
साइबर संवाद
पैथी कोई हो नर्श की सेवा सब जगह सराहनीय
जब मैं पहली बार वैक्सीनेशन के लिए सरकारी अस्पताल गई थी, तो देख कर चकित थी कि सारी नर्से और डाक्टर बेहद युवा थे, उस वक्त दूसरी वेव नहीं आई थीं, लेकिन एक खूबसूरत आँखों वाली नर्स दो मास्क लगाये हुए थी, मैंने उससे पूछा तो कहने लगी कि एक साल का बच्चा है, घर में जाकर दूध पिलाना होता है।
मुझे अच्छा नहीं लगा, लेकिन तब तक कोरोना युवाओ में नहीं फैला था। लेकिन स्वास्थ्य कर्मचारी किस दवाब पर से गुजर रहे हैं, हम समझ ही नहीं पा रहे हैं।
अब कल की खतरनाक खबर, —
पहली यह कि सिनी नाम की एक 31 वर्ष की नर्स की अप्रेल में ही नौकरी लगी, निसन्देह इस मध्यम वर्गीय घर में हंसी खुशी फैल गई। उसका अपायमेन्ट पांच अप्रेल को पेराम्बवूर के अस्पताल में हुआ, जहां उसकीतुरन्त ड्यूटि कोविद वार्ड में कर दी गई, उसके वैक्सीनेशन नहीं हुआ था, तुरन्त उसे कोविद के लक्षण दिखे,तो अस्पताल में भर्ती किया गया।
जहां वह 5 मई तक नेगेटिव भी हो गई। लेकिन सम्भवतया उसके दूध पीते बच्चे, जिसे सास- ससुर खिलाते पिलाते थे, वायरस ट्रांसफर का कारण बन गये थे, जिससे उसके सास -ससुर और पति को करोना हो गया, तीनो अलग अलग अस्पताल में भरती हुए, सास 63 कि थी, सासुर 73 के,दोनो की मृत्यु करमशः 12 और 18 मई को हो गई,लेकिन दुख तो अभी आना था, 36वर्षीय पति की 20 मई को मृत्यु हो गई।
किसे दोष दें, ? उन्हें, जिन्होने दूध पिलाती मां को वैक्सीनेशन के बिना ही कोविद वार्ड में झौंक दिया? या फिर उस बच्ची को , जो अपने घर में खुशियां लाने के लिए इस अवस्था में भी नौकरी के लिए चली गई?
यां बच्चियों के भाग्य को, जिन्होंने एक सप्ताह में ही अपने तीनों अपनों को खो दिया?
क्या हां अब भी अपमान करेंगे , इन कर्मियों का?
दूसरी खबर बासी है, लेकिन केरल से हजारों लड़कियां लाखों रुपये लेकर नौकरी के लालच में गल्फ भेजा गया, जहां जाकर उन्हें कोराइन्टिन में रख दिया गया, लेकिन उसके बाद उन्हें पता चला कि वे ट्रेप में फंस गई हैं, लेकिन वहां रहने वाले नर्सिंग समाज की मदद से खबर केरल भेजी गई, जो उन्हें इस ट्रामा से निकलने में मदद कर रहा है, कुछ को तो गल्फ में नौकरी मिल भी गई, लेकिन सभी भाग्यशाली नहीं रहीं। हम उन्हें धोखा देते हैं, दूसरे देश लाभ उठा तुरंत अस्पताल में भेज दिया।
हम इन कर्मठों का सम्मान करें, इनके दर्द को भी समझें, क्या बेकार की गफलत में फंस गये हैं।