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अमेरिका के साथ रिश्तों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर की दो टूक- ‘कुछ ऐसी शर्तें, जिनसे भारत नहीं कर सकता समझौता’

रूस से कच्चे तेल की लगातार खरीदारी के मसले पर भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर जारी तनाव के बीच विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने फिर स्पष्ट संदेश दिया है कि भारत की नीतियां उसके राष्ट्रीय हित में होंगी। इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम 2025 में विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि भारत, रूस से कच्चा तेल अपने राष्ट्रीय हित और वैश्विक हित दोनों के लिए खरीद रहा है। उन्होंने स्वीकार किया कि ट्रंप प्रशासन के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत में कुछ मुद्दे हैं। भारत की कुछ ‘रेड लाइन्स’ हैं। कुछ ऐसी शर्तें हैं जिनसे भारत समझौता नहीं कर सकता।

ट्रेड डील के संदर्भ में अमेरिका से अब भी बातचीत जारी

जयशंकर ने भारत और यूएस के बीच ट्रेड डील के संदर्भ में कहा, ‘बातचीत अब भी चल रही है क्योंकि किसी ने भी यह नहीं कहा कि बातचीत बंद है। लोग एक-दूसरे से बात करते हैं। ऐसा नहीं है कि वहां कोई ‘कुट्टी’ है। जहां तक हमारा सवाल है, रेड लाइंस मुख्य रूप से हमारे किसानों और कुछ हद तक हमारे छोटे उत्पादकों के हित हैं। हम, एक सरकार के रूप में, अपने किसानों और अपने छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम इस पर बहुत दृढ़ हैं। ऐसा कुछ नहीं है, जिस पर हम समझौता कर सकें।’

‘चीन खरीद रहा सबसे ज्यादा रूसी तेल, उस पर टैरिफ क्यों नहीं’

उल्लेखनीय है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले सामानों पर सात अगस्त से 25 फीसदी का टैरिफ लागू कर दिया है। इसके अलावा, रूस से भारत के कच्चे तेल की खरीद से नाराज होकर ट्रंप ने 27 अगस्त से 25 फीसदी का अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा कर रखी है। इस पर विदेश मंत्री ने कहा कि रूस से तेल खरीद को लेकर यूएस ने टैरिफ बढ़ाने का फैसला लिया है। हालांकि, ये अब तक रूसी तेल के सबसे बड़े आयातक, चीन पर इसे लागू नहीं किया है।

‘हम ऐसे निर्णय लेते हैं, जो राष्ट्रीय हित में होते हैं‘

जयशंकर ने रूस के साथ भारत के ऊर्जा संबंधों का भी पुरजोर बचाव किया। उन्होंने कहा कि रूस से तेल की खरीद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों हितों को पूरा करती है। भारत के पास स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता है। आखिरकार, हम ऐसे निर्णय लेते हैं, जो राष्ट्रीय हित में होते हैं।

विदेश मंत्री ने कहा कि यह हास्यास्पद है कि जो लोग व्यापार समर्थक अमेरिकी प्रशासन के लिए काम करते हैं। वे दूसरे लोगों पर व्यापार करने का आरोप लगा रहे हैं। अगर आपको भारत से तेल या दूसरे उत्पाद खरीदने में कोई समस्या है, तो उसे न खरीदें। कोई आपको इसे खरीदने के लिए मजबूर नहीं करता। यूरोप खरीदता है, अमेरिका खरीदता है, इसलिए अगर आपको यह पसंद नहीं है, तो इसे न खरीदें।

अमेरिका से जोड़कर भारत-चीन संबंधों का विश्लेषण गलत

जयशंकर भारत-चीन संबंधों पर कहा, ‘मैं आपको यह समझाना चाहता हूं कि यह सब कुछ स्पष्ट नहीं है। ऐसा नहीं है कि अमेरिका के साथ कुछ हुआ है, इसलिए तुरंत चीन के साथ कुछ हो गया है। अलग-अलग समस्याओं के लिए अलग-अलग समय-सीमाएं होती हैं। मुझे लगता है कि हर चीज को एक साथ जोड़कर एक विशिष्ट स्थिति के लिए एक एकीकृत प्रतिक्रिया बनाने की कोशिश करना एक गलत विश्लेषण होगा। आज, निश्चित रूप से, एक वैश्विक परिदृश्य है। मैं चाहता हूं कि आप समझें कि एक विकास है। उस रिश्ते का एक प्रवाह है। और भी रिश्ते हैं, लेकिन इस संबंध को इतना गहरा न बनाएं। यह वास्तविकता नहीं है।

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