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Manipur की धार्मिक क्रांति के सूत्रधार GaribNawaj पार्ट-3

पिछले अंक के पार्ट-2 में आपने पढ़ा……..

वैष्णव धार्मिक ग्रंथों एवं गायन-परंपरा का प्रचलन भी इसी समय हुआ और उसे लोकप्रियता प्राप्त हुई। इनके द्वारा निर्मित मंदिर एवं परंपराएं अब भी उनके वैष्णव भक्त होने के प्रमाण के रूप में बच रही हैं, अन्य साक्ष्य कालकवलित हो चुके हैं।

अब इससे आगे पढ़िए...पार्ट-3………….

इनकी मृत्यु के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। ऊपर कहा जा चुका है कि इनके धार्मिक विचारों का विरोध जनता तथा सामंतों द्वारा किया गया था। अजितशाह नामक उनका पुत्र विद्रोही बन गया था। जब गरीबनवाज (GaribNawaj) म्यांमार से लौट रहे थे तो अजितशाह के आदमियों ने माडलूं नदी के किनारे ज्येष्ठ पुत्र शामशाह, कुछ दरबारियों और शान्तिदास व उनके १७ शिष्यों की हत्या कर दी।

अजितशाह, ने ये हत्याएं इसलिए करवाई थीं कि वह गरीबनवाज (GaribNawaj) के धार्मिक कार्यों से घोर असंतुष्ट था। किंतु कुछ इतिहासकारों का मत है कि अजितशाह को इन्होंने राज्य-सिंहासन सौंप दिया था और शामशाह, जो वास्तविक उत्तराधिकारी थे, को उसकी इच्छा से राजसिंहासन के अधिकार से वंचित कर दिया था।

यद्यपि शामशाह ने स्वेच्छा से अपने अधिकार का त्याग किया था, किंतु अजितशाह को यह संदेह हो गया था कि गरीबनवाज (GaribNawaj) उन्हें राजसिंहासन पर आसीन करना चाहते हैं। इसलिए उसने इन सभी कि हत्या करवा दी। इन नृशंस हत्याओं की खबर जब मणिपुर की जनता को मिली तो उसने अजितशाह को अपदस्थ करके उनके स्थान पर अनन्तशाह को राज्य सिंहासन पर बैठाया।

अजितशाह उपनाम चितशाह को निर्वासित कर दिया गया। इस घटना से मणिपुर जनता में गरीबनवाज (GaribNawaj) की लोकप्रियता का पता चलता है। अनन्तशाह ने अपने पिता गरीबनवाज (GaribNawaj) का श्राद्घ विधिविधान के साथ किया। मणिपुर में गौड़ीय वैष्णव-धर्म के संस्थापक एवं परमभक्त के रूप में महाराज गरीबनवाज (GaribNawaj) अनंतकाल तक स्मरण किए जाएंगे।……….समाप्त!

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