सन्यासी की परंपरागत छवि बदलते योगी
देश ने वो मंजर भी देखा जब लॉक डाउन के कारण कोटा में फंसे यूपी के दस हज़ार छात्रों की आवाज को सुनने वाले वो देश के पहले मुख्यमंत्री बने। देश साक्षी हुआ उन हज़ारो माता पिता और बच्चों की कृतज्ञ चेहरों का जिन्हें योगी आदित्यनाथ को धन्यवाद देने के लिए शब्द नहीं मिल रहे लेकिन आंखों के आँसू उनके जज्बात भली भांति बयाँ कर रहे थे। कोरोना काल से पहले भी जब दिल्ली समेत देश भर में सी ए ए के विरोध प्रदर्शन ने दंगों का रूप लिया और अराजकता फैलाने की कोशिशें हुईं तो योगी सरकार ही देश के इतिहास की वो पहली सरकार बनी जिसने दंगों के दौरान हुए नुकसान की भरपाई दंगाइयों से ही की। इतना ही नहीं योगी सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया कि उत्तरप्रदेश में कोई शाहीन बाग़ ना खड़े हो पाएं।
एक मुख्यमंत्री के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन करने वाले योगी आदित्यनाथ ने संयासी रूप को केवल बाहरी व्यक्तित्व और जीवन ही नहीं अपनी आत्मा में आत्मसात किया है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखा देश ने जब कोरोना काल में उन्हें अपने पिता के निधन की सूचना मिली लेकिन उन्होंने उत्तर प्रदेश की 23 करोड़ जनता के प्रति अपने कर्तव्य को पहले रखा और पत्र लिखकर अपनी माँ से क्षमा याचना की। एक मुख्यमंत्री को अपने पिता के अंतिम संस्कार में जाने से कौन रोक सकता था? लेकिन उन्होंने अपनी माँ को लिखा, ” अंतिम संस्कार के कार्यक्रम में लॉक डाउन की सफलता और महामारी कोरोना को परास्त करने की रणनीति के कारण भाग नहीं ले पा रहा हूँ”। एक सामान्य मानव और एक संन्यासी में यही अंतर होता है। ऐसे कठोर निर्णय लेने वाला ऐसा हृदय जो मानवीय संवेदनाओं से भरा हो एक योगी का ही हो सकता है। और आज वो योगी कर्मयोग से अपने प्रदेश का भविष्य बदलने के लिए चल पड़ा है।