
शीतल देवी का रहा शानदार प्रदर्शन, कंपाउंड की मजबूती लेकिन रिकर्व खिलाड़ियों ने किया निराश
कोलकाता। जन्म से ही हाथों के बिना जन्मी शीतल देवी ने अपने कौशल का शानदार प्रदर्शन करते हुए वर्ष 2025 में भारतीय तीरंदाजी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, लेकिन अगले साल होने वाले एशियाई खेलों से पहले रिकर्व तीरंदाजों का प्रदर्शन चिंताजनक बना हुआ है। जम्मू के किश्तवाड़ की रहने वाली 18 वर्षीय शीतल ने पूरे वर्ष अपने दमदार प्रदर्शन से अपनी दृढ़ता की शानदार मिसाल कायम की। पेरिस में 2024 में खेले गए पैरालंपिक खेलों की कांस्य पदक विजेता इस 18 वर्षीय खिलाड़ी ने पैरा तीरंदाजी में विश्व चैंपियन बनकर अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की।
दक्षिण कोरिया के ग्वांगजू में आयोजित विश्व पैरा तीरंदाजी चैंपियनशिप में शीतल ने महिला कंपाउंड ओपन स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने फाइनल में तुर्की की पैरालंपिक चैंपियन ओजनुर क्यूरे गिर्डी को हराया था। उन्होंने टीम स्पर्धा में रजत पदक और मिश्रित टीम स्पर्धा में कांस्य पदक भी जीतकर अपने शानदार अभियान का समापन किया।
फोकोमेलिया नामक एक दुर्लभ जन्मजात बीमारी के कारण बिना हाथों के जन्मी शीतल ने अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए क्वालीफाई करके प्रेरणादायी प्रदर्शन किया। सोनीपत में राष्ट्रीय चयन ट्रायल में 60 से अधिक सक्षम तीरंदाजों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करते हुए शीतल ने महिलाओं की कंपाउंड रैंकिंग में तीसरा स्थान हासिल किया था।
इस साल का एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम यह रहा कि दशकों के इंतजार के बाद आखिरकार 2025 में कंपाउंड तीरंदाजी को ओलंपिक में मान्यता मिल गई। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने घोषणा की कि कंपाउंड मिश्रित टीम स्पर्धा को 2028 में लॉस एंजिल्स में होने वाले खेलों के तीरंदाजी कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा। इस स्पर्धा के शामिल होने से ओलंपिक तीरंदाजी में पदक स्पर्धाओं की कुल संख्या छह हो गई है। रिकर्व वर्ग में पहले से ही पांच स्पर्धाएं शामिल हैं। भारत ने अभी तक ओलंपिक तीरंदाजी में पदक नहीं जीता है, लेकिन उसके पास दुनिया की सबसे मजबूत कंपाउंड तीरंदाजी टीम है। ऐसे में यह फैसला उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
अभिषेक वर्मा, ज्योति सुरेखा वेन्नम, ऋषभ यादव जैसे तीरंदाजों से अगले ओलंपिक खेलों में पदक की उम्मीद की जा सकती है। ढाका में आयोजित एशियाई तीरंदाजी चैंपियनशिप में भारत ने महाद्वीपीय स्तर पर अपना अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया और 10 पदकों (छह स्वर्ण, तीन रजत और एक कांस्य) के साथ पदक तालिका में शीर्ष स्थान हासिल किया। अंकिता भकत ने महिला रिकर्व व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता,
जबकि धीरज बोम्मादेवरा ने पुरुष रिकर्व का खिताब अपने नाम किया। यह पहला अवसर था जबकि भारतीय खिलाड़ियों ने एशियाई चैंपियनशिप में रिकर्व की दोनों व्यक्तिगत स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीता। पुरुषों की रिकर्व टीम ने भी एक रोमांचक शूट ऑफ में कोरिया को हराकर उनके लंबे समय से चले आ रहे वर्चस्व को तोड़ा। तीरंदाजी के गढ़ माने जाने वाले दक्षिण कोरिया ने हालांकि इस प्रतियोगिता में अपने शीर्ष खिलाड़ियों को नहीं उतारा था।
ढाका में मिली सफलता को छोड़ दिया जाए तो भारत के रिकर्व तीरंदाजों के लिए विश्व स्तर की प्रतियोगिताओं में यह साल काफी मुश्किल रहा। विश्व चैंपियनशिप में भारत कोई भी पदक नहीं जीत पाया जिससे खिलाड़ियों के प्रदर्शन में निरंतरता का अभाव भी उजागर हुआ। अंकिता ने ढाका में अपने करियर की सबसे बड़ी जीत दर्ज की।



