एनालिसिस

सोनम वांगचुक-लद्दाखी अभियंता और अवार्डी अविष्कारक

सोनम वांगचुक एक ऐसी हस्ती हैं जिन्हें लद्दाख की पहाड़ियों में किसी पहचान की ज़रुरत नहीं है। कुछ समय पूर्व तक देश में यह नाम शायद ही किसी को मालूम था। यानी अनजाना सा था। पर हाल ही में “कौन बनेगा करोड़पति” कार्यक्रम में 50 लाख की भारी भरकम राशि जीतने के बाद यह नाम चर्चा में छाया हुआ है। हम सबको आमिर खान की बहुचर्चित फिल्म “थ्री इडियट्स ” तो आज भी याद है।
Sonam Wangchuk
जिसमें रेंचो यानी फुंसुक वांगड़ू का किरदार निभाने वाले आमिर खान को सबसे हटकर सोचने-और कुछ करने वाला स्टूडेन्ट दिखाई दिया। एक ऐसा अविष्कारक जो काबि​लियत को तरज़ीह देकर सफलता की सीढ़ी चढ़ता दिखाई दिया। जी हाँ वह किरदार था असल जिन्दगी के सोनम वांगचुक का। आज के दौर में भारतीय आविष्कारक की बात हो तो यह नाम विश्व में सबसे चर्चित ही नहीं होना चाहिए अपितू सोनम वांगचुक को नोबल प्राइस मिलना चाहिए।

आइये जानते है असल ज़िन्दगी के फुँसक वांगड़ू के बारे में –

01 सितम्बर 1966 को अल्ची के पास एक छोटी सी जगह उलटोकपो में जन्मे सोनम वांगचुक प्रकृृति प्रदत्त नेचुरल रिर्सोसेज को जनमानस के पक्ष में तब्दील करके अपनी तरह के अलग एक लद्दाखी अभियंता, अविष्कारक और शिक्षा सुधारवादी हैं। आविष्कारक होने के साथ-साथ एक शिक्षाविद, समाज सुधारक और अब एक राजनेता भी हैं। उन्होंने अपनी स्नातक शिक्षा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT), श्रीनगर से हासिल की और परास्नातक विश्वप्रसिद्ध क्रेटर इन्सटीट्यूट आफ आर्कीटेक्चर (Craterre Institute of Architecture, France-International Centre on Earthen Architecture)। वह शिक्षा, पर्यावरण और विकास के विभिन्न परियोजनाओं व संगठनों से जुड़े हैं, जिनमें प्रमुख हैं:-

सेकमॉल (Students’ Educational and Cultural Movement of Ladakh)

और ऑपरेशन न्यू होप (Operation New Hope)

वह छात्रों के एक समूह द्वारा 1988 में स्थापित स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीएमओएल) के संस्थापक-निदेशक भी हैं। संस्थापक छात्रों के अनुसार वो एक ऐसी विदेशी शिक्षा प्रणाली के पीड़ित हैं जिसे लद्दाख पर थोपा गया है। सोनम को एसईसीएमओएल परिसर को डिजाइन करने के लिए भी जाना जाता है जो पूरी तरह से सौर-ऊर्जा पर चलता है, और खाना पकाने, प्रकाश या तापन (हीटिंग) के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग नहीं करता है। सोनम वांगचुक को उनके एक्सपेरिमेंट्स के लिए मिला है ‘रोलेक्स अवॉर्ड फॉर इंटरप्राइज’-2016 दिया गया है। वांगचुक को ये अवॉर्ड लॉस एंजिल्स में दिया गया है।
सोनम वांगचुक को सरकारी स्कूल व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सरकार, ग्रामीण समुदायों और नागरिक समाज के सहयोग से 1994 में ऑपरेशन न्यू होप शुरु करने का श्रेय भी प्राप्त है। सोनम वांगचुक ने सूखे की समस्या से जूझते लद्दाख में सिंचाई के लिए एक आर्टिफिशियल ग्लेशियर बनाया है। बौद्ध बहुल लद्दाख में स्तूप बनाए जाने की परंपरा है। सोनम ने बर्फ-स्तूप तकनीक का आविष्कार किया है जो कृत्रिम हिमनदों (ग्लेशियरों) का निर्माण करता है, शंकु आकार के इन बर्फ के ढ़ेरों को सर्दियों के पानी को संचय करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसकी मदद से गर्मियाें में सिंचाई की जाती है। 2014 में सोनम ने ये स्तूप बिना किसी मशीनी मदद के, सिर्फ झाड़-झंखाड़ और पाइपों की मदद से बनाया था। इस बर्फीले स्तूप के जरिए ड्रिप एर्रिगेशन सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए सिंचाई की जाती है।

ऐसा स्तूप गर्मियों के मध्य तक कायम रहता है, जब आसपास की सारी बर्फ पिघल जाती है। ऐसा इसके कोन शेप के कारण होता है। कोन शेप के कारण इसका सरफेश एरिया कम हो जाता है। यानी इस पर पड़ने वाली धूप की मात्रा कम हो जाती है। इससे बर्फ पिघलती नहीं है। आइस स्तूप बनाने में झांड़-झंखाड़ और पाइपों का इस्तेमाल होता है। सोनम की तकनीक के कारण इसमें किसी मशीन या बिजली की जरूरत नहीं पड़ती। इसके लिए एक अंडरग्राउंड पाइप के जरिए उस जगह तक पानी पहुंचाया जाता है। पानी एेसे किसी जलस्रोत से आना चाहिए, जो ग्राउंड लेवल से 60 मीटर ऊंचा हो। दरअसल, ऊंचाई से आने वाला पानी उसी ऊंचाई तक उछलता भी है।
सोनम ने अपने स्तूप के लिए पानी की व्यवस्था समीप के गांव से की है, जो ऊंचाई पर बसा है। वहां से अंडरग्राउंड पाइप के जरिए आया पानी एक सीधे खड़े पाइप से होते हुए फौव्वारे की तरह उछलता है।
इसके बाद पानी बूंदों के रूप में वहां जमाए गए सूखे झाड़-झंखाड़ पर गिरता रहता है। बूंदों के रूप में पानी जल्दी जमता है। इस तरह वहां एक कोन के आकार का बर्फीला स्तूप तैयार हो जाता है।
अब बच्चों के पास प्रासंगिक पाठ्यपुस्तकें हैं। शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया है। प्रशासकों की जिम्मेदारी बढ़ी है और ग्राम समितियों के देख-रेख में अन्य विद्यालय भी चल रहे हैं। मुख्य बात यह है कि 2003-2006 तक छात्रों की सफलता दर 50 % तक आ गई जो की अब करीब 70 फीसदी के पार पहुंच चुकी है।
इसी सफलता से जलते हुए उस समय के डीएम एम0 के0 द्विवेदी ने सेकमॉल के खिलाफ झूठे आरोप लगाकर उसके निर्देशक यानी सोनम वांगचुक के खिलाफ मुकदमा करा दिया। इस हरकत से उपजे जन-विरोध को दबाने के लिए भी जनता से सेकमॉल संगठन का संवाद ठप कर डाला और 06 साल चले इस मामले में ऐशिआई मानवाधिकार आयोग ने अंतराष्ट्रीय मंच पर मुहीम चलाई। नतीजन 2013 में सेकमॉल केस जीत गया, सोनम बरी हो गए और एम0 के0 द्विवेदी  का ट्रांसफर हो गया।
जबकि इस मामले में डीएम मि0 द्विवेदी को प्र​ताड़ित ही नहीं किया जाना चाहिए था, बल्कि उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए थी। परन्तु इस मामले के बाद सेकमॉल को सरकार के साथ कार्य बंद कर स्कूली शिक्षा से आगे बढ़ते हुए स्वतंत्र कार्य आरम्भ करना पड़ा। वाकई एक संघर्षशील सफर शिक्षा में क्रांतिकारी सुधार का!

बर्फ स्तूप प्रोजेक्ट

सोनम वांगचुक ने लदाख में ही अपना सबसे बड़ा आविष्कार किया-बर्फ स्तूप जो कृत्रिम हिमनदों का निर्माण करता है ताकि वर्षा से मौजूद पानी का संचय हो सके। अक्टूबर 2013 में इस परियोजना की नींव पड़ी और अगले ही साल ‘द आइस स्तूप’ परिक्षण परियोजना की शुरुआत  हुई। 2014 में फरवरी के अंत तक, उन्होंने सफलतापूर्वक एक बर्फ-स्तूप की दो प्रोटोटाइप का निर्माण किया था, जो लगभग 150,000 लीटर सर्दियों के पानी का भंडार कर सकता था। लेकिन उस समय ऐसा नहीं चाहता था।
2015 में जब लद्दाख को भूस्खलन की वजह से संकट का सामना करना पड़ा, जिसने झांस्कर में फुगताल नदी को अवरुद्ध कर दिया और 15 किमी लंबी झील का निर्माण किया, जो डाउनस्ट्रीम आबादी के लिए एक बड़ा खतरा बन गया, वांगचुक ने झील को निकालने के लिए एक साइफन तकनीक का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा। झील को नष्ट करने के बजाए किनारों को सुरक्षित रूप से काटने के लिए जल जेट के क्षरण की योजना बनाई गई। हालांकि, उनकी सलाह को नजरअंदाज कर दिया गया था और ब्लास्टिंग के काम पर ज़ोर दिया गया था।
7 मई 2015 को, झील, तेज़ बाढ़ में बदल गयी। जिसने कई पुलों और जमीन को नष्ट कर दिया। उनकी इस परियोजना की ख्याति अंतराष्ट्रीय मंच पर होने लगी और 2016 में स्विट्ज़रलैंड की प्रोसेन्टीना नगरपालिका अध्यक्ष ने उन्हें न्योता दिया और अक्टूबर 2016 में वांगचुक और उनकी टीम स्विस आल्प्स में गई एवं स्विस भागीदारों के साथ मिलकर यूरोप के प्रथम बर्फ स्तूप का निर्माण करना शुरू कर दिया। 2016 में इस कार्य लिए उन्हें रोलेक्स अवार्ड से सम्मानित किया गया और 2017 में गिनीस बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में उन्होंने सबसे बड़े बर्फ स्तूप बनाने का रिकॉर्ड दर्ज़ करवाया।

अन्य परियोजनाएं 

2016 में वांगचुक ने फार्मस्टेस लडाख नामक एक परियोजना शुरू की, जो लद्दाख के स्थानीय परिवारों के साथ रहने के लिए पर्यटकों को प्रदान करता है, माता और मध्यम आयु वर्ग की महिलाओं द्वारा संचालित इस परियोजना को सोनम भविष्ययापी मानते हुए हर पहाड़ी स्थान तक पहुंचना चाहते हैं। 2015 से ही वांगचुक अपनी सबसे बड़े महतत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर कार्यरत हैं जिसका नाम है हिमालयन इंस्टीटूट ऑफ़ अल्टरनेटिव्ज जिसपर बात करते हुए सोनम अक्सर चिंता जताते हैं कि आज के विश्विद्यालय ज़िन्दगी की वास्तविकता से एकदम परे हो चुके हैं।

कैसे आप संपर्क/कार्य कर सकते हैं सोनम के साथ 

सोनम वांगचुक के सेकमॉल और उसके अलावा 2012 में बनाये गए शहरी सतत विकास हेतु संगठन फ्यूचर इंस्टीट्यूट से भी बतौर कार्यकर्ता आप जुड़ सकते हैं। जिसके लिए आप संस्थान की वेबसाइट पर लाग-इन कर सकते हैं।  सेकमॉल में अक्सर स्टूडेंट ग्रुप्स जाते हैं। जिन्हें कई तरह के लाइफ स्किल आधारित कोर्स जैसे योग, स्केटिंग, ट्रेकिंग, हाईकिंग आदि सिखाये  जाते हैं। वह भी पर्यावरण ज्ञान के साथ। सोनम से सीधे जुड़ने के लिए आप उनसे ट्विटर और फेसबुक पेज पर भी जुड़ सकते हैं। जहाँ आप उनसे सीधे संवाद कर सकते हैं।उनकी परियोजनाओं और अन्य कार्यो के बारे में निरंतर जानकारी कर सकते हैं।
मानव सभ्यता से दूर, वीरान ठंडी पहाड़ियों के इस शख्स ने कम संसाधनों से अपनी प्रतिभा, आत्मविश्वास, दृढ संकल्प, बुद्धिमत्ता और कौशल से सतत विकास की नई कहानी लिखी है। जिससें न सिर्फ समाज बल्कि धरती का भी कल्याण हो सकता है। यह भविष्य के हर एक  अविष्कारक के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।  सोनम वांगचुक खुद भी कहते हैं-“बाहर जाने की ज़रुरत नहीं सब अपने देश में है”। खुद को फुंसुक वांगड़ू न मानने वाले सोनम वांगचुक असल में वही है, जिसका किरदार आमिर खान परदे पर करके छा गये और करोड़ों बटोर ले गये।

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