धार्मिक

दशहरा पर्व पर इस विजय मुहूर्त में जो भी काम शुरू करेंगे, उसमें विजय निश्चित है

दशहरा पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को विजयादशमी भी कहा जाता है। क्योंकि एक तो यह माँ भगवती के विजया स्वरूप का प्रतीक है। दूसरा इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर लंका पर विजय हासिल की थी। दशहरा पर्व को बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत के रूप में देखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन ग्रह-नक्षत्रों के संयोग ऐसे होते हैं। जिससे इस दिन किये जाने वाले हर काम में विजय निश्चित होती है। भारत के इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण भरे पड़े हैं। जिनमें हिन्दू राजा विजयादशमी के दिन विजय के लिए प्रस्थान किया करते थे। इतिहास में यह भी उल्लेख मिलता है कि मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था।

विजयादशमी पर विजय मुहूर्त
इस साल विजयादशमी का पर्व 15 अक्टूबर को मनाया जायेगा। यदि आप भी किसी कार्य में विजय हासिल करना चाहते हैं। तो इस बार विजयादशमी के दिन बन रहे विजय मुहूर्त यानि दोपहर दो बजकर 1 मिनट से लेकर दो बजकर 47 मिनट के बीच उस कार्य को कर लें या उसका शुभारम्भ कर दें। विजय निश्चित मिलेगी। यानि इस बार दशहरे पर यह 46 मिनट आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस साल दशमी तिथि का आरम्भ हालांकि 14 अक्टूबर को सायं 6 बजकर 52 मिनट पर ही हो जा रहा है। लेकिन उदया तिथि के हिसाब से दशहरा 15 अक्टूबर को मनाया जायेगा। 15 अक्टूबर 2021 को दशमी तिथि सायं 6 बजकर 02 मिनट पर समाप्त हो जायेगी। यह भी मान्यता है कि दशहरे के दिन तारा उदय होने के साथ ‘विजय’ नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। भगवान श्रीराम ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त किया था।

दशहरा पर्व की धूम
दशहरा पर्व की धूम नवरात्र के शुरू होने के साथ ही शुरू हो जाती है और इन नौ दिनों में विभिन्न जगहों पर रामलीलाओं का मंचन किया जाता है। दसवें दिन भव्य झांकियों और मेलों के आयोजन के बाद रावण के पुतले का दहन कर बुराई के खात्मे का संदेश दिया जाता है। रावण के पुतले के साथ मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतले का भी दहन किया जाता है। उत्तर भारत में जहां भव्य मेलों के दौरान रावण का पुलना दहन कर हर्षोल्लास मनाया जाता है वहीं दक्षिण भारत में कुछ जगहों पर रावण की पूजा भी की जाती है।

दशहरे का धार्मिक महत्व
दशहरा को विजयादशमी भी कहा जाता है। यह वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है। अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं और शस्त्र-पूजा की जाती है। इस पर्व का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग की सीमा नहीं रहती और इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और विधि विधान से भगवान का पूजन करता है। दशहरे के बारे में पुराणों में कहा गया है कि यह पर्व दस प्रकार के पापों− काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।

दशहरा पर्व से जुड़ी कथा

1. एक बार माता पार्वतीजी ने भगवान शिवजी से दशहरे के त्योहार के फल के बारे में पूछा। शिवजी ने उत्तर दिया कि आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है। जो सब इच्छाओं को पूर्ण करने वाला होता है। इस दिन यदि श्रवण नक्षत्र का योग हो तो और भी शुभ है। भगवान श्रीराम ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त किया था। इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन का गांडीव नामक धनुष धारण किया था।

2. एक बार युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्णजी ने उन्हें बताया कि विजयादशमी के दिन राजा को स्वयं अलंकृत होकर अपने दासों और हाथी−घोड़ों को सजाना चाहिए। उस दिन अपने पुरोहित को साथ लेकर पूर्व दिशा में प्रस्थान करके दूसरे राजा की सीमा में प्रवेश करना चाहिए तथा वहां वास्तु पूजा करके अष्ट दिग्पालों तथा पार्थ देवता की वैदिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए। शत्रु की मूर्ति अथवा पुतला बनाकर उसकी छाती में बाण मारना चाहिए तथा पुरोहित वेद मंत्रों का उच्चारण करें। ब्राह्मणों की पूजा करके हाथी, घोड़ा, अस्त्र, शस्त्र का निरीक्षण करना चाहिए। जो राजा इस विधि से विजय प्राप्त करता है। वह सदा अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करता है।

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