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25 मार्च 1989 की वो घटना, जिसके बाद जयललिता ने CM बनकर ही सदन में लौटने की ली प्रतिज्ञा

कई बार जिंदगी में हुई घटना बहुत कुछ बदलकर रख देती है। कई बार इतिहास की घटनाएं ऐसी होती हैं जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। 25 मार्च 1989 को भी कुछ ऐसी ही हुई था जिसने तमिलनाडु की राजनीतिक सियासत को बदल कर रख दिया और इसके साथ ही एक ऐसी महिला नेता को जन्म दिया जो तमिल सियासत की लेडी सिंघम बनकर दशकों तक राज करती रहीं।

जयललिता से तो परिचित होंगे लेकिन उनके राजनीतिक सफर के बारे में ज्यादा जानकारी बहुत ही कम लोगों को होगी। एआईएडीएमके के मंत्री, सांसद, विधायक, नेता और समर्थक जयललिता को अम्मा और पुरातची थलाइवी यानी क्रांतिकारी नेता के नाम से पुकारते हैं।

एमजी रामचंद्रन तमिल फिल्मों के सुपरस्टार थे। 1930 के दशक से 1984 तक उन्होंने तमिल फिल्मों में काम किया। जब एमजी रामचंद्रन फिल्मों से राजनीति में आए तो वो जयललिता को भी अपने साथ ले आए। एमजीआर ने ही एआईएडीएमके का गठन किया था। 1982 में जयललिता ने एआईएडीएमके की सदस्यता ग्रहण की थी। उन्होंने पहला चुनाव तिरुचेंदुर सीट से जीता था।

1988 में एमजीआर के निधन के बाद एआईएडीएमके दो हिस्सों में बंट गई। इसमें से एक हिस्से का नेतृत्व एमजीआर की पत्नी जानकी कर रही थी और दूसरे हिस्से का नेतृत्व जयललिता कर रही थीं। जयललिता खुद को एमजीआर का राजनीतिक उत्तराधिकारी मानने लगी। उस वक्त तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष ने जयललिता गुट के 6 सदस्यों को अयोग्य करार दे दिया और जानकी रामचंद्रन तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।

जिसके बाद आता है वर्ष 1989 का विधानसभा चुनाव जिसमें जयललिता गुट के 27 विधायकों ने जीत दर्ज की और वो विपक्ष की नेता बन गईं। लेकिन 25 मार्च 1989 को तमिलनाडु की विधानसभा में जो कुछ भी हुआ उसने लोगों में जयललिता के प्रति सहानुभूति बढ़ा दी और तमिलानाडु का राजनीतिक इतिहास भी बदल कर रख दिया। 1989 की 25 मार्च को तमिलनाडु विधानसभा में बजट पेश किया जा रहा था। जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके ने हाल के ही विधानसभा चुनाव में 27 सीटें जीती थीं और तमिलनाडु की विधानसभा को विपक्ष में एक महिला नेता मिली थी।

उस वक्त डीएमके सरकार में थी और मुख्यमंत्री थे एम करुणानिधी। सदन में जैसे ही बजट भाषण पढ़ा जाना शुरू हुआ जयललिता और उनकी पार्टी के नेताओं ने विधानसभा में हंगामा शुरू कर दिया। हंगामा इतना बढ़ा कि एआईएडीएमके के किसी नेता ने करुणानिधी की तरफ फाइल फेंकी जिससे उनका चश्मा गिरकर टूट गया। जययलिता ने जब देखा कि हंगामा ज्यादा बढ़ रहा है तो वो सदन से बाहर जाने लगी। तभी मंत्री दुरई मुरगन आ गए और उन्होंने जयललिता को बाहर जाने से रोका और उनकी साड़ी खींची जिससे उनकी साड़ी फट गई और वो खुद भी जमीन पर गिर गईं। सत्ता पक्ष यानी डीएमके और विपक्ष यानी एआईएडीएमके के सदस्यों के बीच विधानसभा में हाथा-पाई हुई।

अपनी फटी हुई साड़ी के साथ जयललिता विधानसभा से बाहर आ गईं। यही वो दिन था जब जयललिता ने सदन से निकलते हुए कहा था कि वो मुख्यमंत्री बनकर ही इस सदन में वापस आएंगी वरना कभी नहीं आएंगी। वर्ष 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद चुनाव में कांग्रेस से समझौता किया। दोनों दलों को तमिलनाडु के चुनाव में 234 में 225 पर जीत मिली। जिसके बाद जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बन गईं।

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