फ्लैश न्यूजसाइबर संवाद

शांतिभूषण द्वारा 11 साल पहले दिया गया लिफाफा सुप्रीम कोर्ट में खुलेगा?

प्रशांत भूषण के अवमानना मामले ने सुप्रीम कोर्ट के सामने एक नयी समस्या पैदा कर दी

● पुराने मामले में प्रशांत भूषण के पिता पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने जो मुहरबंद लिफाफा उच्चतम न्यायालय को सौंपा था, उसे भी अब उच्चतम न्यायालय को खोलना पड़ेगा जो पूर्व चीफ जस्टिसों के लिए अनुकूल नहीं होगा, क्योंकि गढ़े मुर्दे बाहर आयेंगे और सार्वजनिक छीछालेदर होगी।

● यदि नई अवमानना पर सुनवाई की हठ पर माननीय अड़े रहे तो तत्कालीन चीफ जस्टिस जे0एस0 खेहर के कार्यकाल में कलिखोपुल की चिट्ठी में लगाये गये आरोपों का मामला, जस्टिस दीपक मिश्रा के कार्यकाल में मेडिकल प्रवेश घोटाले का मामला, जस्टिस रंजन गोगोई के कार्यकाल में राफेल से लेकर अयोध्या विवाद और यौन शोषण तक का मामला और वर्तमान चीफ जस्टिस एस0ए0 बोबडे के कार्यकाल में न्यायिक निष्क्रियता और संविधान से इतर राष्ट्रवादी मोड़ में लिए जा रहे फैसलों का मामला खुली अदालत में उठेगा, जिसमें पहले से ही लुप्त हुई विश्वसनीयता का संकट और अधिक गहराएगा।

● पुराने जजों के भ्रष्टाचार और उसके बारे में शांति भूषण द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर लम्बे चौड़े हलफनामे और उसके साथ मुहरबंद लिफाफा जिसमें एक-एक जज का नाम लेकर उनके भ्रष्टाचार के दस्तावेजी सबूत पेश किए गए हैं। अब उच्चतम न्यायालय को उन सबूतों की जांच और उन पर खुली चर्चा के लिए तैयार होना पड़ेगा। क्योंकि इस मामले में पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने उच्चतम न्यायालय में स्पष्ट घोषणा की थी कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए माफी मांगने के बजाय वे जेल जाना पसंद करेंगे।

● आपराधिक अवमानना के नये मामले की कार्यवाही भूषण के 27 जून के ट्वीट को लेकर शुरू की गई है। जिसमें कहा गया था कि जब भविष्य में इतिहासकार पिछले 6 वर्षों में वापस मुड़ कर देखेंगे तो पाएंगे कि कैसे औपचारिक आपातकाल के बिना भी भारत में लोकतंत्र नष्ट हो गया। उस समय वे विशेष रूप से इस विनाश में उच्चतम न्यायालय की भूमिका को भी चिह्नित करेंगे और विशेष रूप से अंतिम 4 सीजेआई की भूमिका को भी।

● उच्चतम न्यायालय का कहना है कि उनको एक वकील से शिकायत मिली है, जो भूषण द्वारा 29 जून को किए गए ट्वीट के संबंध में है। इस ट्वीट में भारत के मुख्य न्यायाधीश एस0ए0 बोबडे द्वारा हार्ले डेविडसन मोटर बाइक की सवारी करने पर टिप्पणी की गई थी।

● उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पिछले तीस साल से लड़ रहे हैं। यह कुछ हद तक उनके इस निरंतर संघर्ष का ही परिणाम था कि सितम्बर 2009 में न्यायाधीश अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा देने के लिए तैयार हो गये, लेकिन इसके बाद भी बहुत कुछ किया जाना बाकी रह गया।

एक ऐतिहासिक कदम के तहत संविधान विशेषज्ञ और पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने भी एक हलफनामा दायर किया और मांग की कि इस मामले में उन पर भी मुकदमा चलाया जाये। अपने बेटे की तरह उन्होंने भी कहा कि पिछले 16 चीफ जस्टिसों में से 8 भ्रष्ट रहे हैं। शांति भूषण ने एक मुहरबंद लिफाफा में इन जजों के नाम अदालत को सौंपे। उन्होंने कहा कि मैं इसे महान सम्मान समझूंगा, अगर भारत के लोगों के लिए एक ईमानदार और पारदर्शी न्यायपालिका बनाने की कोशिश में मुझे जेल जाना पड़े।

● शांति भूषण ने अपने हलफनामे में जिन 16 मुख्य न्यायाधीशों का जिक्र किया है, उनमें जस्टिस रंगनाथ मिश्र, जस्टिस के0एन0 सिंह, जस्टिस एम0एच0 केनिया, न्यायाधीश एल0एम0 शर्मा, जस्टिस एम0एन0 वैंकटचल्लैया, जस्टिस ए0एम0 अहमदी, जस्टिस जे0एस0 वर्मा, जस्टिस एम0एम0 पंछी, जस्टिस ए0एस0 आनंद, जस्टिस एस0पी0 बरूचा, जस्टिस बी0एन0 कृपाल, जस्टिस जी0बी0 पाठक, जस्टिस राजेन्द्र बाबू, जस्टिस आर0सी0 लाहोटी, जस्टिस वी0एन0 खरे और जस्टिस वाई0के0 सभरवाल शामिल हैं।

शांतिभूषण ने तब कहा था कि न्यायाधीशों का भ्रष्टाचार सीआरपीसी के तहत संज्ञेय अपराध है। सीआरपीसी में प्रा​विधान है कि एक बार एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस विवेचना करेगी और साक्ष्य एकत्र करेगी तथा कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करेगी। फिर उसके विरुद्घ मुकदमा चलेगा और दोषी पाये जाने पर जेल की सजा काटनी पड़ेगी। मगर उच्चतम न्यायालय ने सीआरपीसी के इन प्राविधानों की वीरास्वामी मामले में 1997 में हवा निकाल दी और व्यवस्था दी कि भारत में मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के बिना किसी भी न्यायाधीश के विरुद्ध एफआईआर दर्ज नहीं की जायेगी।

वीरास्वामी फैसले के बाद आज तक किसी भी न्यायाधीश के विरुद्ध न तो प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति दी गयी है, न ही प्राथमिकी दर्ज हुई है। नतीजतन भ्रष्ट न्यायाधीशों को अभियोजन में पूरी तरह अभयदान मिल हुआ है।

● इस प्रकरण की पोषणीयता पर सुप्रीम कोर्ट में 10 नवम्बर 09 को सुनवायी के दौरान जब खंडपीठ द्वारा इस मामले में माफी मांगने का बार-बार प्रस्ताव दिया तो पूर्व कानून मंत्री शांतिभूषण ने उच्चतम न्यायालय से स्पष्ट कहा कि यह उनका दृढ़ विश्वास है कि न्यायपालिका में बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार है। मैं वही बात कह रहा हूँ जो प्रशांत भूषण ने कहा है। माफी मांगने का कोई प्रश्न नहीं उठता। मैं जेल जाना ज्यादा पसंद करूंगा।

● दरअसल, यह सारा प्रकरण न्यायिक जवाबदेही आंदोलन के प्रमुख और सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता प्रशांत भूषण के तहलका में प्रकाशित एक साक्षात्कार में यह कहने पर उत्पन्न हुआ था कि देश के पिछले सोलह न्यायाधीशों में से आधे भ्रष्ट थे। उस समय तक न्यायमूर्ति एच0एस0 कपाडिय़ा मुख्य न्यायाधीश नहीं बने थे, उन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के0जी0 बालाकृष्णन के साथ एक पीठ में वेदांता स्टरलाइट ग्रुप से जुड़े एक मामले की सुनवाई की थी। इसी साक्षात्कार में उन्होंने यह भी कहा था कि न्यायमूर्ति कपाड़िय़ा को इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वह कंपनी के शेयर धारक हैं।

journalist jp-singh
journalist jp-singh

 

सौजन्य से
वरिष्ठ पत्रकार, जेपी सिंह

राज्‍यों से जुड़ी हर खबर और देश-दुनिया की ताजा खबरें पढ़ने के लिए नार्थ इंडिया स्टेट्समैन से जुड़े। साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप को डाउनलोड करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button

sbobet

Power of Ninja

Power of Ninja

Mental Slot

Mental Slot