
नवरात्रि में क्यों बोए जाते हैं जौ, जानें इसका महत्व और शुभ-अशुभ संकेत
इस साल 22 मार्च 2023 से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। नवरात्रि के इन नौ दिनों को बहुत ही पावन माना जाता है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। नवरात्रि के दिनों में लोग अपने घर में अखंड ज्योति जलाते हैं और मां जगदंबे की पूजा आराधना करते हैं। नवरात्रि में पूजा और व्रत के अलावा कलश स्थापना और जवारे या जौ का बहुत अधिक महत्व होता है।
नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना यानी कलश स्थापना की जाती है और जौ बोए जाते हैं। नवरात्रि में मिट्टी के बर्तन में जौ बोने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है कि इसके बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी रह जाती है। ऐसे में चलिए आज जानते हैं कि नवरात्रि में आखिर जौ क्यों बोए जाते हैं और इसके पीछे की धार्मिक मान्यता क्या है।
धर्मग्रंथों के अनुसार, जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तब वनस्पतियों में जो फसल सबसे पहले विकसित हुई थी वो थी ‘जौ’। यही वजह है कि नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना के साथ पूरे विधि-विधान से जौ बोई जाती है। इसके अलावा जब भी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है या हवन किया जाता है तो जौ अर्पित किए जाते हैं।
जौ को सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है। इसलिए नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना के समय जौ की सबसे पहले पूजा की जाती है। और उसे कलश में भी स्थापित किया जाता है। साथ ही ये भी कहा जाता है कि जौ अन्न ब्रह्मा के समान है और अन्न का हमेशा सम्मान करना चाहिए। इसलिए पूजा में जौ का इस्तेमाल किया जाता है।
ये संकेत देते हैं नवरात्रि में बोए गए जौ
आपने देखा होगा कि नवरात्रि में कलश स्थापना के दौरान बोया गया जौ दो-तीन दिन में ही अंकुरित हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार यदि ये जौ दो-तीन दिन में न उगें तो भविष्य में आपके लिए अच्छे संकेत नहीं है। इसका मतलब ये है कि आपको कड़ी मेहनत के बाद भी उसका फल नहीं मिलेगा।
इसके अलावा जौ के उग जाने के बाद जब जौ का रंग नीचे से आधा पीला और ऊपर से आधा हरा हो तो इसका मतलब आने वाले साल का आधा समय आपके लिए ठीक रहेगा। लेकिन बाद का समय परेशानियों भरा रहेगा।