एनालिसिस

भारत को आवश्यकता है एक अदद Chanakya की

Chanakya (चाणक्य) का नाम सभी ने सुना होगा। Chanakya (चाणक्य)  का नाम उसकी नीति के साथ चलता है और उनकी नीति केे कारण ही वो अजर-अमर हैं। Chanakya (चाणक्य) को क्यों याद किया जाता है।

संभवतः इसलिए कि घनानन्द नाम का एक राजा मगध राज्य में राज करता था। उसका काम था, केवलमात्र मगध राज्य को लूटना। उसका राष्ट्र इतना बड़ा नहीं था जितना भारत है। इसलिए वह अकेला लुटेरा ही राज्य के लिये पर्याप्त था।

हमारा भारत देश इतना बड़ा है कि अकेला ही विश्व के बराबर है। हिन्दुस्तान सोने की चिड़िया था, ————-है, और——— रहेगा। इसे मोहम्मद गजनवी जैसे लुटेरों ने लूटा। इसके बाद ईस्ट इण्डिया कंपनी ने लूटा। देश के स्वतंत्र होने के बाद इसे अपने देश के काले लुटेरे साफा बांधकर लूटते रहे।

दूसरे देश के लुटेरों को यहां आकर इसे लूटने के लिए आडम्बर करना पड़ता था। जैसे अंग्रेज ने ईस्ट इंडिया कंपनी का सहारा लिया।

अब क्योंकि अपने ही देश के काले लुटेरे इसे लूट रहे हैं इसलिए इन्हें किसी आडम्बर की जरूरत नहीं है।

ये तो स्वयं ही इतने काले हैं कि वे समझते हैं कि इन्हें कौन देख पायेगा। देश के ऐसे लुटेरों से निजात दिलाने अपना घर-द्वार छोड़कर एक सन्यासी आया तो है उसे इन कष्टों से निजात दिलाने’ लेकिन जनता उसे ही गाली दिये जा रही है।

उसने नोटबन्दी करा दी मानो बहुत बड़ा पाप कर दिया। उसने जीएसटी लागू करा दिया मानो महापाप कर दिया। इस देश में इतने तरह के टैक्स थे कि कोई गिना नहीं सकता।

उस सब को खत्म करके वन नेशन-वन टैक्स लागू किया तो जैसे आफत ही आ गई। लेकिन लगता नहीं कि देशवासियों को ईमानदारी पसन्द है। जबकि मेरे हिसाब से तो जीएसटी, भारत के स्वतन्त्र होते ही लग जानी चाहिए थी।

पिछले सत्तर साल की सरकारों ने देश के लोगों को इतना भ्रष्ट और चोर बना दिया कि वह बगैर बेईमानी के रह ही नहीं सकता। टाईफाइड में भी वह चीनी का घोल पीने के लिए ही उतावला है। उसको कुनैन नहीं चाहिए।

जो उसे कुनैन पिलायेगा,उसे वह सत्ता से उखाड़ फैंकने के लिए सारे कर्म करने को तैयार है। एo राजा, मधु कोड़ा, कलमाड़ी, कनिमोझी को गिन सकते हैं। ऐसे लोगों से निजात कोई Chanakya (चाणक्य) ही दिला सकता है!

देश के इन एo राजा, मधु कोड़ा, कलमाड़ी, कनिमोझी जैसे काले लुटेरों ने इस देश का धन लूटकर विदेशी खजाने में जमा किया। इसे ही कालाधन कहा जाता है, क्योंकि इस पर भारत में आयकर अदा नहीं किया गया।

आयकर इसलिए जमा नहीं किया क्योंकि अवैध रूप से कमाये गये इस धन का श्रोत कहॉं से बताते। भारत में कालेधन के खिलाफ चहुं ओर से आवाज उठीl बाबा रामदेव के कालेधन के खिलाफ किये गये राष्ट्रव्यापी आंदोलन एवं उच्चतम न्यायालय में दाखिल पीआईएल पर कोई फैसला आये इससे पूर्व ही डाo मनमोहन सिंह की सरकार ने बड़ी होशियारी से केन्द्रीय राजस्व सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन कियाl

और उसमें सीबीआई एवं प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक, राजस्व खुफिया के महानिदेशक, नारकोटिक्स के महानिदेशक एवं सीबीडीटी के अध्यक्ष सहित कुछ अन्य को सदस्य बनाकर यह दिखाने की कोशिश की कि,

वे इस समस्या से आहत हैं तथा ईमानदारी से इसकी तह तक जाकर विदेश में जमा काले धन को भारत में लाना चाहते हैं। ध्यान रहे ये सारे अधिकारी और विभाग वैसे भी डाo मनमोहन सिंह के अधीन ही थे। फिर क्यों जांच समिति बनाने की जरूरत पड़ी?

दरअसल ये सब सरकार की नौटंकी थी। क्योंकि कालेधन को भारत में लाने की मांग करने वाले बाबा रामदेव के साथ कैसा क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया किसी से छिपा नहीं है। यही कृत्य दर्शाता है कि सरकार ने ठीक वैसा ही कार्य कियाl

जैसे कि कोई दरोगा रात में सिविल ड्रेस में डकैती डाले और दिन में वर्दी पहनकर स्वयं उस डकैती की जांच पर निकल पड़े। चिदम्बरम, कपिल सिब्बल और डाo मनमोहन सिंह ने ठीक वैसा ही किया। दिन के उजाले में कालेधन को बाहर भेजने में मदद की तथा उसकी जांच की मांग करने वाले बाबा को रात के अंधेरे में आतंकित किया।

कालेधन से देश को हो रहे नुकसान से यदि कोई सबसे ज्यादा चिंचित था तो बाबा रामदेव, उच्चतम न्यायालय और इस देश की 125 करोड़ निरीह जनता। जिसके पास पांच साल तक इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प शेष नहीं था।

इसी के साथ सत्ता में रहने वाली अथवा विपक्ष की भूमिका निभा रहीं सारी पार्टियों का चरित्र एक सा दिखाई दिया। केन्द्र में विपक्ष की भूमिका निभा रही भारतीय जनता पार्टी का चरित्र भी कमोबेश सत्तापक्ष वाला ही है। जिधर निगाह डालिए सभी राजनीतिक दल कम्बल ओढ़कर मलाई चट करने में लगे हैं।

भगवान ही मालिक है इस देश का कि पूरी सरकार ही चोरों की जमात या कहिए अलीबाबा और 40 चोर वाली हो गयी है।

जिसके कारनामों को उसकी पार्टी का अध्यक्ष अनैतिक तो कहता है, लेकिन असंवैधानिक नहीं। क्या खूब तोड़ निकाला है चोरों को चोर रास्ते से बाहर सुरक्षित निकालने का। धिक्कार है ऐसी पार्टी और नेताओं पर जो सब कुछ अनैतिक मानते हुए भी कहते हैं कि हम कानून के अनुसार काम करेंगे।

ऐसी ही विषम परिस्थितियों में उच्चतम न्यायालय ने विदेशी बैंकों में जमा काले धन पर अभूतपूर्व एवं बहुत ही तर्कसंगत और राष्ट्रहित में बुद्धिमता पूर्ण फैसला दिया। उच्चतम न्यायालय ने धू्रतापूर्वक बनाई गई उच्च स्तरीय जांच समिति को ही एस.आई.टी. में तब्दील कर दिया।

उसके अध्यक्ष पद पर पूर्व न्यायाधीश श्री बीपी जीवन रेड्डी तथा उपाध्यक्ष पद पर पूर्व न्यायाधीश को सम्मलित करते हुए इसमें रॉ के पूर्व निदेशक को भी बतौर सदस्य सम्मिलित कर अपने अधीन कर लिया। देश हित में इससे अच्छा फैसला कोई दूसरा हो ही नहीं सकता था।

अब एस.आई.टी को विदेशी बैंकों में जमा भारत के कालेधन के बारे में जांच करने के साथ-साथ आपराधिक कार्रवाई एवं अभियोजन का भी अधिकार मिल गया। ऐसा पहलीबार हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ने सीधे-सीधे जांच का काम अपने हाथ में ले लिया हो।

ऐसा उसने क्यों किया इसके भी पर्याप्त कारण हैं। अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि इतने बड़े पैमाने पर कालेधन का विदेशों में जाना बताता है कि संविधान के परिप्रेक्ष्य में शासन को दुरुस्त तरीके से चलाने की केन्द्र सरकार की क्षमता क्षीण हो गई है।

यह नोबेल पुरस्कार विजेता गुजर मिरइल के ‘नरम राष्ट्र’ की अवधारणा की याद दिलाता है। राज्य जितना ही नरम होगा कानून बनाने वालों, कानून की रखवाली करने वालों तथा कानून तोड़ने वालों में अपवित्र गठजोड़ की संभावना उतनी ही प्रबल होगी।

साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि हसन अली एवं काशीनाथ तापुरिया तक से पूछताछ लम्बे समय तक नहीं हुई है। और जब अदालत के निर्देश पर ऐसा किया गया तो कई कार्पोरेट घरानों के दिग्गजों, राजनीतिक रूप से शक्तिशाली लोगों तथा अंतर्राष्ट्रीय हथियार विक्रेताओं के नाम सामने आने लगे।

इसी के साथ केन्द्र सरकार मन्थर गति से चल रहे अन्वेषण का भी कोई संतोषजनक कारण नहीं बता पाई। निर्णय में यह भी कहा गया कि स्विट्जरलैण्ड के यूबीएस बैंक को रिटेल बैंकिंग के लिए लाइसेंस देने से भारतीय रिजर्व बैंक ने 2003 में इस आधार पर मना कर दिया थाl

कि हसन अली मामले में प्रर्वतन निदेशालय उसकी जांच कर रहा है। 2009 में यूबीएस बैंक को लाइसेंस जारी कर दिया गया तथा अपने निर्णय को बदलने का आर.बी.आई. द्वारा कोई कारण नहीं बताया गया। यह संस्थान भी खूब गोरखधंधा करता है तथा भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कालाधान एक अत्यंत ही गंभीर समस्या है।

जिसका नकारात्मक प्रभाव केवल अर्थव्यवस्था पर ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी पड़ता है। क्योंकि आतंकवादी गतिविधियों में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है। अब सवाल यह भी उठता है कि क्या विशेष जांचदल (एसआईटी) के गठन से कालाधान वापस लाने की प्रक्रिया तेज हो पाई?

हवाला मामले में उच्चतम न्यायालय की निगरानी में की गई जांच के बावजूद एक भी आरोप पत्र ट्रायल कोर्ट में खरा नहीं उतरा और सभी अभियुक्त दोषमुक्त हो गये। अभी 42 देशों के बैंकों में भारत का कालाधन है।

इनमें 26 देशों से भारत सरकार की सहमति होनी है। दरअसल 2008 में पूरे विश्व में आये क्रेडिट क्रन्च के बाद सभी देशों का ध्यान इस समस्या पर गया तो संयुक्त राष्ट्र ने इस बारे में प्रस्ताव पारित किया। जिससे इन देशों के ऊपर दबाव बढ़ा, किन्तु अभी भी कई देश अपने गोपनीय कानून को बदलने को तैयार नहीं हैं।

अमेरिका में फ्लोरिडा की अदालत में यूबीएस बैंक के विरुद्ध एक मुकदमा दायर हुआ तो बैंक उन चार हजार अमेरिकियों के नाम देने पर सहमत हो गया जिनके खाते उस बैंक में थे। किन्तु स्विट्जरलैण्ड की संसद ने उस करार को रद्द करते हुए कहा कि वह जुर्माना भरना पसंद करेगा l

किन्तु गोपनीयता कानून के साथ समझौता नहीं करेगा। इसका सीधा सा मतलब है कि उस देश की पूरी अर्थव्यवस्था ही गोपनीय खातों में जमा धन से चल रही है, जिसे वह खोना नहीं चाहता था। एसआईटी के गठन से देश को लाभ होगा और वह सरकार को आवश्यक कार्रवाई के लिए आवश्यक निर्देश दे पायेगा।

उच्चतम न्यायालय ने तो सपाट शब्दों में कहा था कि असफलता संवैधानिक मर्यादाओं या राज्य को प्राप्त शक्तियों की नहीं है। बल्कि उन व्यक्तियों की है जो विभिन्न एजेन्सियों को चला रहे हैं और उसके कर्ता-धर्ता हैं। ऐसा कृत्य नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन है।

संविधान के अनुच्छेद-14 के अन्तर्गत कानून की नजर में सभी समान हैं। अदालत ने माना कि यहां कानून तोड़ने वालों को राज्य का संरक्षण मिल जाता है। सेन्ट्रल हाल में बात के बतंगड़ कार्यक्रम में ऐसे फैसलो पर ईटीवी के हरिशंकर व्यास और मि. शर्मा जो हिन्दुस्तान टाइम्स में थे ने टी.वी. चैनल पर समीक्षा करते हुए कहा था।

कि यह तो सरकार के कार्यक्षेत्र में बेजा दखल है। उन्हें सरकार द्वारा की जा रही भ्रष्ट कारगुजारियां इसलिए नहीं दिखाई दे रहीं थीं, क्योंकि वे भी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। ये सब या इनके चैनल, सरकार के रहमोकरम पर जीते हैं।

वही हरिशंकर व्यास अब वर्तमान में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को पानी का घूंट पी-पीकर गाली दे रहे हैं। ये ऐसे पत्रकारों का गैंग हैं जो सत्ता के गलियारे में सरकार के खिलाफ चिल्लाता है, लेकिन सरकार के रूम में पहुंचते ही बिस्तर पर लेट जाता है।

दरअसल मीडिया के ज्यादातर लोगों की कलम और समीक्षा करने की शक्ति अपने व्यक्तिगत लालच के चक्कर में सरकार के पास बंधक पड़ी रहती है। आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि पत्रकारों के पास भी करोड़ों की कीमत के बंगले हैं।

वे भी ऑडी और मर्सेडीज में घूमते हैं। साथ ही मौज-मस्ती के लिए बहुत सी नीरा राडिया भी उनके पास हैं। विदेश में जमा कालाधन वापस भारत में लाने के साथ-साथ इसी भारतवर्ष में जमा पड़े काले धन को भी खोजना चाहिए।

जिसने भी काला धन विदेश में जमा किया है निश्चित रूप से समझ लीजिये कि जितना उसने विदेशी बैंकों में डाला है उससे कई गुना अधिक इसी देश में रखा है। इस देश में खजाना ही खजाना है। अंग्रेज बेवकूफ नहीं था कि भारत को सोने की चिड़िया कहता था। यहां तो इतना खजाना है कि कुबेर का खजाना भी कम पड़ जाये। हमारी मनोधारणा ऐसी है कि आज भी हम यह सोच बैठे हैं कि खजाना तो राजा-महाराजाओं के पास ही होता था।

लेकिन हमको पता नहीं कि हिन्दुस्तान में राजाओं को भिखारी बना देने के बाद प्रीवीपर्स छीनने के बाद खजाना कहीं गुल थोड़े ही हो गया। जिस तरीके से राजाओं के पास खजाना एकत्र होता था ठीक उसी तरह से अब आज की सत्ता के पास खजाना एकत्र होता है।

पहले इस देश में 543 राजा थे अब 543 की जगह, केन्द्र में पूरा मंत्रिमण्डल है, राज्यों में पूरा मंत्रिमण्डल है तथा केन्द्र शासित प्रदेशों का पूरा मंत्रिमण्डल है, अलग से।

खजाने की जानकारी मिलना शुरू हुई हर्षद मेहता के हजारों हजार करोड़ के शेयर घोटाले से। इससे देश की जनता को पहली बार पता लगा कि असली खजाना तो शेयर दलालों के पास है। इसके बाद एक राजनेता के यहां रजाई-तकियों में और यहां तक की बड़ी-बड़ी पन्नियों में नोट मिले तो लगा, अरे खजाना तो शेयर दलाल के यहां नहीं नेताओं के पास है।

लेकिन उदारीकरण के दौर में जब हमारे यहां के करोड़पतियों की संख्या बढ़ने लगी और वे फोर्ब्स पत्रिका की सूची में जगह पाने लगे। कोई दुनिया के अमीरों में सर्वोच्च स्थान पाने लगा और कोई पहले दस में आने लगा, तो लगा पिछला आंकड़ा सब बकवास है।

खजाना, तो वास्तव में इन धन्ना सेठों और उद्योगपतियों के पास है। इसके बाद जब नेताओं की ही तरह आईएएस अफसरों के यहा भी रजाइयों के अलावा नोट गिनने की मशीन पकड़ी गई।

तो लगा, अरे ये शेयर दलाल, धन्ना सेठ, उद्योगपति और व्यापारी तो इन सबके सामने बौने हैं। असली खजाना तो इन अधिकारियों के पास है। इसके अलावा भी इनके पास से बैंक लॉकर में करोड़ों रुपया, फार्म हाउस और रीयल इस्टेट में उनके निवेश का पता लगा तो पक्का हुआ कि असली खजाना इन्हीं के पास है।

आगे जानकारी मिली कि घोड़ों के व्यापारी हसन अली के पास भी साठ-सत्तर हजार करोड़ का खजाना है तो लगा कि भाई इस भारत वर्ष में खजाने की कोई कमी नहीं है। सज्जन व्यक्ति को छोड़कर खजाना सारे द्बुर्जनों के पास है।

नेता एo राजा के पास एक लाख करोड़ से ऊपर का खजाना निकला। सुरेश कलमाड़ी और कनिमोझी के पास भी खजाने की कमी नहीं पाई गई। खजाना शरद पवार के पास भी बहुत है। मधुकोड़ा के पास है। मुलायम सिंह के पास है।

अखिलेश के पास है। अमर सिंह के पास है। कपिल सिब्बल के पास है। सोनिया गांधी के पास है। मायावती के पास है। जयललिता का शशिकला के पास है। बाबू सिंह कुशवाहा के पास है। नसीमुद्दीन के पास है। रेड्डी के पास है। येदुरप्पा के पास है। लालू के पास है।

छगन भुजवल के पास है। बाबा रामदेव ने ऐसे खजाने के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया कि देश का खजाना कुछ तथाकथित लोगों के विदेशी बैंक खाते में जमा है। जिसे वापस भारत लाया जाये तो पूरी केन्द्र सरकार गुण्डई पर उतर आई।

बाबा रामदेव से नाराज होने पर केन्द्र सरकार ने बाबा के ही खिलाफ जांच बैठा दी। बाबा के ट्रस्ट की जांच की जाये। जिस पर बाबा ने ट्रस्ट की एवं अपनी सम्पत्ति की घोषणा कर दी। जांच बाबा रामदेव के खिलाफ बैठी, लेकिन परेशानी अन्य बाबाओं को होने लगी।

तब पता लगा कि अरे बहुत बड़ा खजाना तो इन बाबाओं के पास भी है। इसी सन्दर्भ में पुट्टापर्थी के सांईबाबा की मृत्यु के बाद तथा केरल के पद्मनाभ स्वामी मंदिर का तहखाना खुला तो पता चला कि खजाना तो वास्तव में भगवान जी के तहखाने में छिपा है।

अभी-अभी खजाना और हथियारों का जखीरे का पता लगा, बाबा राम रहीम के डेरे में है। लेकिन उसका पता नहीं लग पाया क्योंकि उस फ्राडिया बाबा को बचाने में लगी है, वहीं की सरकार।

अब बताइये भारत में खजाने की कमी कहां है। जरूरत तो इसे राष्ट्रहित में जब्त करने और गरीबों के उत्थान में खर्च करने की है। कालेधन की जांच पर विशेष जांच दल (एस.आई.टी) के गठन के फैसले से असहमत हुई सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इसकी समीक्षा करने और इसे वापस लेने की अपील भी की।

सुप्रीम कोर्ट ने 4 जुलाई को एसआईटी के गठन का आदेश दिया था। सरकार का कहना है कि यह आदेश उसका पक्ष पूरी तरह सुने बगैर दिया गया था। एसआईटी के गठन के फैसले पर पुर्नविचार के साथ आदेश को वापस लेने वाली याचिका दायर करने का फैसला लिया गयाl

ताकि उसे अदालत में अपनी बात कहने का मौका मिल सके। दरअसल पुर्नविचार याचिका की समीक्षा बंद कमरे में होती है। और इसमें वकीलों को भी उपस्थित रहने की इजाजत नहीं होती जबकि आदेश वापस लेने की याचिका की सुनवाई खुली अदालत में होती है।

इस याचिका की जरूरत ही क्या थी? सुप्रीम कोर्ट ने जांच के आदेश क्या किसी विदेशी एजेंसी से कराने के दिये थे? यदि केंद्र सरकार ईमानदार थी या है, तो उसे परेशान होने की जरूरत ही नहीं। एसआईटी में उसी के विभाग के अधिकारी हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने किसी अधिकारी का आयात नहीं किया है। फिर क्यों सरकार चिंतित थी? सुप्रीम कोर्ट को अटार्नी जनरल और अन्य ऐसे सरकारी वकीलों को भी आगाह करना चाहिए था कि बेतुके और जनहित एवं देशहित के विपरीत किये गये कार्यपालिका के काम के बचाव में याचिका दाखिल करने की कोशिश ना करें।

सरकार को सही राय दें। कानून मंत्रालय में बैठे न्यायिक सेवा के अधिकारियों को भी सचेत किया जाना चाहिए था कि किसी भी प्रकार की ऐसी सलाह ना दें जो जनहित एवं देशहित के विपरीत हो। मामला अब भी काल के गर्भ में है।

मनमोहन सिंह के बाद अब सत्ता पर नरेन्द्र मोदी बैठे हैं, लेकिन वो भी कुछ क्यों नहीं कर रहे हैं। अथवा वर्ष 2019 के अन्त में कुछ करेंगे, समय के विकराल काल में समाया हुआ है। भ्रष्टाचार की रफ्तार वही है, जो मनमोहन सिंह के कार्यकाल में थी।

कहीं किसी का बेटा गिरफ्त में है तो कहीं किसी नेशनल सीक्योरिटी एडवाइजर का बेटा फायनेन्सियल कम्पनी में कई केन्द्रीय मंत्रियों को बोर्ड आॅफ डायरेक्टर बनाकर खूब देशी और विदेशी धन बटोर रहा है।

शायद सत्ता का चरित्र ही ऐसा है कि सत्ता में आने के बाद नेता को फिर से अगले चुनाव की ही आहट सुनाई देती है।

वह उसी के जुगाड़ में लगकर नैतिक-अनैतिक की परिभाषा से अपने को विरक्त कर लेता है। चुनाव जीतना ही उसका एकम़ात्र लक्ष्य रह जाता है। इसीलिए इस देश को अब घनानन्द की नहीं बल्कि Chanakya (चाणक्य) की जरूरत है।

लेकिन लगता है कि Chanakya (चाणक्य) इस पृृथ्वी पर एक बार ही पैदा हुआ था। अब इस भारत में Chanakya (चाणक्य) ना तो है और ना ही पैदा होगा, इस अवधारणा पर सम्भवत: वर्तमान सरकार ने विराम लगा दिया है।

फूलों की सुगन्ध केवल वायू की दिशा में ही फैलती है, लेकिन एक व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है। यही कारण है कि आचार्य Chanakya (चाणक्य) की खुशबू आजतक फैली हुई है और जन्म-जन्मान्तर तक फैली रहेगी।

Chanakya (चाणक्य) बहुत महान विद्वान थे। उन्होंने अपने जीवन से प्राप्त अनुभवों का उल्लेख Chanakya (चाणक्य) नीति में किया है। उनकी नीतियां जितनी पहले समय में कारगर थीं उतनी आज भी हैं। Chanakya (चाणक्य) नीतियों पर अमल करने से व्यक्ति खुशहाल जीवन यापन करता है। 

Chanakya (चाणक्य) ने अपनी नीतियों में जीवन के कुछ कटु सत्यों का उल्लेख किया है, जो व्यक्ति को सत्यता से अवगत करता है। ये नीतियां व्यक्ति को बर्बादी से भी बचाती हैं।

  • Chanakya (चाणक्य)  के अनुसार व्यक्ति को जरूरत से अधिक ईमानदार नहीं होना चाहिए। जिस प्रकार सबसे पहले सीधे तने वाले पेड़ ही काटे जाते हैं, उसी प्रकार जीवन में ईमानदार लोगों को ही सबसे अधिक कष्ट झेलने पड़ते हैं।

  • लोगों को अपने रहस्य किसी को भी नहीं बताने चाहिए। ये आदत उसकी बर्बादी का कारण बन सकती है। क्योंकि दूसरा व्यक्ति आपके रहस्य जानकर कार्यों में बाधा पैदा कर सकता है

  • ऐसा धन जो बहुत कष्ट झेलने के बाद, अपना धर्म-ईमान छोड़ने, दूसरों की चापलूसी करने और उनकी सत्ता स्वीकारने के बाद मिले उसे स्वीकारना नहीं चाहिए।

  • Chanakya (चाणक्य) के अनुसार हर मित्रता के पीछे कोई न कोई स्वार्थ छिपा होता है। अधिकतर लोग अपने स्वार्थ के लिए ही दूसरों से मित्रता करते हैं। यह कटु सत्य है लेकिन यही सत्य है।

  • व्यक्ति को अपने बच्चों को 5 साल तक अच्छे से प्यार-दुलार से रखना चाहिए। उसके अगले 5 सालों तक अपनी निगरानी में रखना चाहिए। जब बच्चा 16 साल का हो जाए तो उसके साथ मित्रता कर लेनी चाहिए।

  • लालची आदमी को उपहार भेंट कर, कठोर व्यक्ति को हाथ जोड़कर, मूर्ख को सम्मान देकर और  विद्वानों को सच बोलकर ही संतुष्ट किया जा सकता है।

 

सतीश प्रधान
वरिष्ठ पत्रकार

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