PanchTantra की कहानी भाग—दो
PanchTantra के इससे पहले के भाग—एक में आप पढ़ चुके हैं कि—घनचक्कर, रंगा सियार, बेकार पचड़े में पडऩा, मगरमच्छ के आसूं, नकली शेर, बाघ की खाल, ढ़ोल की पोल, बगुला भगत, बंदर को उपदेश, टिटहरी का संकल्प, गधे का अलाप, गंगदत्त फिर कुएं में नहीं आएगा, मरे सिंह को जिलाना, सोये शेर को जगाना, पढ़े लिखे मूर्ख, नादान दोस्त से ज्ञानी दुश्मन भला, नंगी क्या नहाये क्या निचोड़े, नकल के लिए भी अकल चाहिए, सोमशर्मा (शेखचिल्ली) की उड़ान, सोने की मुहर देने वाला सांप (अंडे देने वाला मुर्गा) आदि उक्तियों से इसे कुछ दूर तक समझा जा सकता है।
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विष्णुशर्मा ऐसे शिक्षाशास्त्री थे जो यह मानते और समझते थे कि शिक्षा को बोझ बनाकर बेचारे शिष्यों पर लाद देने की जगह एक ऐसा खेल भी बनाया जा सकता है, जिसमें वे अपना मन बहलाते हुए सीख सकें। शरारत करते हुए जान सकें। वह ऐसे शिक्षाविद लगते हैं, जो जानते थे कि शरारती बच्चे शरीफ बच्चों से अधिक प्रतिभाशाली होने के कारण ही शरारती हो जाते हैं। शरीफ बच्चों को जो बात बारह साल में समझाई जा सकती है।
वह शरारती माने जाने वाले बच्चों को सही शिक्षा पद्धति अपना कर छह महीने में भी समझाई जा सकती है। वे उस परंपरा के शिक्षक थे जिसमें सेक्स एजुकेशन या कामशास्त्र का ज्ञान वर्जित नहीं था। अत: इन कहानियों में बहुत सी यौन स्खलनों और कुटिलताओं की कहानियां भी हैं जिनका ज्ञान एक व्यावहारिक व्यक्ति और प्रशासक को होना ही चाहिए।
ज्ञानकोश शब्द नया है। संभवत: पश्चिम में ज्ञानकोश लिखने का पहला प्रयत्न यूरोप में फ्रांस के कुछ पंडि़तों ने अठारहवीं शताब्दी में किया था जिन्हें ‘इनसाइक्लोपिडिस्ट के नाम से जाना जाता है। इनमें फ्रांस के महान दार्शनिक और रचनाकार वाल्तेयर भी थे। हमारी अपनी जानकारी में दुनिया के सबसे पुराने ज्ञानकोषकार महर्षि व्यास माने जाते हैं।
महाभारत को इस लालसा के चलते उन्होंने या उनके शिष्यों ने एक महाकाव्य से अधिक एक महाकोश बना दिया। उन्होंने कहानी में कोंन अंतरे तलाश कर क्षेपक जोड़ कर बहुत से ऐसे विषय और प्रसंग इसमें समेट लिए जिनको किसी महाकाव्य में रखना जरूरी नहीं था। लोगों का यह दावा कि जो कुछ इसमें है, वही अन्यत्र भी मिलेगा, जिसका वर्णन इसमें नहीं है। ……………आगे भाग—तीन