की अंतिम एकादशी होती है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी का व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। वास्तव में आंवले का एक नाम ‘आमलकी’ भी है

और इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा के चलते ही इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इसे रंगभरनी एकादशी के नाम भी जाना जाता है। साथ ही हिन्दू धर्म में इसे सबसे ज्यादा शुभ भी माना जाता है।

हिन्दू धर्म में आमलकी का विशेष महत्व होता है। इसलिए इस एकादशी के विशेष पूजा करें। जो इस दिन व्रत रखता उसे दशमी के दिन से ही सभी नियमों का पालन करना चाहिए। इसके लिए एक दिन पहले रात को भगवान विष्णु का ध्यान करके सोएं। दूसरे दिन सुबह जल्दी सभी कामों से निवृत्त होकर पूजा-स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या फिर मूर्ति को रखें।

इसके बाद प्रतिमा के सामने हाथ में तिल, कुश, सिक्का और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए ईश्वर मुझे अपनी शरण में रखें। इसके बाद इस मंत्र का जाप करें।

आमलकी एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। हमारे शास्त्रों में आमलकी एकादशी के बारे में पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न होने के बाद ब्रह्मा जी के मन में जिज्ञासा हुई कि वह कौन हैं इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए ब्रह्मा जी परब्रह्म की तपस्या करने लगे। इस तरह ब्रह्म जी की तपस्या से प्रश्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए।

भगवान विष्णु को सामने देखकर ब्रह्मा जी खुशी से रोने लगे। इस तरह रोने से इनके आंसू भगवान विष्णु के चरणों पर गिरने लगे। ब्रह्मा जी की यह भक्ति भावना देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हुए तथा ब्रह्मा जी के आंसुओं से आमकली यानी आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ।

भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा कि आपके आंसुओं से उत्पन्न आंवले का वृक्ष और फल मुझे अति प्रिय रहेगा। जो भी आमकली एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करेगा उसके सारे पाप समाप्त हो जाएंगे और व्यक्ति को मोक्ष मिलेगा।

आमलकी एकादशी का विशेष धार्मिक महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। एकादशी व्रत की महिमा का वर्णन महाभारत में मिलता है। आमलकी एकादशी जीवन में आंवला के महत्व को बताता है। यह एकादशी न केवल आंवले का महत्व बताती है बल्कि हमें पर्यावरण के प्रति सचेत रहने के लिए भी कहती है। इसलिए आंवले को आदि वृक्ष भी कहा गया है। शास्त्रों के अनुसार आंवला के वृक्ष में भगवान विष्णु निवास करते हैं। आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है।

आमलकी एकादशी पर मंदिर के समीप या घर में आंवले का पौधा लगाने से विष्णु भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है। लेकिन घर में यदि आंवला का पौधा लगाना है तो दिशा का खास ख्याल रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार आंवले का पौधा घर में उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना गया है। पंडितों का मानना है कि आंवले को घर में लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और दांपत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है। साथ ही परिवार के सभी सदस्यों में प्रेम बना रहता है और धन आदि की समस्या भी दूर होती है।

 

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