धार्मिक

वामन जयंती व्रत से घऱ में आती है समृद्धि

आज वामन द्वादशी है, वामन जयंती के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म में वैष्णव लोग वामन जयंती श्रद्धापूर्वक मनाते हैं, तो आइए हम आपको वामन जयंती व्रत की पूजा विधि एवं महत्व के बारे में बताते हैं।

जानें वामन जयंती के बारे में
भादो महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी मनायी जाती है। इस बार 26 सितंबर को वामन द्वादशी है। हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान वामन देव का अवतार हुआ था। वामन देव भगवान विष्णु के अवतार थे, इसलिए इस तिथि पर भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा की जाती है। वामन देव भगवान विष्णु के पांचवे अवतार माने जाते हैं।

वामन जयंती 2023 का शुभ मुहूर्त
इस दिन श्रवण नक्षत्र का विशेष महत्व है, क्योंकि इसी नक्षत्र में वामन अवतार ने जन्म लिया था। श्रवण नक्षत्र 25 सितंबर को सुबह 11 बजकर 55 मिनट से 26 सितंबर को सुबह 09 बजकर 42 मिनट है। 26 सितंबर को पूजा का मुहूर्त सुबह 09 बजकर 12 मिनट से दोपहर 01 बजकर 43 मिनट है।

जानें भगवान विष्णु के वामन अवतार के बारे में
शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी अदिति के पुत्र के रूप में अवतार लिया और लोकप्रिय रूप से वामन के रूप में जाने गए। पंडितों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति भगवान वामन की पूजा करता है, तो वह व्यक्ति सभी प्रकार के कष्टों और पापों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त करता है।

वामन जयंती व्रत मनाया जाता है धूमधाम से
वामन जयंती व्रत भारत के विभिन्न हिस्सों में बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जो श्रद्धालु इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें इस ब्रह्मांड के संरक्षक भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और उनके सभी पिछले पापों के लिए क्षमा प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।

वामन जयंती का महत्व
हिन्दू धर्म में वामन जयंती का खास महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के दिन अगर श्रावण नक्षत्र हो तो इसका महत्व बढ़ जाता है। इस दिन भक्त स्नान कर वामन भगवान की स्वर्ण प्रतिमा को की मंत्रोच्चार से पूजा करने पर सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। पंडितों का मानना है कि वामन भगवान ने जैसे राजा बलि के कष्ट दूर किए थे वैसे ही वह भक्तों के कष्टों का भी निवारण करते हैं।

वामन जयंती के दिन ऐसे करें पूजा
वामन जयंती के दिन मंदिरों में विशेष रूप से पूजा की जाती है। विभिन्न स्थानों पर भागवत का पाठ कर वामन भगवान की लीला का गान किया जाता है। इसके अलावा वामन जयंती के दिन चावल तथा दही जैसे वस्तुओं का सेवन करना अच्छा माना जाता है। इस दिन व्रत कर भक्त शाम को वामन भगवान की आरती कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। समस्त परिवार के साथ इस व्रत को करने से मनुष्य की सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

वामन अवतार और राजा बलि
महर्षि कश्यप दूसरे कई ऋषियों के साथ मिलकर वामन भगवान का उपनयन संस्कार करते हैं। इस संस्कार में वामन बटुक को पुलह नामक के महर्षि ने यज्ञोपवीत संस्कार कराया। आंगिरस ने वस्त्र, अगस्त्य ने मृगचर्म, सूर्य ने छत्र, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, मरीचि ने पलाश दण्ड, भृगु ने खड़ाऊं, अदिति ने कोपीन, कुबेर ने भिक्षा पात्र तथा सरस्वती ने रुद्राक्ष माला दिए उसके बाद वामन भगवान पिता की आज्ञा लेकर राजा बलि के पास गए। उस समय राजा बली नर्मदा के उत्तर-तट पर अन्तिम अश्वमेध यज्ञ कर रहे होते थे। वामन भगवान ब्राह्मण का रूप धारण कर राजा बलि से भीख मांगने पहुंचें।

उस समय वामन अवतार ने राजा बलि से केवल तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि ने वामन के इस मांग पर सहमति व्यक्त की। इस पर वामन भगवान ने एक पैर से स्वर्ग था दूसरे पैर से पूरी पृथ्वी नाम ली। इसके बाद वह तीसरा पैर रखने के लिए राजा बलि से पूछे। इस पर राजा बलि भगवान का पैर रखने के लिए अपना सर दे देते हैं। राजा बलि के सिर पर पैर रखते हैं ही बलि परलोक चले जाते हैं। विष्णु भगवना प्रसन्न होकर राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना देते हैं। इस तरह देवताओं को स्वर्ग वापस मिल जाता है और वह प्रसन्नता पूर्वक रहने लगते हैं।

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