
श्री कृष्ण की भक्ति में डूबा पूरा भारत, जन्माष्टमी पर जाने पूजा का समय, मुहूर्त और शुभ योग
आज देश भर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूरे धूमधाम से मनाई जा रही है। हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय त्योहारों में से एक है, जो भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का 8वां अवतार भी माना जाता है, भगवान कृष्णा का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। श्री कृष्ण जन्माष्टमी न केवल भारत में ही, बल्कि विश्व भर में कृष्ण भक्तों द्वारा उल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है। आज हम आपको श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2025 के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, उत्सव के तरीके, और इसके महत्व के बारे में बतायेगे।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त
श्री कृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025, शनिवार को मनाई जा रही है। इस पर्व को भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से निशीथ काल पूजा का महत्व है, क्योंकि इस समय भगवान कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था। इसके मुहूर्त के बारे में बात करे तो अष्टमी तिथि सुबह 02:44 बजे से शुरू होकर 17 अगस्त 2025, सुबह 01:42 बजे तक है इसके अलावा रोहिणी नक्षत्र में शुभ मुहूर्त 16 अगस्त 2025, दोपहर 02:37 बजे से शुरू होकर 17 अगस्त 2025, दोपहर 01:30 बजे रहेगा। वही अगर निशीथ काल पूजा मुहूर्त की बात की जाये तो इसका समय 16 अगस्त 2025, रात 12:04 बजे से 12:47 बजे तक और ब्रह्म मुहूर्त 16 अगस्त 2025, सुबह 04:24 बजे से 05:07 बजे तक रहेगा। इसके अलावा विजय मुहूर्त 16 अगस्त 2025, दोपहर 02:37 बजे से 03:30 बजे तक होगा और व्रत पारण समय 17 अगस्त 2025, सुबह 06:19 बजे के बाद होगा।
कृष्णा जन्माष्टमी का विशेष योग जिसे जयंती योग भी कहा जाता है इसे अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग से बनने वाला अत्यंत शुभ माना जाता है। गज केसरी योग चंद्रमा और गुरु की युति से बनने वाला यह योग समृद्धि और सफलता प्रदान करता है।
कैसे मनाई जाएगी कृष्णा जन्माष्टमी ?
इस त्यौहार को भगवान कृष्ण के जन्म के रूप में मनाई जाती है इस समय पर लोग भक्ति, उत्साह और उल्लास के साथ मानते है। इस दिन भक्त व्रत, कृष्ण की पूजा और भजन कीर्तन करते है। इसके अलावा अलग अलग जगहों पर दही हांड़ी का आयोजन भी किया जाता है।
व्रत और पूजा -भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और निर्जला या फलाहारी व्रत का संकल्प लेते हैं।
घरों में पूजा स्थल को साफ कर, फूलों, रंगोली, और दीयों से सजाया जाता है।
भगवान कृष्ण की मूर्ति या चित्र को चौकी पर स्थापित किया जाता है, और उनका पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और चीनी का मिश्रण) से अभिषेक किया जाता है।
बाल गोपाल के रूप में कृष्ण जी को नए वस्त्र, आभूषण, और मोर पंख से सजाया और माखन, मिश्री, खीरा, और खीरे की पंजीरी जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं।
दही हांड़ी का आयोजन भगवान कृष्ण की बचपन की शैतानियों अटखेलियों को याद करते हुए किया जाता है जैसे वे अपने बालपन में माखन चुराने के लिए मटकियों को तोडा करते थे वैसे ही आज के युवा भी एक पिरामिड के आकार में ऊंचाई पर टंगी मटकी को तोड़ने का प्रयास करते है। इसे गोविंदा और दही हांड़ी कहा जाता है यह मुख्यता महाराष्ट्र का फेमस और लोकप्रिय पर्व है पर अब यह पूरे भारत में मनाया जाता है।
इसमें मध्यरात्रि तक लोग जग कर नाच गाना भजन कीर्तन करते है और रात 12:04 बजे से विशेष पूजा का आरंभ करते है। इस समय शंख और घंटी भजन और महाआरती की जाती है। क्योकि भगवन जा जन्म आधी रात को जेल में हुआ था।
कृष्ण जन्माष्टमी के विशेष आयोजन
भगवान कृष्ण का जन्मस्थान होने के कारण मथुरा और वृंदावन में यह पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। मंदिरों में रात भर भजन-कीर्तन और अभिषेक होते हैं।
इसके अलावा इस्कॉन मंदिरों में लाखों भक्त एकत्रित होते हैं। फूलों की सजावट, सामूहिक भजन, और प्रसाद वितरण के आयोजन होते हैं। उत्तर प्रदेश और गुजरात में रासलीला नाटकों का आयोजन होता है, जो कृष्ण और राधा की प्रेम लीलाओं को दर्शाता है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पराम् भक्ति और हर्षोलास के साथ मनाने का अवसर है। इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजा अर्चना और भजन कीर्तन के माध्यम कर भगवान की कृपा प्राप्त करते है। लोग इस दिन अपने घर में सजावट करते है बल गोपाल को घर में लाते है। यह पर्व केवल आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि परिवार और समुदाय को एकजुट करता है।