ऐसे बच्चे जो बोल नहीं सकते है, सुन नहीं सकते हैं या वो बच्चे जो सामान्य बच्चों की तरह पढ़ने में कठिनाई महसूस करते हैं, उन विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सामान्य बच्चों की तरह सम्मान व दक्ष बनाने के लिए राज्य सरकार ने जन-जागरूकता अभियान शुरू किया है। यह अभियान सिर्फ नीति की बात नहीं करता, बल्कि बेसिक शिक्षा विभाग की देखरेख में तैयार किए गए पोस्टर के माध्यम से दिलों को छूने का प्रयास करता है।
अभियान की शुरुआत से अब तक 75 जिलों के सभी प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों, पंचायत भवनों, सीएचसी-पीएचसी, बाल विकास केंद्रों और आशा केंद्रों पर पोस्टर लगाए जा रहे हैं। प्रदेश में 15,92,592 पोस्टरों के माध्यम से अभियान चलाया जा रहा है। पोस्टरों में इन बच्चों के अधिकारों, आवश्यकताओं और समाज की भूमिका को केंद्र में रखा गया है। पोस्टर वितरण के साथ-साथ स्कूल शिक्षकों को प्रशिक्षण, अभिभावकों से संवाद और समुदाय स्तर पर जागरूकता गतिविधियों को भी प्राथमिकता दी गई है।
सरकारी व सहायता प्राप्त विद्यालयों में पोस्टर वितरण
राज्य के एक लाख 32 हजार 716 सरकारी और सहायता प्राप्त विद्यालयों में ये पोस्टर वितरित किए जा रहे हैं। प्रत्येक विद्यालय को एक सेट (छह पोस्टर) उपलब्ध कराया गया है, जिनमें समावेशी शिक्षा और दिव्यांगता के प्रति सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने वाले संदेश शामिल हैं।
पोस्टर से समझा रहे ”सुरक्षित और असुरक्षित स्पर्श”
इन पोस्टरों की सबसे खास बात है इनका भावनात्मक, सरल और व्यावहारिक होना। ये न केवल जानकारी देते हैं, बल्कि आत्ममंथन को प्रेरित करते हैं। इन पोस्टरों से प्रेरणा मिलती है कि समावेशी शिक्षा केवल बच्चों के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के भविष्य के लिए आवश्यक है। यह भी समझ में आता है कि हर बच्चा खास है, लेकिन कुछ बच्चों को थोड़ा और खास समझे जाने की जरूरत है। इस अभियान में ”सुरक्षित और असुरक्षित स्पर्श” जैसे अति आवश्यक विषय पर भी विशेष ध्यान दिया गया है।
“हम केवल स्कूलों में बेंच बढ़ाने की बात नहीं कर रहे, हम दायरे बढ़ाने की बात कर रहे हैं। समावेशी शिक्षा बच्चों के साथ-साथ पूरे समाज को बेहतर बनाती है। राज्य सरकार पोस्टर को केवल सूचना का माध्यम नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और संवाद की चिंगारी मान रही है। यह एक ऐसा प्रयास है जो किसी बजट, टेंडर या स्कीम से आगे जाकर समाज की सोच में बदलाव लाने की क्षमता रखता है; क्योंकि असली समावेश वही है, जो सिर्फ नीति में नहीं, नजरिए में दिखे।”- संदीप सिंह, बेसिक शिक्षा मंत्री उप्र.
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