राष्ट्रीय

‘वन हेल्थ’ मॉडल की जरूरत, बार-बार इस तरह के संक्रमण से जूझ रहा राज्य- स्वास्थ्य विशेषज्ञ

केरल के कोझिकोड जिले में निपाह वायरस से एक 12 साल के बच्चे की मौत के बाद, राज्य में ‘वन हेल्थ’ मॉडल विकसित करने को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू गई है। निपाह वायरस का अभी तक कोई इलाज या कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। वन हेल्थ की अवधारणा के तहत इंसानों के स्वास्थ्य को जानवरों के स्वास्थ्य और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंधों को जोड़कर देखा जाता है और इसी के अनुरूप बीमारी की जोखिमों, रोक और उसके इलाज के उपाय किए जाते है।

पिछले सालों में कई बीमारियां जानवरों में पाए गए वायरस के कारण फैली है। सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम , हाइली पैथोजेनिक एविएन इन्फुलेंजा (HPAI), क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज (मंकी फीवर), निपाह, H1N1 और स्वाइन फ्लू जैसे जूनोटिक वायरस (जानवरों में पाए जाने वाले) के बार-बार फैलने के बावजूद केरल में कोई स्थायी इंटर-डिसिप्लीनरी ढांचा नहीं है। जिससे इन बीमारियों से होने वाली मौतों और इसकी गंभीरता को कम किया जा सके।

स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ एनीमल डिजीज के अधिकारी डॉ एस नंदकुमार ने बताया, हमने राज्य सरकार को पर्यावरण विशेषज्ञ सहित अलग-अलग विभागों से एक्सपर्ट्स को लेकर एक पब्लिक हेल्थ विंग का गठन करने के लिए कहा है। इससे आपातकालीन स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में स्थायी रणनीति बनाने में मदद मिलेगी।

एकीकृत सिस्टम बनाने की जरूरत- डॉक्टर
डॉ नंदकुमार ने कहा, एक एकीकृत वन हेल्थ सिस्टम इस तरह की चुनौतियों से निपटने का सबसे बढ़िया तरीका है। निपाह वायरस चमगादड़ों की लार से फैलता है। अगर चमगादड़ ने किसी फल को संक्रमित किया है और उसे खाया जाता है तो निपाह फैल सकता है।

सेंटर फॉर वन हेल्थ एजुकेशन के ऑफिसर इनचार्ज डॉ प्रेजित नांबियार ने अखबार से कहा कि नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) ने इस तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए सभी राज्यों में जूनोटिक डिजीज स्टीयरिंग कमिटी के गठन का सुझाव दे चुका है। उन्होंने कहा, लेकिन राज्य हर बार संक्रमण फैलने पर अस्थायी एक्सपर्ट पैनल गठित करती रहती है। अलग-अलग विभागों से रिसर्च डेटा शेयर कर एक स्थायी मैकेनिज्म तैयार करना जरूरी है।

कोझिकोड के अलावा पड़ोस जिलों में भी निगरानी
इससे पहले जब 2018 में केरल में पहली बार निपाह वायरस सामने आया था तो राज्य के पास इस उच्च मृत्यु दर वाली बीमारी से निपटने का कोई अनुभव नहीं था। राज्य सरकार ने इबोला वायरस के खिलाफ इस्तेमाल किए गए प्रोटोकॉल को अपनाया था। जून 2018 में एक वक्त, कोझिकोड और मलप्पुरम जिले में करीब 3,000 लोगों को क्वारंटीन कर दिया गया था। जो व्यक्ति संक्रमितों के सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आए थे। उन्हें निगरानी में रखा गया था।

केरल में बच्चे की मौत के बाद कोझिकोड जिले में स्वास्थ्य अलर्ट घोषित कर दिया है। और बच्चे के घर से करीब तीन किलोमीर दूर तक के इलाके की घेराबंदी कर दी है। इसके अलावा स्वास्थ्य अधिकारियों ने क्षेत्र के लोगों को बुखार, उल्टी और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के किसी भी मामले की सूचना देने को कहा है। मल्लापुरम और कन्नूर में स्वास्थ्य अधिकारियों को भी स्थिति पर करीब से नजर रखने के लिए कहा गया है। तमिलनाडु और कर्नाटक सरकार ने बॉर्डर जिलों में केरल से आने वाले लोगों के लिए निगरानी बढ़ा दी है।

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