साथी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना साझा कर्तव्य है, केवल सरकारों की जिम्मेदारी नहीं: राष्ट्रपति मुर्मू
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को आह्वान किया कि मानवाधिकारों की रक्षा करना केवल सरकारों, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) या ऐसे अन्य संस्थानों की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि साथी नागरिकों के अधिकारों एवं गरिमा की रक्षा करना एक ‘‘साझा कर्तव्य’’ है।
मानवाधिकार दिवस के मौके पर यहां एनएचआरसी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि ये ‘‘हमें यह याद दिलाने का अवसर है कि सार्वभौमिक मानवाधिकार अविभाज्य हैं और वे एक न्यायपूर्ण, समान और दयालु समाज की आधारशिला हैं।’’
इस अवसर पर एनएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) वी. रामासुब्रमण्यन और प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी.के. मिश्रा भी मंच पर उपस्थित थे। वर्ष 1950 से हर साल 10 दिसंबर को दुनिया भर में मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है, जो 1948 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) को अपनाने का प्रतीक है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘आज मैं प्रत्येक नागरिक से यह समझने का आह्वान करती हूं कि मानवाधिकार केवल सरकारों, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), नागरिक समाज संगठनों और ऐसे अन्य संस्थानों की जिम्मेदारी नहीं हैं। अपने साथी नागरिकों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा करना हम सबका साझा कर्तव्य है। एक करुणामय और जिम्मेदार समाज के सदस्य के रूप में यह हम सभी का कर्तव्य है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आइए हम ‘विकसित भारत’ के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प लें, जो समग्र विकास और सामाजिक न्याय का आदर्श मिश्रण प्रदर्शित करेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की मानवाधिकार सिद्धांतों के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता को वैश्विक स्तर पर भी मान्यता मिल रही है, इसका प्रमाण भारत का सातवीं बार संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में तीन साल के कार्यकाल के लिए निर्विरोध चुना जाना है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि मानवाधिकार सामाजिक लोकतंत्र को बढ़ावा देते हैं और उनमें ‘‘बिना किसी डर के जीने का अधिकार, बिना किसी बाधा के सीखने का अधिकार, बिना शोषण के काम करने का अधिकार’’ शामिल है।



