
प्रधानमंत्री ने 2070 तक कार्बन उत्सर्जन शून्य विकास का मॉडल बनाए जाने की बात की
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज जनपद गोरखपुर में दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय में ’पर्यावरण, प्रौद्योगिकी एवं सतत ग्रामीण विकास’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया।
संगोष्ठी का आयोजन दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई0सी0एस0एस0आर0) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इस अवसर पर उन्होंने महाविद्यालय की स्मारिका का विमोचन भी किया।
मुख्यमंत्री ने संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि जल, जीव, जन्तु, भूमि, पेड़-पौधों का समन्वित रूप ही पर्यावरण है। अगर इनका अस्तित्व ही संकट में होगा, तो जीवन सृष्टि कैसे आगे बढ़ेगी।
यदि भूमि रहने लायक न हो तथा जल पीने लायक न हो, तो प्रौद्योगिकी एवं विकास का हमारे जीवन में कोई महत्व नहीं है। इस संगोष्ठी के माध्यम से हम लोग अपने स्तर से इसके समाधान के लिए प्रयास कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि नगरीय क्षेत्रों में लोग अपने घर का कूड़ा, सड़कां या नाली में फेंक देते हैं और उसके निस्तारण की जिम्मेदारी नगर निगम पर छोड़ देते हैं, जबकि यह प्रत्येक नागरिक की दायित्व है।
नगर निकाय अपने दायित्व के निर्वहन के साथ ही, नागरिकों के सहयोग से कार्य करे, तो इसके निस्तारण में सफलता मिलेगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए प्रौद्योगिकी का योगदान महत्वपूर्ण है। कुछ दिन पहले मा0 सुप्रीम कोर्ट ने कुछ राज्यों को धुन्ध के लिए नोटिस जारी किया है।
पराली जलाने एवं औद्योगिक प्रदूषण के कारण धुन्ध की समस्या पैदा होती है। यह चीजें हमें बताती हैं कि हमने विकास तो किया, लेकिन विकास के अनुरूप तकनीक विकसित नहीं कर पाए।
कम्बाईन हार्वेस्टर मशीन के साथ हम यदि रीपर लगाते हैं, तो वह पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर उसी खेत में बिखेर देता है। जुताई के समय मिट्टी में मिलकर वह ग्रीन कम्पोस्ट के रूप मे खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ा सकता है।
लेकिन आज हम पराली को जला रहे हैं, जिसका असर खेती पर तो पड़ ही रहा है। साथ ही, पर्यावरण के लिए खतरनाक गैसें भी उत्पन्न हो रही हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इन सभी समस्याओं के लिए हम स्थानीय स्तर पर भी प्रयास कर सकते हैं। सतत विकास के लिए यू0एन0ओ0 ने वर्ष 2016 में पूरी दुनिया के लिए सतत विकास लक्ष्य तय किए।
इस लक्ष्य में समग्रता के लिए आवश्यक 17 गोल्स हैं, जिसके तहत 169 लक्ष्य तय किए गए हैं। इन्हें प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक होगा, क्योंकि इसके बिना जीव सृष्टि को आगे बढ़ाना अत्यन्त कठिन होगा।
इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित 17 लक्ष्य दिए गए हैं। इनमें एक लक्ष्य समुद्र एवं समुद्री जीवों के संरक्षण से सम्बन्धित भी है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय समाज शुरू से ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदनशील रहा है। अर्थववेद में पृथ्वी सूक्त में कहा गया है ‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ अर्थात यह धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं।
कोई भी पुत्र अपनी माँ पर इस प्रकार का प्रहार कभी स्वीकार्य नहीं करेगा। हमारी परम्परा हमें हमेशा जागरूक करती रही है, लेकिन हमने तकनीक का प्रयोग उस स्तर पर नहीं किया, जहां तक होना चाहिए।
हमें आवश्यकतानुसार तकनीक को विकसित करना होगा। साथ ही, प्रयास करना होगा कि तकनीक लोगों के विकास एवं सतत विकास में योगदान दे सकें।
मुख्यमंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी जी भी इस दृष्टि में बहुत दूरदर्शी थे। उन्हें वास्तविक भारत की समझ थी। वे ग्राम स्वराज की बात करते थे।
पहले गांव आत्मनिर्भर थे, लोग मिलकर रहते थे और भाव भंगिमाओं के साथ राष्ट्रीयता से जुड़े थे, लेकिन सरकारों पर उनकी निर्भरता शून्य थी। वे कृषि, पशुपालन, आजीविका का सृजन, व्यापार संचालन स्वयं करते थे।
समय पर सरकार को टैक्स भी देते थे। गांव की सड़कें ग्राम पंचायत स्वयं बनाती थी।
कूड़ा प्रबन्धन के लिए हर गांव में खाद का गड्ढा होता था। उनका अपना चारागाह, बगीचा, तालाब होता था। तालाब के जल का संरक्षण करते थे।
आज वर्षा का पानी व्यर्थ में बह जाता है, उसके बाद हम पानी के लिए तरसते हैं, किन्तु पहले गांव में तालाब गांव के जल की आवश्यकताओं की पूर्ति का माध्यम था।