
सूरदास जयंती,जानिए सूरदास जी के जीवन के बारे में
सूरदास जयंती 17 मई, सोमवार के दिन मनायी जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल वैशाख शुक्ल पंचमी को सूरदास जी की जयंती मनाई जाती है। सूरदास जी अपने साहित्यक कौशल के लिए जाने जाते हैं। वे अपनी कविताएं, गीत और दोहों के लिए प्रसिद्ध हुए। सूरसागर, सूरसावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती, ब्याहलो उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। आइए जानते हैं सूरदास जी के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।
सूरदास का 1478 ई में रुनकत गांव में हुआ था। सूरदास का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदास था। सूरदास के जन्म को लेकर अलग-अलग मत हैं। उनके जन्मांध को लेकर भी लोगों के अलग-अलग मत हैं। एक मत के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि सूरदास जी जन्म से अंधे थे। तो वहीं दूसरे मतानुसार सूरदास जी जन्म से अंधे नहीं थे।
सूरदास बचपन से साधु प्रवृति के थे। इन्हें गाने की कला वरदान रूप में मिली थी। जल्द ही ये बहुत प्रसिद्ध भी हो गये थे। कुछ दिनों में वह आगरा के पास गऊघाट पर रहने लगे। यहां ये जल्द ही स्वामी के रूप में प्रसिद्ध हो गये। यहीं पर इनकी मुलाकात वल्लभाचार्य जी से हुई। उन्हें इन्हें पुष्टिमार्ग की दीक्षा दी और श्री कृष्ण की लीलाओं का दर्शन करवाया। वल्लभाचार्य ने इन्हें श्री नाथ जी के मंदिर में लीलागान का दायित्व सौंपा जिसे ये जीवन पर्यंत निभाते रहें।
माना जाता है सूरदास को एक बार भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त हुए थे। वे भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे। कहते हैं जब सूरदास की मुलाकात वल्लभाचार्य से हुई वे उनके शिष्य बन गए इसके बाद पुष्टिमार्ग की दीक्षा प्राप्त करके कृष्णलीला में रम गए। वे ‘भागवत’ के आधार पर कृष्ण की लीलाओं का गायन करने लगे।
सूरदास भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे उनकी कृष्ण भक्ति के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक बार सूरदास कृष्ण की भक्ति में इतने डूब गए थे कि वे एक कुंए जा गिरे, जिसके बाद भगवान कृष्ण ने खुद उनकी जान बचाई और आंखो की रोशनी वापस कर दी। जब कृष्ण भगवान ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान में कुछ मांगने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि आप फिर से मुझे अंधा कर दें। मैं कृष्ण के अलावा अन्य किसी को देखना नहीं चाहता। महाकवि सूरदास के भक्तिमय गीत हर किसी को मोहित करते हैं।