राष्ट्रीय

भारतीय बैडमिंटन का जगमगाता सितारा हैं पीवी सिंधु

भारतीय बैडमिंटन की प्रिंसेस मानी जाने वाली पीवी सिंधु (पुसरला वेंकट सिंधु) ने टोक्यो ओलम्पिक में लगातार दूसरी बार पदक जीतकर इतिहास रच दिया। हालांकि 26 वर्षीया सिंधु को इस बार कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा जबकि 2016 के रियो ओलम्पिक में उन्होंने रजत पदक जीता था। ओलम्पिक में उनकी यह जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि बैडमिंटन में भारत को ओलम्पिक में अब तक केवल तीन पदक मिले है। जिनमें पहला कांस्य पदक 2012 के लंदन ओलम्पिक में साइना नेहवाल ने जीता था।

उसके बाद दोनों पदक 2016 और 2020 के ओलम्पिक में सिंधु ने ही जीते हैं। 1 अगस्त को कांस्य पदक जीतकर सिंधु ने पहलवान सुशील कुमार के ओलम्पिक खेलों में व्यक्तिगत स्पर्धा में लगातार दो ओलम्पिक में पदक जीतने के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है। सुशील के बाद सिंधु ही अब भारत की ऐसी खिलाड़ी है। जिन्होंने ओलम्पिक में अब तक लगातार दो पदक जीते हैं। सुशील ने 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में कांस्य और 2012 के लंदन ओलम्पिक में रजत पदक जीता था। बहरहाल, टोक्यो ओलम्पिक में भारत का यह दूसरा पदक था। हालांकि उसके बाद कुछ और पदक भारत की झोली में आ चुके हैं।

2019 की विश्व चैम्पियन भारत की स्टार शटलर पीवी सिंधु ने ग्रुप-जे में शीर्ष पर रहकर नॉकआउट के लिए क्वालीफाई किया था। और विभिन्न मुकाबलों में प्रतिद्वंद्वी खिलाडि़यों को पराजित कर सेमीफाइनल तक पहुंची थी। लेकिन उस मुकाबले में विश्व की नंबर एक वरीयता वाली चीनी ताइपे की ताइ-जू-यिंग के हाथों मिली हार के बाद उनका स्वर्ण या रजत पदक जीतने का सपना टूट गया था। लेकिन सिंधु ने उस हार से निराश न होकर कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में शानदार प्रदर्शन करते हुए विश्व की नवीं वरीयता वाली चीन की खब्बू खिलाड़ी बिंग जियाओ को बड़ी आसानी से 21-13, 21-15 से केवल 52 मिनट के मुकाबले में पदक अपने नाम कर लगातार दूसरी बार पदक जीतकर इतिहास रच दिया। मुकाबले में सिंधु ने चीन की जिस खिलाड़ी बिंग जियाओ को हराया, उसके खिलाफ सिंधु की यह सातवीं जीत थी। बिंग जियाओ के साथ सिंधु के इससे पहले कुल 15 मैच हुए है। जिनमें से 9 में बिंग और 6 में सिंधु को जीत मिली थी।

बैडमिंटन में सिंधु के अब तक के प्रदर्शन पर नजर डालें तो 2013 में पहली बार विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप में कदम रखने वाली इस खिलाड़ी ने 25 अगस्त 2019 को स्विट्जरलैंड में बीडब्ल्यूएफ विश्व चैम्पियनशिप के फाइनल मे जापान की नोजुमी ओकुहारा को 21-7, 21-7 से मात देकर विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप का एकल खिताब अपने नाम कर भारतीय बैडमिंटन के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया था और यह विश्व चैम्पियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय शटलर बनी थी। उनसे पहले कोई भी भारतीय पुरूष या महिला बैडमिंटन खिलाड़ी यह कारनामा नहीं कर सका था। इस विश्व चैम्पियनशिप में उससे पहले उन्हें वर्ष 2013 और 2014 में कांस्य पदक तथा 2017 और 2018 में रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा था। 2016 के रियो ओलम्पिक में रजत पदक विजेता, 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई खेलों तथा विश्व चैंम्पियनशिप में रजत पदक जीतने के बाद 2019 में विश्व चैम्पियन बनकर पी वी सिंधु ने हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा दिया था और अब ओलम्पिक में पदक जीतकर उन्होंने साबित कर दिया है कि उनके खेल में कितना दम है।

सिंधु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार तब सुर्खियों में आई थी, जब 2013 में चीन के ग्वांगझू में आयोजित विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतकर वह यह सफलता हासिल करने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनी थी। और उसके अगले ही वर्ष कोपेनहेगन में फिर से इसी सफलता को दोहराकर उन्होंने हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था। 2016 के रियो ओलम्पिक, 2019 की विश्व चैम्पियनशिप और अब 2020 के टोक्यो ओलम्पिक में पदक जीतकर सिंधु ने साबित कर दिया है। कि मौजूदा समय में भारतीय बैडमिंटन की प्रिंसेस वही हैं। 2016 के रियो ओलपिक में सिंधु के कोच रहे विख्यात खिलाड़ी गोपीचंद फुलेला उनके बारे में कह चुके है। कि वह छुपी रूस्तम साबित होती है। दरअसल सिंधु अक्सर विश्व वरीयता प्राप्त खिलाडि़यों को मुकाबले में परास्त कर चौंकाती रही हैं। रियो ओलम्पिक में भी वह उच्च रैंकिंग वाली खिलाडि़यों को हराकर फाइनल तक पहुंची थी।

वह 2009 में कोलंबो में आयोजित उप-जूनियर एशियाई बैडमिंटन चैंम्पियनशिप में कांस्य पदक, 2010 में ईरान फज्र अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन मुकाबले में महिला एकल में रजत पदक, 2011 में डगलस कॉमनवेल्थ यूथ गेम्स में स्वर्ण पदक, जुलाई 2012 में एशिया युवा अंडर-19 चैम्पियनशिप, दिसम्बर 2013 में मलेशियाई ओपन के दौरान महिला सिंगल्स का ‘मकाऊ ओपन ग्रैंड प्रिक्स गोल्ड’ खिताब, 2013 तथा 2014 में विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक, 2016 में गुवाहाटी दक्षिण एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। नवम्बर 2016 में उन्होंने चीन ओपन खिताब भी अपने नाम किया था। वर्ष 2014 में उन्हें द्वारा ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ घोषित किया गया था। 2013 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ तथा 2015 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया जा चुका है। वह भारत के आर्थिक रूप से सम्पन्न खिलाडि़यों में से एक हैं।

जिस उम्र में बच्चे पड़ोस में अकेले जाने से भी डरते है। 8-9 साल की उस छोटी सी उम्र में सिंधु प्रतिदिन 56 किलोमीटर की दूरी तय कर बैडमिंटन कैंप में ट्रेनिंग लेने जाया करती थी। आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में 5 जुलाई 1995 को पेशेवर वालीबॉल खिलाडि़यों पी.वी. रमण और पी. विजया के घर जन्मी पीवी सिंधु को खेलों के प्रति जुनून अपने माता-पिता से ही विरासत में मिला था। पीवी रमण को तो राष्ट्रीय वालीबॉल में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 2000 में भारत सरकार का प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है। सिंधु ने 6 साल की उम्र में ही 2001 के ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैम्पियन बने पुलेला गोपीचंद से प्रभावित होकर बैडमिंटन को अपना कैरियर चुना था। और 8 साल की उम्र से ही सक्रिय रूप से बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था। शुरूआत में उन्होंने सिकंदराबाद में इंडियन रेलवे सिग्नल इंजीनियरिंग और दूरसंचार के बैडमिंटन कोर्ट में महबूब अली के मार्गदर्शन में बैडमिंटन की बारीकियां सीखी और कुछ ही समय बाद पुलेला गोपीचंद की बैडमिंटन अकादमी में शामिल होकर गोपीचंद के मार्गदर्शन में अपने खेल को निखारती चली गई। उसी का नतीजा है कि आज वह भारतीय बैडमिंटन का जगमगाता सितारा हैं।

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